अमरीका और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है इम्यूनोथेरपी पर आधारित कैंसर की एक नई दवा - "पेमब्रोलिजुमैब"

Jitendra Kumar Sinha
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कैंसर एक ऐसा शब्द है जो सुनते ही रोंगटे खड़े कर देता है। खासकर सिर और गर्दन के कैंसर की बात करें, तो यह एक ऐसा घातक रूप है जिसमें मरीजों के लिए बचाव के रास्ते सीमित होते हैं। लेकिन अब अमेरिका और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने इम्यूनोथेरपी पर आधारित एक नई दवा "पेमब्रोलिजुमैब" विकसित किया है, जो इस दिशा में एक बड़ा क्रांति के रूप में देखा जा रहा है। यह दवा न केवल मरीजों की जिन्दगी को लंबा कर सकता है, बल्कि कैंसर के दोबारा लौटने की आशंका को भी कम कर सकता है।

इम्यूनोथेरपी यानी प्रतिरक्षा चिकित्सा, एक उन्नत चिकित्सा प्रणाली है जो शरीर की नैसर्गिक रोग प्रतिरोधक प्रणाली को इतना मजबूत बनाता है कि वह खुद कैंसर कोशिकाओं को पहचानकर, उनका नाश कर सके। यह कीमोथेरपी या रेडिएशन की तरह शरीर को कमजोर नहीं करता है। इसके विपरीत, यह प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करके कैंसर से लड़ने में सहायक होता है। पेमब्रोलिजुमैब इसी तकनीक पर आधारित है।

ब्रिटेन के "कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट" और अमेरिका के "वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन" के वैज्ञानिकों ने इस दवा का विकास किया है। यह दवा 'इम्यून चेकपॉइंट इनहिबिटर' के रूप में काम करता है जो प्रतिरक्षा तंत्र को कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और नष्ट करने के लिए प्रेरित करता है। इस दवा का नाम है: पेमब्रोलिजुमैब (Pembrolizumab)। यह विशेष रूप से सिर और गर्दन के कैंसर के लिए कारगर सिद्ध हुआ है।

इस दवा का परीक्षण 24 देशों के 192 अस्पतालों में किया गया है। कुल 350 मरीजों पर यह दवा प्रयोग हुई है और परिणाम अत्यंत आशाजनक रहा है। सभी मरीजों को सिर और गर्दन का कैंसर था जो शरीर के अन्य हिस्सों में नहीं फैला था। तीन वर्षों के अनुवर्ती अध्ययन में पाया गया है कि इनमें से अधिकांश में कैंसर दोबारा नहीं फैला है। बल्कि दवा लेने के बाद कैंसर के शरीर में दोबारा फैलने की संभावना 10% तक घट गई है।

नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के शोध के अनुसार, भारत में सिर और गर्दन का कैंसर एक बड़ी समस्या बन चुका है। भारत में सभी कैंसर मामलों में से 30% सिर और गर्दन के कैंसर होते हैं। अनुमान है कि 2040 तक भारत में कैंसर के कुल मामले 21 लाख तक पहुंच जायेगा। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील की तुलना में भारत में सिर और गर्दन कैंसर की दर कहीं अधिक है।

पेमब्रोलिजुमैब इम्यून सिस्टम के "PD-1 प्रोटीन" को लक्षित करता है। यह प्रोटीन कैंसर कोशिकाओं को प्रतिरक्षा तंत्र से छिपने में मदद करता है। दवा PD-1 प्रोटीन को अवरुद्ध करता है। इससे प्रतिरक्षा कोशिकाएं (T-cells) कैंसर को पहचान पाता हैं।  T-cells फिर कैंसर कोशिकाओं को खत्म कर देता हैं।

इस दवा का फायदा यह है कि यह कैंसर को दोबारा फैलने से रोकता है, कीमोथेरपी की तुलना में कम साइड इफेक्ट होता है, लंबी उम्र की संभावना बढ़ती है, सिर-गर्दन के कैंसर में खास प्रभावशाली है और शरीर की नैसर्गिक प्रणाली को ही लड़ाई में इस्तेमाल करती है।

शोध से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक प्रोफेसर केविन हैरिंगटन ने कहा है कि “पेमब्रोलिजुमैब जैसे इम्यूनोथेरपी उपचार उन मरीजों की दुनिया बदल सकता हैं जो पहले असहाय माना जाता था। यह न केवल उनका जीवन बढ़ा सकता है, बल्कि कैंसर से उबरने की आशा भी जगा सकता है।”

भारत में सिर और गर्दन कैंसर के बढ़ने के कई कारण हैं, जिसमें तंबाकू और गुटखा का अत्यधिक सेवन, शराब का अत्यधिक उपयोग, मुंह की सफाई की कमी और HPV वायरस का संक्रमण शामिल है। सरकार को चाहिए कि पेमब्रोलिजुमैब जैसे उपचारों को भारत में भी प्राथमिकता से उपलब्ध कराया जाय।

पेमब्रोलिजुमैब की कीमत प्रारंभ में अधिक हो सकता है, क्योंकि यह एक जैविक उपचार है। लेकिन भारत में यदि इसका उत्पादन या तकनीक हस्तांतरण हो, तो इसकी कीमत को काफी कम किया जा सकता है। आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं इस उपचार को गरीब वर्ग तक पहुंचा सकता हैं। टाटा मेमोरियल जैसे कैंसर संस्थानों में इसका परीक्षण शुरू किया जाना चाहिए।

इस दवा की सफलता के बाद शोधकर्ता अब अन्य प्रकार के कैंसर जैसे फेफड़े, पेट, गले, और ब्लैडर कैंसर पर भी इसका उपयोग बढ़ाने की दिशा में काम किया जा रहा हैं। पेमब्रोलिजुमैब जैसी दवाएं कैंसर उपचार के परिदृश्य को पूरी तरह बदल सकता हैं।

भारत के शीर्ष ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. राजेश शर्मा कहते हैं कि “इम्यूनोथेरपी आने वाले समय में कैंसर की मुख्यधारा की चिकित्सा होगी। यह एक ऐसी दिशा है जो न केवल इलाज देती है, बल्कि उम्मीद भी देती है।”

पेमब्रोलिजुमैब केवल एक दवा नहीं है, बल्कि कैंसर के खिलाफ एक नई क्रांति की शुरुआत है। विज्ञान ने एक बार फिर दिखा दिया है कि उम्मीद और शोध मिलकर असंभव को संभव बना सकता हैं। यह दवा लाखों मरीजों के लिए जीवन की नई किरण बन सकता है, विशेषकर भारत जैसे देशों में जहां सिर और गर्दन का कैंसर एक गंभीर जनस्वास्थ्य समस्या है।

 


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