पाकिस्तान के सुराब शहर पर बलूचों का कब्जा - पाक सेना की चुप्पी

Jitendra Kumar Sinha
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पाकिस्तान का अशांत प्रांत बलूचिस्तान में एक बार फिर विद्रोह की आग तेज हो गई है। इस बार सुराब शहर, एक रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र, बलूच विद्रोहियों के कब्जे में आ गया है। खास बात यह है कि इस अभियान में न केवल शहर की प्रमुख सरकारी इमारतें बल्कि बैंक, राजमार्ग और पुलिस स्टेशन भी विद्रोहियों के नियंत्रण में आ गया हैं।

सुराब बलूचिस्तान के मध्य में स्थित एक ऐसा शहर है जो पाकिस्तान के कई प्रमुख मार्गों को जोड़ता है। यह क्वेटा को दक्षिणी बलूचिस्तान और कराची से जोड़ने वाला मुख्य राजमार्ग है। यदि इस क्षेत्र पर कोई नियंत्रण कर ले, तो वह न केवल सैन्य परिवहन बल्कि व्यापारिक गतिविधियों को भी पंगु बना सकता है।

स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, भारी हथियारों से लैस बलूच लड़ाकों ने सुराब में एक सुनियोजित तरीके से हमला बोल कर लेवीज पुलिस स्टेशन पर सबसे पहले कब्जा किया है। इसके बाद बैंक शाखाओं और सरकारी दफ्तरों को निशाना बनाया गया है और अंततः राष्ट्रीय राजमार्ग को बंद कर दिया गया है, जिससे सुरक्षा बलों की आवाजाही ठप हो गई है।

इस पूरी कार्रवाई के दौरान सबसे चौंकाने वाली बात यह रही है कि पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने किसी प्रकार का प्रतिरोध नहीं किया है, न ही कोई गोली चली, न ही विद्रोहियों को रोकने का प्रयास किया गया और सेना और अर्धसैनिक बलों ने बिना संघर्ष के पीछे हटने का विकल्प चुना। यह घटना पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

बलूच लड़ाकों के हमले के दौरान सुराब के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर हिदायत उल्लाह की मौत हो गई। यह एक बड़ा प्रशासनिक झटका माना जा रहा है। उनकी मृत्यु से स्थानीय प्रशासनिक तंत्र पूरी तरह से ठप हो गया है।

सुराब पर कब्जा इस बात का प्रतीक बन गया है कि बलूच विद्रोही अब न केवल छिपकर हमला करने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वह खुलेआम शहरों पर कब्जा करने की क्षमता भी रखने लगा हैं। यह घटना बलूचिस्तान में एक संगठित सशस्त्र आंदोलन की पुष्टि करता है। साथ ही, यह पाकिस्तान की विफल राज्यनीति और स्थानीय जनता की असंतोषपूर्ण स्थिति का भी संकेत देता है।

सुराब पर बलूचों का कब्जा एक सतही खबर नहीं है, यह पाकिस्तान की आंतरिक टूटन और बलूच आंदोलन की शक्ति का प्रमाण है। यदि पाकिस्तान ने बलूचों की राजनीतिक और आर्थिक मांगों को समय रहते नहीं माना, तो यह आंदोलन और भी व्यापक रूप ले सकता है, जिसकी चपेट में अन्य शहर भी आ सकता हैं।



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