काल की अधिष्ठात्री और तांत्रिक रहस्यों की देवी है - “महाकाली”

Jitendra Kumar Sinha
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भारतीय तंत्र परंपरा में दस महाविद्या साधना की परम पराकाष्ठा माना जाता हैं। इन दस देवियों में सबसे पहला और विकराल रूप हैं “माँ महाकाली” है। वह न केवल 'काल' से परे हैं, बल्कि 'काल' को भी अपने अधीन करती हैं। उनका काला रंग, विकराल स्वरूप, रक्तपान पात्र और नरमुंडों की माला साधारण दृष्टि से भयानक लग सकता हैं, लेकिन तांत्रिक दृष्टिकोण से वे अज्ञान, भय, अहंकार और आसुरी प्रवृत्तियों के नाश का प्रतीक हैं।

महाकाली का रूप संहारक है, पर यह संहार विनाश के लिए नहीं, बल्कि नव सृजन के लिए है। उनके चार या दस हाथ होते हैं, जिनमें तलवार, खड्ग, त्रिशूल, नरमुंड और रक्तपान पात्र होता है। वे श्मशान में निवास करती हैं, जहाँ मृत्यु का भय समाप्त होता है। उनकी आंखें क्रोध से जलती हैं, जीभ बाहर निकली होती है, यह अहंकार का अपमान है।

महाकाली का काला रंग, अज्ञान और ब्रह्म की स्थिति है, जिसमें सब समाहित हो जाता है। उनकी नग्नता समस्त सामाजिक बंधनों और माया से परे होना है। गले में नरमुंड माला विभिन्न अहंकारों की समाप्ति का प्रतीक है। श्मशान निवास मृत्यु के भय से मुक्ति और मोक्ष की यात्रा की शुरुआत।

तंत्र में महाकाली केवल देवी नहीं हैं, बल्कि एक सत्ता हैं- शुद्ध चैतन्य शक्ति। वे ब्रह्मांड की आदिशक्ति हैं जो संहार के माध्यम से सृष्टि की रक्षा करती हैं। उनका तांत्रिक स्वरूप अत्यंत गूढ़ और रहस्यमयी है। महाकाली की उपासना साधक को त्रिगुणों (सत्त्व, रजस, तमस) से पार ले जाती है। उनकी कृपा से साधक 'काल' (समय) के बंधन से मुक्त हो जाता है। यह साधना रात्रि, विशेष रूप से अमावस्या को की जाती है, जब ब्रह्मांड में ऊर्जा का प्रवाह चरम पर होता है।

देवी भागवत पुराण और दुर्गा सप्तशती में महाकाली की उत्पत्ति की कथा अद्भुत है। जब महिषासुर, चंड-मुंड, रक्तबीज जैसे राक्षस देवताओं को परास्त कर चुके थे, तब देवताओं ने माँ दुर्गा से सहायता मांगी। दुर्गा के क्रोध से उनके ललाट से महाकाली प्रकट हुईं। उन्होंने रक्तबीज का वध इस प्रकार किया कि उसके रक्त की एक बूंद भी धरती पर न गिरे, इसलिए वे उसका रक्त पीने लगी। उनका तांडव अत्यंत उग्र था। तब भगवान शिव ने स्वयं उनके पैरों के नीचे आकर उन्हें रोका। यह प्रसंग बताता है कि महाकाली का संहार असीम है, लेकिन वह आत्म-ज्ञान से नियंत्रित होता है।

महाकाली की उपासना अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। यह न केवल दुश्मनों से रक्षा करती है, बल्कि साधक के भीतर के भय, अज्ञान और मोह को भी नष्ट करती है। महाकाली साधना भय से मुक्ति दिलाती है चाहे वह मृत्यु का हो या अज्ञात का। दुश्मनों का नाश करती है और तांत्रिक साधना से रक्षक शक्ति प्राप्त होती है। तांत्रिक सिद्धि के लिए वशीकरण, उच्चाटन, संमोहन जैसे प्रयोगों में उपयोगी है। मुक्ति का द्वार है यह साधना, मोक्ष की ओर ले जाती है।

महाकाली की साधना समय है अमावस्या की रात्रि या काली चतुर्दशी। साधना का स्थान होता है एकांत, विशेषकर श्मशान, नदी किनारा या पर्वतीय क्षेत्र। महाकाली मंत्र है "ॐ क्रीं कालिकायै नमः"। अनुष्ठान करने की अवधि होता है कम से कम 21 दिनों का जाप और नियम पालन करना।  अनुष्ठान में सावधानी है कि यह साधना बिना गुरु के मार्गदर्शन के नहीं करनी चाहिए।

महाकाली का दार्शनिक पक्ष होता है 'काल' के पार की देवी। ‘काल’ यानि समय – वह जो सबको नष्ट करता है। लेकिन महाकाली ‘काल’ की अधिष्ठात्री हैं, यानि ‘काल’ भी उनका अधीन है। इसलिए महाकाली मृत्यु के भी पार हैं। वे त्रिनेत्रधारी शिव की सहचरी हैं,  चेतना और शक्ति का संतुलन। उनका तांडव ब्रह्मांड की गतिविधि का प्रतीक है– निर्माण, संहार और पुनर्निर्माण। “जो महाकाली को जान लेता है, वह स्वयं समय की गति से मुक्त हो जाता है।”

महाकाली केवल तांत्रिकों की देवी ही नहीं है बल्कि वे जन-जन की माँ भी हैं। बंगाल, असम, ओडिशा और नेपाल में महाकाली की पूजा भव्य रूप में होती है। कोलकाता की कालीघाट शक्तिपीठ में उनका मुख्य मंदिर है। दक्षिणेश्वर काली मंदिर में रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें साक्षात देखा था। दुर्गा पूजा के पश्चात काली पूजा दीपावली की रात को होती है जब रात्रि अपनी चरम सीमा पर होता है।

रामकृष्ण परमहंस, जो स्वयं एक उच्च कोटि के योगी और संत थे, उन्होंने माँ काली को प्रत्यक्ष रूप से देखा था। वे दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे। उनकी भक्ति ऐसी थी कि वे दिन-रात माँ से संवाद करते थे। एक दिन वे मंदिर के पीछे एकांत में माँ को देखने की लालसा में विलीन हो गए और बेहोश हो गए। तभी उन्हें माँ महाकाली का दर्शन हुआ, पूरा ब्रह्मांड उनके स्वरूप में विलीन होता प्रतीत हुआ।

आधुनिक युग में महाकाली को केवल एक देवी के रूप में नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में भी देखा जा सकता है। उनका अंधकार अंतर्मन का अज्ञात क्षेत्र है। उनकी नग्नता सत्य की नग्नता है, जो हर आवरण से मुक्त है। उनका खड्ग बुद्धि की तेजता है जो भ्रम को काटती है। रक्तपान पात्र आसुरी वासनाओं का नियंत्रण है।

महाकाली स्त्री के उस रूप की प्रतीक हैं, जो न केवल जन्म देती है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर संहार भी करती है। वे शोषण, अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध खड़ी स्त्री-शक्ति हैं। आज की नारी जब अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाती है, तो वह काली-स्वरूपा ही होती है।

महाकाली का विकराल रूप सतही दृष्टि से भयावह लग सकता है, परंतु वे करुणा की देवी हैं। वे हर साधक को भीतर के अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाती हैं। उनका प्रत्येक प्रतीक यह सिखाता है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है बल्कि एक चरण है। भय को नष्ट कर ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ‘काल’ के पार जाना ही मोक्ष है, और यह यात्रा महाकाली की कृपा से ही संभव है।

महाकाली मंत्र 

“ॐ क्रीं कालिकायै नमः”

“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः”

महाकाली न केवल अज्ञानी के लिए भय की देवी हैं, बल्कि ज्ञानी के लिए भी मोक्ष का द्वार हैं। उनका तांत्रिक रहस्य जितना गूढ़ है, उतना ही मंगलकारी भी है। आज के युग में जब भय, मोह, लोभ और अज्ञान ने समाज को जकड़ रखा है, तब महाकाली की उपासना आत्मबल, साहस और अंतर्ज्ञान प्रदान कर सकती है।



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