जापान ने पहली बार अपनी धरती पर किया मिसाइल परीक्षण

Jitendra Kumar Sinha
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एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तनाव और चीन के आक्रामक रवैये के बीच जापान ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पहली बार अपनी ही जमीन पर मिसाइल परीक्षण किया है। यह परीक्षण न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जापान की सामरिक सोच में आ रहे बदलाव का भी संकेत देता है। जापानी रक्षा बलों ने होक्काइडो द्वीप स्थित शिजुनाई एंटी-एयर फायरिंग रेंज में टाइप-88 सतह से जहाज तक मार करने वाली मिसाइल का परीक्षण किया। यह मिसाइल जापान के स्वदेशी सैन्य तकनीक का हिस्सा है, जिसे खासतौर पर समुद्री खतरों से निपटने के लिए तैयार किया गया है।

टाइप-88 मिसाइल की विशेषता है कम दूरी की मारक क्षमता, नाविकीय हमलों में प्रभावी, जमीन से समुद्री लक्ष्यों को नष्ट करने की क्षमता, GPS-निर्देशित प्रणाली से लैस। इस मिसाइल का उपयोग जापान की ग्राउंड सेल्फ डिफेंस फोर्स (GSDF) करती है, और इसे पहले केवल सैन्य अभ्यासों में या सीमित क्षेत्रों में ही चलाया जाता था।

यह परीक्षण ऐसे समय में किया गया है जब जापान लगातार अपनी "स्ट्राइक-बैक" क्षमता (प्रत्युत्तर में हमला करने की क्षमता) को विकसित कर रहा है। चीन द्वारा ताइवान पर दबाव बढ़ाने, दक्षिण चीन सागर में सैन्य गतिविधियों को तेज करने और जापान के सेन्काकू द्वीपों के पास घुसपैठ की घटनाओं ने टोक्यो को और सतर्क कर दिया है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने शांति-प्रधान संविधान अपनाया था, जिसमें आक्रामक सैन्य कार्रवाई पर रोक थी। परंतु अब जापान रक्षा नीति में लचीलापन लाकर खुद को एक रक्षात्मक से आक्रामक रक्षा नीति की ओर मोड़ रहा है। 2022 में जापान ने घोषणा की थी कि वह अगले 5 वर्षों में रक्षा बजट को दोगुना करेगा और अमेरिका से लॉन्ग-रेंज मिसाइलें खरीदेगा।

होक्काइडो में हुआ यह मिसाइल परीक्षण केवल तकनीकी अभ्यास नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश है, जापान अब पीछे हटने वाला नहीं। बदलते वैश्विक समीकरणों और क्षेत्रीय खतरों को देखते हुए जापान अब अपनी सुरक्षा नीति में बड़ा बदलाव कर रहा है। आने वाले वर्षों में जापान की यह सक्रिय रणनीति पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की शक्ति-संतुलन को प्रभावित कर सकती है।



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