सनातन धर्म में नवरात्र केवल पूजा-अर्चना का पर्व नहीं होता है, बल्कि साधना, शक्ति और आत्मशुद्धि का अनोखा अवसर होता है। आम जनमानस जहां चैत्र और शारदीय नवरात्र में खुले रूप से नौ दिनों तक देवी दुर्गा की आराधना करता है, वहीं गुप्त नवरात्र का पर्व साधकों और तांत्रिकों के लिए विशेष रहस्य और साधना का काल होता है। आषाढ़ मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चलने वाला यह गुप्त नवरात्र हर वर्ष आत्मशक्ति, तांत्रिक क्रियाओं और दस महाविद्याओं की साधना के लिए एक दुर्लभ समय माना जाता है।
गुप्त नवरात्र उन विशेष नौ दिनों का समय होता है जब तांत्रिक साधनाएं, गूढ़ आराधना और ब्रह्मांडीय शक्तियों की उपासना किया जाता है। यह पर्व उन साधकों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है जो आध्यात्मिक विकास, भौतिक सुख और चमत्कारी शक्तियों की प्राप्ति के पथ पर अग्रसर होते हैं। इसे "गुप्त" इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी पूजा विधियाँ गुप्त, गूढ़ और निजी होता हैं।
गुप्त नवरात्र जून 2025 (गुरुवार, प्रतिपदा तिथि उदया काल से) प्रारम्भ होकर 4 जुलाई 2025 (शुक्रवार, नवमी तिथि) को समापन होगा। प्रतिपदा तिथि 25 जून को शाम 04:00 बजे से प्रारंभ होगा और 26 जून, दोपहर 01:24 बजे प्रतिपदा तिथि समापन होगा। वर्तमान समय में उदया तिथि की मान्यता हो रही है, ऐसी स्थिति में गुप्त नवरात्र की शुरुआत 26 जून से माना जाएगा।
आषाढ़ गुप्त नवरात्र के दौरान की जाने वाली पूजा न केवल जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करता है, बल्कि जन्मकुंडली में छिपे ग्रहदोष, पितृदोष, कालसर्प दोष जैसे गंभीर बाधाओं को भी दूर करने में सहायक है। गुप्त नवरात्र तंत्र साधना के लिए सर्वोत्तम समय है, दस महाविद्याओं की आराधना द्वारा विशेष सिद्धियाँ प्राप्त किया जा सकता हैं, रात्रिकालीन साधना अत्यंत प्रभावी माना जाता है। मौन व्रत और उपवास से साधना में अधिक सफलता मिलता है।
गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याएं आदिशक्ति के दस विशिष्ट रूपों को दर्शाती हैं, जिनकी पूजा किया जाता है। महाकाली- काल और मृत्यु की देवी, नकारात्मकता का नाश करती हैं। तारा देवी- तारक ब्रह्म स्वरूपिणी, आत्मज्ञान की प्रदाता हैं। त्रिपुरसुंदरी- सौंदर्य, ऐश्वर्य और प्रेम की देवी हैं। भुवनेश्वरी- ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री, सृजन और विस्तार की शक्ति की देवी हैं। छिन्नमस्ता- आत्मबलिदान और इच्छाशक्ति की प्रतीक हैं। त्रिपुर भैरवी- तंत्र और योग की उन्नत साधना की देवी हैं। धूमावती- विधवा स्वरूपिणी, तात्विक शून्यता और वैराग्य की देवी हैं। बगलामुखी- शत्रुओं का नाश और विजय दिलाने वाली देवी हैं। मातंगी- वाणी और संगीत की देवी, तंत्र की सरस्वती हैं। कमला देवी- समृद्धि और लक्ष्मी का तांत्रिक रूप हैं।
गुप्त नवरात्रि में भी देवी दुर्गा के नौ रूपों की विशेष पूजा किया जाता है, जिसमें माँ शैलपुत्री, माँ ब्रह्मचारिणी, माँ चंद्रघंटा, माँ कूष्मांडा, माँ स्कंदमाता, माँ कात्यायनी, माँ कालरात्रि, माँ महागौरी और माँ सिद्धिदात्री का पूजा किया जाता है। यह पूजा शुद्धता, भक्ति और आस्था के साथ किया जाता है, लेकिन गुप्त नवरात्र में इसका रूप अधिक अंतर्मुखी और साधनात्मक होता है।
तंत्र विद्या में विश्वास रखने वाले साधक गुप्त नवरात्र को विशेष साधनाओं, यंत्र-सिद्धि, मंत्र-दीक्षा और शक्ति जागरण के लिए प्रयोग करते हैं। यंत्र पूजा में श्री यंत्र, काली यंत्र, बगलामुखी यंत्र और त्रिपुरसुंदरी यंत्र शामिल है। इन यंत्रों की स्थापना और पूजन से साधक विशेष फल प्राप्त करता है। मंत्र जाप और अनुष्ठान में काली गायत्री मंत्र, तारा बीज मंत्र, बगलामुखी स्तोत्र और महाविद्या कवच शामिल है। रात्रि के समय, विशेषकर मध्यरात्रि से भोर तक की गई साधनाएं अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
गुप्त नवरात्र में प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर, घर के पूजास्थल को स्वच्छ करके कलश स्थापना कर, देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित कर दीपक जला कर, नौ दिनों तक उपवास रहकर (पूर्ण या फलाहार), प्रतिदिन एक महाविद्या की आराधना और रात्रिकालीन जप, ध्यान और मौन का पालन करना चाहिए।
ज्योतिष के अनुसार, यदि कुंडली में शनि की साढ़ेसाती, राहु-केतु दोष, कालसर्प योग, या पितृदोष हो, तो गुप्त नवरात्र के दौरान विशिष्ट उपायों और पूजन से इन बाधाओं से मुक्ति मिल सकता है। शनि ग्रह से संबंधित बाधा के लिए बगलामुखी देवी का जप, राहु-केतु दोष के लिए धूमावती देवी का पूजन और आर्थिक बाधाओं के लिए कमला देवी की साधना करना चाहिए। मान्यता है कि भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा ने दस महाविद्याओं की आराधना से ब्रह्मांड की रचना, रक्षा और संहार का कार्य संभव किया है। तंत्र ग्रंथों में गुप्त नवरात्रि को तांत्रिक वर्ष का नवसंवत्सर माना गया है, जहां तांत्रिक साधक नए संकल्प लेते हैं।
यह पर्व साधकों और तांत्रिकों तक सीमित माना जाता है, लेकिन आज के समय में अधिकाधिक लोग इसे आत्मशुद्धि, जीवन उन्नति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए अपनाने लगे हैं। जबकि कोई भी श्रद्धालु, जो संकल्प, अनुशासन और नियमपूर्वक यह साधना करना चाहता है। विशेष रूप से जो लोग जीवन में निरंतर बाधाओं, मानसिक संकट, आर्थिक समस्या या शत्रु बाधा से ग्रस्त हैं। वे गुरुजन के दिशा निर्देश में करना चाहिए।
आषाढ़ गुप्त नवरात्र सिर्फ पूजा-पाठ का पर्व नहीं है, बल्कि एक रहस्यमयी द्वार है आत्मान्वेषण और आत्मसाक्षात्कार का। जो श्रद्धा, संयम और नियमों से इस मार्ग पर चलता है, उसे जीवन में वह सब प्राप्त होता है जो सामान्यतः दुर्लभ होता है- आंतरिक शांति, दिव्य शक्ति और ब्रह्म चेतना का अनुभव।
