हरियाली, आध्यात्म और ऊर्जा का संगम है- “शमी का पेड़”

Jitendra Kumar Sinha
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आज की तनावपूर्ण जिन्दगी में हर कोई सुकून और सकारात्मक ऊर्जा की तलाश में है। पेड़-पौधे न केवल वातावरण को शुद्ध करता है बल्कि मानसिक शांति भी देता है। इन्हीं में एक अत्यंत पूजनीय और उपयोगी वृक्ष है शमी का पेड़, जिसे प्रोसोपिस सिनेरेरिया (Prosopis cineraria) कहा जाता है। राजस्थान में इसे खेजड़ी के नाम से जाना जाता है। यह पेड़ आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष और पुराणों, सभी में अपना अहमियत रखता है

शमी का पेड़ छोटे-छोटे पत्तों वाला कांटेदार पेड़ है और हरियाली से भरपूर, लेकिन संरचना में सघन और मजबूत होता है। इस पेड़ में फरवरी–मार्च के बीच गुलाबी-फूल खिलते हैं, यह विशेष रूप से राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश में उगता है।

शमी का पौधा को मुख्य द्वार के बाएं ओर खुले स्थान में लगाना चाहिए, न कि घर के अंदर या छत के नीचे लगाना चाहिए। यदि छत पर लगा रहे हैं, तो दक्षिण दिशा में रखना चाहिए।  शमी का पौधा दशमी तिथि को लगाना शुभ माना जाता है और शनिवार को लगाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

शमी के पेड़ को भरपूर धूप चाहिए। छायादार स्थानों में इसकी वृद्धि धीमी हो जाता है। इसके लिए 10°C से 20°C के बीच आदर्श तापमान होता है। ज्यादा गर्मी वाले इलाकों में इसे आंशिक छांव में रखना चाहिए। यह पेड़ कम पानी में भी जीवित रहता है। ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी सूखने न पाए, लेकिन ज्यादा नमी भी न हो। जरूरत के अनुसार ही छंटाई करना चाहिए। नियमित कटाई करने से पेड़ की वृद्धि बेहतर होती है।

शमी का पेड़ शनिदेव का प्रिय वृक्ष है, शनि दोष से मुक्ति के लिए शमी का पूजा किया जाता है। भगवान शिव को भी प्रिय है शमी, इसलिए शमी के फूल शिवजी को अर्पित किया जाता हैं। रामायण प्रसंग के अनुसार, भगवान राम ने लंका युद्ध से पहले शमी पेड़ का पूजा किया था। महाभारत संदर्भ में कहा गया है कि अर्जुन ने अपना धनुष गांडीव शमी के पेड़ में ही छिपाया था। 

शमी के पेड़ के आयुर्वेदिक फायदे भी होते हैं। इसके पत्तियों का रस आंतों के कीड़े को खत्म करता है। पत्तियों का सेवन करने से पेट की गैस, अपच और एसिडिटी में लाभकारी होता है। स्किज़ोफ्रेनिया और मानसिक रोगों के इलाज में भी उपयोगी है। वहीं श्वास और गले के रोग में छाल का काढ़ा (खांसी, जुकाम और गले की खराश में) कारगर है और सूखी छाल अल्सर को शांत करने में मदद करती है।

शमी का पेड़ लगाने के नुकसान भी होता है इसलिए सावधानियां बरतनी चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मुरझाया हुआ या सूखता हुआ शमी का पेड़ शनि की अशुभता का संकेत होता है, ऐसे पेड़ को तुरंत हटा देना चाहिए और नियमित पूजा करना चाहिए। आयुर्वेदिक साइड इफेक्ट कहा जाता है कि शमी के पत्तों या छाल का अत्यधिक सेवन उल्टी, चक्कर या एलर्जी पैदा कर सकता है। किसी भी रोग में प्रयोग से पहले वैद्य या डॉक्टर से सलाह अवश्य लेना चाहिए। 

शमी पेड़ के कुछ अचूक टोटके (Shami Ke Upay) होते हैं, जैसे- आर्थिक समस्याओं के लिए शनिवार को शमी के पेड़ की रेत (जड़) में एक सुपारी और एक सिक्का दबाना चाहिए, 7 दिनों तक तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से बेवजह खर्च रुकता हैं और धन संचय होता है। घर में सुख-शांति के लिए रोज शाम को शमी के पेड़ के नीचे धूप–दीप करना चाहिए। इससे घर की नकारात्मकता दूर होती है और शनि, राहु, केतु का असर कम होता है। मानसिक शांति के लिए शमी के पत्तों को गाय के घी में भिगोकर जलाना चाहिए। इससे वातावरण में शुद्धता और मानसिक शांति मिलता है। 

शमी का पेड़ सिर्फ एक पौधा नहीं है, बल्कि धार्मिक, आयुर्वेदिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से एक शक्तिशाली ऊर्जा का केंद्र है। यदि इसे सही दिशा और सही विधि से लगाया जाए, तो यह न केवल घर की सुंदरता बढ़ाता है बल्कि जीवन में सकारात्मकता और सुख-समृद्धि भी लाता है। हालांकि, इसके उपयोग में सावधानी भी जरूरी है ताकि इसके औषधीय लाभों का भरपूर फायदा लिया जा सके और कोई साइड इफेक्ट न हो।



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