बिहार की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी हिंदी फीचर फिल्म "जट-जटिन" ने वैश्विक स्तर पर अपना डंका बजा दिया है। कॉफी विद फिल्म श्रृंखला के तहत इस फिल्म का विशेष प्रदर्शन पटना में किया गया, जिसे देखने सिनेप्रेमियों की अच्छी-खासी भीड़ जुटी। इस मौके पर फिल्म निगम के परामर्शी अरविंद रंजन दास और फिल्म के निर्माता-निर्देशक अनिल पतंग विशेष रूप से उपस्थित रहे।
जट-जटिन फिल्म बिहार के लोकप्रिय लोकनृत्य और लोकगाथा पर आधारित है। यह न केवल एक मनोरंजनपरक कृति है, बल्कि इसमें लोकसंस्कृति, संघर्ष, प्रेम और सामाजिक चेतना का गहरा संदेश भी समाहित है। फिल्म के निर्माता अनिल पतंग ने बताया है कि “यह सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि बिहार की आत्मा को दुनिया के सामने लाने का माध्यम है।”
फिल्म में जट-जटिन की लोककथा को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें प्रेम, त्याग और सामाजिक संघर्ष की झलक देखने को मिलती है। यह वही जट-जटिन हैं, जिनकी लोककथाएं आज भी बिहार और पूर्वी भारत के गांवों में गीतों के रूप में गाई जाती हैं।
अब तक जट-जटिन को 55 देशों में प्रदर्शित किया जा चुका है और 70 से अधिक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है। यह फिल्म इस बात का प्रमाण है कि स्थानीय संस्कृति अगर संवेदनशीलता और गुणवत्ता के साथ प्रस्तुत की जाए, तो वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराही जा सकती है।
अरविंद रंजन दास ने कहा है कि “फिल्म निगम, बिहार में बनी फिल्मों को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। ‘कॉफी विद फिल्म’ जैसी श्रृंखलाएं उन फिल्मों को दर्शकों तक पहुंचाने का एक सुंदर प्रयास हैं, जो राज्य की मिट्टी से जुड़ी हैं।”
फिल्म निगम की पहल से अब उन रचनाकारों को भी प्रोत्साहन मिलेगा, जो लोकधर्मी सिनेमा में रुचि रखते हैं। अनिल पतंग का यह भी कहना है कि “जट-जटिन की सफलता से यह साबित हो गया है कि बिहार की कहानियों में दम है, बस जरूरत है उन्हें सशक्त रूप से कहने की।”
इस फिल्म की सफलता आने वाले समय में और भी निर्देशकों को बिहार की संस्कृति को फिल्म माध्यम से जीवंत करने के लिए प्रेरित करेगी। साथ ही, यह भी उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार द्वारा फिल्म नीति को और सशक्त बनाकर राज्य में फिल्म निर्माण का माहौल बेहतर किया जाएगा।
