मृत्यु से परे ज्ञान और रक्षा की देवी है - “माँ तारा”

Jitendra Kumar Sinha
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हिन्दू तंत्र शास्त्र और शाक्त परंपरा में दस महाविद्याओं का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इन दस स्वरूपों में मां तारा का दूसरा स्थान है, जो न केवल एक रक्षक देवी हैं बल्कि “ज्ञान” और “अमृत तत्व” की प्रदानकर्ता भी हैं। मां तारा को ‘नीली काली’ कहा जाता है, जो काली की तरह भयंकर हैं, परंतु उनके स्वरूप में “करुणा” और “ज्ञान” की गहन उपस्थिति होती है। वे मृत्यु के भय से मुक्ति देती हैं और साधक को आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करती हैं।

मां तारा का वर्ण नील है, यह नीलिमा केवल रंग नहीं है, बल्कि ब्रह्मांडीय रहस्य का प्रतीक है। नीला रंग अनंत आकाश और गहराई का परिचायक है। उनका यह स्वरूप दर्शाता है कि देवी तारा जन्म-मरण की सीमा से परे हैं। मां तारा के एक हाथ में खड्ग है जो अज्ञान और मृत्यु को काटने का प्रतीक है। एक हाथ में कमल है जो आत्मिक विकास, चेतना और शांति का प्रतीक है। शेष दो हाथ वर और अभय मुद्रा है जो साधक को वरदान और भयमुक्ति प्रदान करती हैं। मां तारा का स्वरूप उग्र होते हुए भी करुणामयी है। वे श्मशान में विराजमान हैं,  जहाँ जीवन का अंत होता है, वहीं तारा पुनर्जन्म और अमरत्व की राह दिखाती हैं।

एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, जब ब्रह्मांड में हाहाकार मचा और राक्षसों का आतंक बढ़ा, तब मां काली अपने उग्र स्वरूप में हर ओर विनाश करने लगी। उनके इस तांडव को कोई नहीं रोक सका। तभी भगवान शिव उनके मार्ग में लेट गए, जिसे देखकर काली शांत हो गईं। परंतु इस कथा का एक तांत्रिक संस्करण यह कहता है कि उस काल में एक शक्ति प्रकट हुई, नीले रंग की, जो शिव तत्व से संयुक्त थी, और जिसने काली की अग्नि को शांत किया। यही शक्ति थीं मां तारा। वह ‘नीली काली’ बनीं,  एक ऐसी देवी जो अंधकार में आशा की लौ बनकर जलती हैं।

एक रोचक तथ्य यह है कि मां तारा केवल हिन्दू धर्म में ही नहीं है, बल्कि बौद्ध धर्म में विशेषकर वज्रयान बौद्ध मत में भी अत्यंत पूजनीय हैं। बौद्ध परंपरा में भी तारा को करुणा की देवी और रक्षक शक्ति माना गया है। बौद्ध परंपरा में उनका रूप ‘ग्रीन तारा’ और ‘व्हाइट तारा’ के रूप में विकसित हुआ है, परंतु मूल अवधारणा वही है, तारा रक्षा करती हैं, मृत्यु से बचाती हैं, ज्ञान देती हैं।

तारा की उपासना मुख्यतः तांत्रिक साधना में किया जाता है। वे दस महाविद्याओं में दूसरी देवी हैं और तांत्रिक साधकों के लिए यह देवी आत्मकल्याण, सिद्धि और मुक्ति की मुख्य शक्ति माना जाता है। साधक मां तारा की पूजा श्मशान या निर्जन स्थलों में करते हैं, क्योंकि तारा स्वयं श्मशान वासिनी हैं। वे मृत्यु का अतिक्रमण कर जीवन का बोध कराती हैं।

तारा की साधना का प्रमुख उद्देश्य है मृत्यु के भय से मुक्ति, आत्मज्ञान की प्राप्ति, दीर्घायु और रोगनाश, मानसिक शांति और अद्वितीय बौद्धिक शक्ति। उनका  बीज मंत्र है- “ॐ ह्रीं स्त्रीं हूं फट्।” यह बीज मंत्र अत्यंत प्रभावशाली माना गया है, जो साधक को तारा के संरक्षण में लाता है।

मां तारा की पूजा में नीला या काला वस्त्र, नीला पुष्प (नीलगिरी, अपराजिता), दीपक, घृत, अगरबत्ती, पंचामृत या गुड़-चने का भोग, तारा यंत्र और उनके बीज मंत्र आवश्य होता है। पूजा से पहले स्थान की शुद्धि करने के बाद आसन ग्रहण करना चाहिए, तारा यंत्र को स्थापित कर दीप प्रज्वलित करना चाहिए, बीज मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए, नीला पुष्प अर्पित कर, शांति और ज्ञान की कामना करना चाहिए। तारा की पूजा रात्रि में विशेष फलदायी माना गया है, विशेषकर अमावस्या या तारा जयंती के दिन।

हालांकि यह विषय आध्यात्मिक और रहस्यपूर्ण है, परंतु मनोवैज्ञानिक और योगिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो तारा साधना, साधक को गहन एकाग्रता, मनोबल और आत्मिक शांति प्रदान करता है। बीज मंत्रों के उच्चारण से मस्तिष्क में तरंगें उत्पन्न होती हैं जो नकारात्मकता को हटाती हैं। तारा की कल्पना और ध्यान से मृत्यु का भय धीरे-धीरे समाप्त होता है। साधक को जीवन की नश्वरता का बोध होता है और वह उसे आत्मिक स्तर पर स्वीकार करने लगता है।

भारत में तारा के अनेक प्राचीन और तांत्रिक महत्व के मंदिर हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं तारापीठ, पश्चिम बंगाल– यह भारत का सबसे प्रसिद्ध तारा शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहीं पर देवी सती की तीसरी आंख गिरी थी। यह स्थान तांत्रिकों की साधना का केंद्र है। रामकृष्ण परमहंस और बामा खेपा जैसे संतों ने यहां साधना किया था।

शक्तिपीठ मां तारा मंदिर, मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)– विंध्य क्षेत्र में स्थित यह मंदिर भी अत्यंत पूजनीय है। यहां भक्तजन अमावस्या और नवरात्रि पर बड़ी संख्या में दर्शन हेतु आते हैं।

कई साधकों का अनुभव है कि तारा साधना के माध्यम से उन्हें अप्रत्याशित रूप से संकट से मुक्ति मिली है। कहा जाता है कि तारा किसी मृत्यु-प्राय अवस्था में व्यक्ति की रक्षा कर लेती हैं, और कई बार उनके दर्शन तंद्रा या स्वप्न में होते हैं। लोक विश्वास है कि जो सच्चे भाव से तारा की आराधना करता है, उसे कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है। तारा भूत-प्रेत, ग्रहदोष, मानसिक विक्षिप्तता आदि से रक्षा करती हैं। उनके मंत्रों में “भैरवी तंत्र” की शक्ति समाहित होता है।

मां तारा की साधना का अंतिम लक्ष्य केवल भय से मुक्ति नहीं है, बल्कि 'अमृत तत्व का बोध' है। वे मृत्यु के भयंकर रूप को भी एक माया मानती हैं और साधक को यह अनुभूति कराती हैं कि “मृत्यु नहीं, चेतना शाश्वत है।” यह अनुभूति साधक को “मुक्ति” की ओर ले जाता है,  जिसे योग, वेदांत और तंत्र तीनों में परम लक्ष्य माना गया है।

मां तारा केवल एक देवी नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा हैं। उनका उग्र रूप भय दिखाता है, परंतु उनके भीतर छिपा नीला प्रकाश ज्ञान और आत्मा की ओर खींचता है।
उनकी साधना साधक को न केवल मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है, बल्कि एक ऐसा जीवन दृष्टिकोण देती है जिसमें मृत्यु भी मार्ग बन जाता है, अंत नहीं।



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