रेस्टोरेंट में पनीर की सब्ज़ी या पनीर टिक्का खा रहे हैं, तो क्या कभी सोचा है कि वह पनीर असली है या नहीं? उपभोक्ताओं को अब यह सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि उपभोक्ता मंत्रालय जल्द ही एक नई मुहिम शुरू करने जा रहा है, जिसके तहत रेस्टोरेंट और दुकानदारों को यह स्पष्ट करना होगा कि वे असली पनीर परोस रहे हैं या सिंथेटिक (एनालॉग) पनीर।
एनालॉग पनीर दूध से नहीं, बल्कि वनस्पति तेल और अन्य घटकों से बनाया जाता है। इसमें दूध का कोई अंश नहीं होता है, और यह केवल देखने और खाने में असली पनीर जैसा लगता है। इसकी लागत कम होती है, इसलिए कुछ दुकानदार और होटल वाले इसे इस्तेमाल करके अधिक मुनाफा कमाते हैं, और उपभोक्ता से असली पनीर के दाम वसूलते हैं।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने पनीर बनाने वाली कंपनियों को निर्देश दिया है कि यदि वे एनालॉग पनीर बनाते हैं, तो उस पर 'नॉन-डेयरी' यानि गैर-दुग्ध उत्पाद का स्पष्ट लेबल लगाया जाए। लेकिन यह नियम अभी तक रेस्टोरेंट और ढाबों पर लागू नहीं होता है। यही कारण है कि उपभोक्ता को यह पता नहीं चल पाता है कि जो पनीर उसकी थाली में है, वह असली है या नकली।
उपभोक्ता मंत्रालय अब इस स्थिति में बदलाव लाने की तैयारी में है। मंत्रालय जल्द ही दिशा-निर्देश जारी करने वाला है, जिसके तहत रेस्टोरेंट, कैफे और भोजनालयों को यह अनिवार्य रूप से बताना होगा कि उनके द्वारा परोसा गया पनीर असली है या एनालॉग। ऐसा न करने पर कार्रवाई भी हो सकती है।
सूत्रों के अनुसार, एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि “उपभोक्ता को सही जानकारी मिलना उसका अधिकार है। जब वह असली पनीर की कीमत चुका रहा है, तो उसे असली पनीर ही मिलना चाहिए। कई बार उपभोक्ता स्वाद में अंतर नहीं पहचान पाता है, लेकिन स्वास्थ्य पर इसका असर पड़ सकता है।”
एनालॉग पनीर में मौजूद फैट और रसायन लंबे समय तक सेवन करने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता हैं। यह खासकर उन लोगों के लिए जोखिम भरा हो सकता है जिन्हें हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल या पेट संबंधी समस्याएं हैं। इसलिए असली पनीर और नकली पनीर में फर्क जानना बहुत ज़रूरी है।
सरकार भले ही नियम बनाए, लेकिन उपभोक्ताओं को भी सजग रहना होगा। रेस्टोरेंट में पूछें कि पनीर असली है या एनालॉग। यदि जवाब स्पष्ट न मिले या शक हो, तो शिकायत दर्ज कराएं। अब समय आ गया है कि “पनीर के नाम पर छल” की यह प्रवृत्ति खत्म हो।
