बिहार के मधुबनी जिले से आई एक चौंकाने वाली खबर। खबर से प्रशासन और जनता दोनों स्तब्ध है। जिला समाहरणालय परिसर यानि कलेक्ट्रेट भवन और उसकी भूमि पर नीलामी की तलवार लटक रही है। कोर्ट के आदेश पर समाहरणालय परिसर में एक औपचारिक सूचना चिपकाई गई है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि 15 दिनों के अंदर बकाया राशि का भुगतान नहीं हुआ, तो कलेक्ट्रेट की संपत्ति की नीलामी प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
इस पूरे मामले की शुरुआत कोलकाता स्थित कंपनी मेसर्स राधाकृष्ण एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड द्वारा किए गए एक वाद से हुई है। मामले की सुनवाई प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश अनामिका टी की अदालत में हो रही थी। उन्होंने आदेश दिया कि यदि कंपनी को 15 दिनों के अंदर तय राशि नहीं मिलती है, तो समाहरणालय परिसर की भूमि और भवन की नीलामी किया जा सकता है।
यह आदेश सामने आने के बाद पूरे प्रशासनिक तंत्र में हड़कंप मच गया है। आमतौर पर सरकारी परिसरों पर इस तरह की कार्यवाही की कल्पना भी नहीं किया जाता है, लेकिन कोर्ट के आदेश को नजरअंदाज करना भी संभव नहीं है।
करीब एक बजे दिन में, न्यायालय नाजीर दुर्गानंद झा ने नायब नाजिर अवधेश कुमार और परिचारी बद्री झा की उपस्थिति में समाहरणालय भवन पर यह सूचना चस्पा की। जिसने भी इसे देखा, वह हैरान रह गया। सूचना में साफ लिखा गया है कि तय समयसीमा के अंदर भुगतान न होने की स्थिति में नीलामी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा।
अभी तक यह पूरी जानकारी सामने नहीं आ पाई है कि किस लेन-देन या अनुबंध को लेकर यह बकाया राशि बनी है। लेकिन यह स्पष्ट है कि मामला न्यायिक प्रक्रिया से होकर गुजरा है और न्यायालय ने अंतिम चेतावनी के तौर पर यह नोटिस जारी करवाया है। सूत्रों का माने तो यह मामला लंबे समय से कोर्ट में विचाराधीन था और संबंधित विभागों द्वारा लगातार टाल-मटोल किया जा रहा था, जिससे अब यह स्थिति उत्पन्न हो गया है।
सूचना के चस्पा होते ही प्रशासनिक महकमे में हड़कंप है। आम नागरिक भी सवाल कर रहे हैं कि आखिर सरकारी भवन तक को नीलामी की स्थिति में पहुंचने क्यों दिया गया? क्या प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही हुई है? यदि हां, तो जिम्मेदार कौन है?
अब सभी की नजरें अगले 15 दिनों पर टिकी हैं। यदि संबंधित विभाग या सरकार यह भुगतान समय पर नहीं करती है, तो बिहार में यह संभवतः पहली बार होगा जब किसी जिले के समाहरणालय भवन की नीलामी की प्रक्रिया शुरू होगी। यह मामला सिर्फ मधुबनी का नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के लिए चेतावनी है कि सरकारी जिम्मेदारियों की अनदेखी किस तरह कानूनी संकट को जन्म दे सकता है।