बिहार में बढ़ते अवैध हथियारों के मामलों पर नकेल कसने के लिए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर ली है। पुलिस मुख्यालय ने राज्य के सभी जिलों में आर्म्स एक्ट से जुड़े मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों के गठन का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। यदि यह प्रस्ताव स्वीकृत होता है तो यह कानून व्यवस्था को मजबूती देने की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय साबित हो सकता है।
राज्य के डीजीपी ने बताया है कि पिछले एक साल में 5000 से अधिक अपराधियों को अवैध हथियारों के साथ गिरफ्तार किया गया है, लेकिन फास्ट ट्रैक कोर्ट या विशेष अदालतों की गैरमौजूदगी के चलते इन मामलों की सुनवाई में गंभीर देरी हो रही है। नतीजा यह होता है कि अपराधी लंबे समय तक जेल से बाहर रहते हैं या बेल पर निकल जाते हैं, जिससे अपराध को बढ़ावा मिलता है।
डीजीपी ने वर्ष 2005 से 2011 के बीच लागू स्पीडी ट्रायल प्रणाली का भी उल्लेख किया है । उस दौरान सरकार ने फास्ट ट्रैक न्यायालयों के जरिए एक हफ्ते के भीतर ही दोषियों को सजा दिलवाने का रिकॉर्ड कायम किया था। उस पहल का असर भी अपराध नियंत्रण पर स्पष्ट रूप से दिखा था। अब फिर से उसी तर्ज पर विशेष अदालतों की स्थापना करने की जरूरत महसूस किया जा रहा है।
विशेष अदालतों का गठन सिर्फ एक कानूनी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह आम नागरिकों में न्याय के प्रति विश्वास बढ़ाने वाला कदम है। यदि अपराधियों को त्वरित सजा मिलेगी है तो समाज में कानून का भय उत्पन्न होगा और अपराध दर में गिरावट आ सकती है। खासकर आर्म्स एक्ट जैसे गंभीर अपराधों में त्वरित न्याय न केवल अपराधियों को सबक सिखाएगा बल्कि पुलिस और न्यायपालिका की विश्वसनीयता भी बढ़ाएगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस प्रस्ताव पर कितनी शीघ्रता से कार्य करती है। बिहार में पहले से ही न्याय व्यवस्था पर अत्यधिक दबाव है, और ऐसे में विशेष अदालतों की स्थापना एक सकारात्मक पहल माना जा रहा है। इससे न केवल अवैध हथियारों की तस्करी और उपयोग पर लगाम लगेगा, बल्कि आमजन को सुरक्षित माहौल भी मिलेगा। बिहार जैसे राज्य में जहां अवैध हथियार बड़ी आपराधिक गतिविधियों का मुख्य स्रोत हैं, वहां आर्म्स एक्ट की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन एक आवश्यक कदम है। यह न केवल कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करेगा, बल्कि समाज में अपराध के प्रति 'जीरो टॉलरेंस' की नीति को भी मजबूती देगा।
