रामेश्वरम के पास स्थित द्वीप - “करियाचल्ली” - 2036 तक डूबने का खतरा

Jitendra Kumar Sinha
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जलवायु परिवर्तन अब एक काल्पनिक संकट नहीं है, बल्कि हमारे सामने खड़ा एक भयावह यथार्थ है। भारत के दक्षिणी छोर पर बसे रामेश्वरम के पास स्थित करियाचल्ली द्वीप इसका जीता-जागता उदाहरण है। एक समय 21 हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले, इस द्वीप का 71% हिस्सा समुद्र में समा चुका है और अब यह मात्र 5.97 हेक्टेयर बचा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो यह द्वीप 2036 तक पूरी तरह डूब जाएगा।

करियाचल्ली द्वीप मन्नार की खाड़ी में स्थित एक समुद्री राष्ट्रीय उद्यान (Marine National Park) का हिस्सा है। यह द्वीप न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है, बल्कि यह एक जैव विविधता का हॉटस्पॉट भी है। इस द्वीप पर 132 से अधिक प्रवाल प्रजातियां, 4300 से ज्यादा वनस्पति और जीव प्रजातियां तथा दुर्लभ जलीय जीवों का प्राकृतिक आवास है। यह द्वीप तमिलनाडु तट से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है और पास के गाँवों जैसे वैपर, सिप्पिकुलम और पहिनामरुप्यूर के मछुआरे अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह इसी क्षेत्र पर निर्भर हैं।

करियाचल्ली द्वीप का आकार समय के साथ घटता गया। इसका प्रमुख कारण समुद्र का बढ़ता जलस्तर है, लेकिन इसके पीछे कई अन्य वैज्ञानिक और मानवीय कारण भी हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण ध्रुवीय और हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। द्वीप के चारों ओर लगातार टकराती समुद्री लहरों, तटीय भूमि को काट रही हैं। हर वर्ष कुछ मीटर भूमि समुद्र में समा जाती है। मछली पकड़ने के बढ़ते दबाव, प्रवाल भित्तियों का विनाश और असंतुलित पर्यटन ने भी इस प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ा है।

भारत के करियाचल्ली जैसे कई द्वीप और तटीय इलाके खतरे में हैं। सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में समुद्र के बढ़ते जलस्तर से खतरा मंडरा रहा है। ह्यूस्टन, वेनिस, कीनिया, मियामी, मैसाचुसेट्स जैसे शहरों के 2050 तक आंशिक या पूर्ण रूप से डूबने की चेतावनी है। हिंदुकुश हिमालय के 75% ग्लेशियर सदी के अंत तक पिघल सकता है। भारत में सुंदरबन, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप जैसे इलाके भी इस संकट की जद में हैं।

तमिलनाडु सरकार और वैज्ञानिक संस्थाएं मिलकर करियाचल्ली द्वीप को बचाने के लिए कई नवाचार अपना रही हैं। इसके अंतर्गत IIT चेन्नई द्वारा डिजाइन किए गए 8500 बहुउद्देशीय रीफ मॉड्यूल तैनात किए जाएंगे। ये मॉड्यूल तरंग ऊर्जा को कम करेगा, तलछट को जमने में मदद करेगा और समुद्री जीवों को आवास देगा। तट के चारों ओर 2 से 3 मीटर ऊंची और 1.9 से 3 टन वजनी स्टील और फेरोसीमेंट की चट्टानें बिछाई जाएंगी। इनका उद्देश्य तटीय कटाव रोकना और भूमि की स्थिरता बढ़ाना है। रामेश्वरम के पास स्थित वान द्वीप का संरक्षण एक उदाहरण बन गया है, जहां 10,000 रीफ मॉड्यूल लगाकर भूमि क्षेत्र को 54% तक बढ़ाया गया है। करियाचल्ली को बचाने के प्रयासों में भी वान मॉडल को अपनाया जा रहा है।

करियाचल्ली द्वीप को बचाने के लिए तमिलनाडु सरकार ने 50 करोड़ रुपए की विशेष परियोजना शुरू की है। इस परियोजना में स्थानीय पंचायत और मछुआरा समुदाय की भागीदारी, विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण एजेंसियों से तकनीकी सहयोग और IIT चेन्नई जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की वैज्ञानिक सहायता सुनिश्चित किया जा रहा है।

करियाचल्ली का डूबना केवल पर्यावरणीय नुकसान नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक आपदा भी बन सकता है। यह द्वीप आसपास के मछुआरा समुदायों के लिए जीवनरेखा है। इसके डूबने से उनकी आजीविका, भोजन सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान पर खतरा मंडरा रहा है। यह द्वीप पर्यावरणीय पर्यटन और जैव विविधता संरक्षण के लिए एक आदर्श स्थल है। इसका लोप इन क्षेत्रों में भी व्यापक असर डालेगा।

करियाचल्ली द्वीप का संकट पूरे विश्व के लिए एक चेतावनी है कि अगर जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो समुद्र लाखों हेक्टेयर भूमि को निगल जायेगा, तटीय शहरों का अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा और करोड़ों लोग जलवायु शरणार्थी बन जायेगा। 




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