बिहार सरकार ने कालाजार जैसी घातक बीमारी के खिलाफ एक बड़ी मुहिम की शुरुआत कर दी है। 1 जून से राज्य के 32 जिलों में घर-घर जा कर कालाजार रोगी खोज अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य है – बीमारी के हर संभावित मरीज की पहचान, त्वरित इलाज और संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ना।
इस अभियान को राज्य के उन 32 जिलों में लागू किया गया है जहां कालाजार का खतरा ज्यादा है। इसमें अररिया, बांका, बेगूसराय, भागलपुर, भोजपुर, बक्सर, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, गोपालगंज, जहानाबाद, कटिहार, खगड़िया, किशनगंज, लखीसराय, मधेपुरा, मधुबनी, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, पटना, पूर्णिया, सहरसा, समस्तीपुर, शिवहर, शेखपुरा, सारण, सीतामढ़ी, सुपौल, सिवान, वैशाली और पश्चिमी चंपारण जिला शामिल है।
कालाजार प्रभावित प्रखंडों में लोगों को इस अभियान के प्रति जागरूक करने के लिए हर प्रखंड में 10-10 बैनर लगाया गया है। इन बैनरों के माध्यम से लोगों को बताया जा रहा है कि कालाजार के लक्षण क्या हैं, इससे कैसे बचा जा सकता है और सरकार की क्या मदद उपलब्ध है।
सरकार कालाजार पीड़ित मरीजों को 7100 रुपये की आर्थिक सहायता राशि दे रही है। इसमें ₹6600 राज्य सरकार द्वारा और ₹500 केन्द्र सरकार द्वारा शामिल है। यह राशि इलाज के दौरान आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मदद पहुंचाने के लिए दी जाती है। इससे राशि से दवाइ, सफाई, पोषण आदि की जरूरतें पूरी किया जा सकता है।
कालाजार, जिसे विसरल लीशमैनियासिस कहा जाता है, एक गंभीर परजीवीजनित बीमारी है जो बालू मक्खी (Sandfly) के काटने से होता है। इसके लक्षणों में तेज बुखार, वजन घटना, थकान, त्वचा काली पड़ना और पेट में सूजन (स्प्लीन और लिवर का बढ़ना) शामिल है। इलाज न मिलने पर यह जानलेवा भी हो सकता है।
सरकार का लक्ष्य है कि 2025 तक बिहार को कालाजार मुक्त बनाया जाए। इसके लिए सक्रिय खोज, समय पर इलाज और समुदाय की भागीदारी बेहद जरूरी है। "घर-घर खोज अभियान" इसी दिशा में एक बड़ा कदम है, जिससे न सिर्फ बीमारी की रोकथाम होगी बल्कि समाज को स्वस्थ और सुरक्षित बनाने की दिशा में मजबूती मिलेगी।
बिहार में घर-घर जाकर कालाजार रोगियों की पहचान का यह अभियान स्वास्थ्य विभाग की प्रतिबद्धता और संवेदनशीलता को दर्शाता है। जरूरत है कि हर नागरिक इसमें भागीदार बने, लक्षणों को नजरअंदाज न करे और समय पर जांच करवाए। तभी इस बीमारी को जड़ से मिटाया जा सकेगा।