रहस्य, शक्ति और साधना की देवी है - “छिन्नमस्ता”

Jitendra Kumar Sinha
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हिंदू तंत्र परंपरा की दस महाविद्याओं में से एक है छिन्नमस्ता देवी, शक्ति की ऐसी रहस्यमयी और प्रतीकात्मक रूप है जो देखने में जितनी भयावह प्रतीत होती हैं, भीतर से उतनी ही करुणा, आत्मनियंत्रण और आत्मबलिदान की प्रतीक हैं। उनका कटे हुए सिर के साथ आत्मविनाश का दृश्य आध्यात्मिक साधना के लिए दिव्य संदेश है ‘मैं स्वयं का अर्पण करती हूं, दूसरों के कल्याण के लिए।’

छिन्नमस्ता का रूप अत्यंत विचित्र, प्रतीकात्मक और गूढ़ होता है। उनका शरीर नग्न होता है, हाथ में खड्ग (तीखी तलवार) और कटा हुआ मस्तक होता है। उनके शरीर से रक्त की तीन धाराएं निकलती हैं, एक उनके स्वयं के कटे हुए सिर में जा रही होती है, जबकि दो उनकी सखियों डाकिनी और वाराही के मुंह में जा रही होती हैं।

कटे सिर का अर्थ होता है आत्म-अनुशासन, अहंकार का अंत। रक्त की धाराएं का अर्थ है शक्ति का संचार, आत्म-नियंत्रण, पोषण। डाकिनी और वाराही उनकी इच्छाएं और ऊर्जा की सहचरी शक्तियां हैं। नग्न स्वरूप का अर्थ है सत्य का नग्न, निर्विकार और निर्लज्ज प्रकटीकरण।

छिन्नमस्ता की कथा देवी पार्वती से जुड़ी हुई है। एक दिन जब देवी पार्वती अपनी दो सखियां “डाकिनी और वाराही” के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान कर रही थी, तब सखियों को तीव्र भूख लग गई। वह भोजन की मांग करने लगी। देवी ने उनकी बार-बार प्रार्थना सुनकर, बिना किसी अन्य जीव को कष्ट दिए, अपनी ही गर्दन काट दी और उनके मुंह में रक्त की धाराएं प्रवाहित कर दी। यह कथा बताती है कि सच्चा बलिदान वही है जो दूसरों की भलाई के लिए स्वयं का त्याग करे। यह आत्मबलिदान केवल शारीरिक नहीं, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर भी है।

देवी छिन्नमस्ता की साधना अत्यंत कठिन माना जाता है। यह राह केवल उन साधकों के लिए होता है जो मानसिक रूप से पूर्णतः स्थिर, निडर और समर्पित होते हैं। उनकी साधना भय, वासना, क्रोध, लोभ और मोह जैसे तमोगुणों पर विजय पाने का माध्यम होता है।

यह तंत्र मार्ग की उग्र साधना मानी जाती है। साधना काल में ब्रह्मचर्य, मौन, संयम और व्रत का पालन आवश्यक होता है। विशेष तिथियों जैसे अमावस्या, नवमी, और रात्रिकाल में साधना की जाती है। देवी को नैवेद्य में लाल वस्तुएं, विशेषकर रक्तवर्ण पुष्प, अर्पित किया जाता है।

छिन्नमस्ता साधना का मुख्य उद्देश्य होता है  इंद्रियों पर नियंत्रण और आत्म-शक्ति की प्राप्ति। वे साधक को चेतना के उच्चतम स्तर तक ले जाती हैं, जहां वासना, क्रोध और भय तीनों से मुक्ति मिलता है।

छिन्नमस्ता साधना से आत्मबल और आत्मसंयम की असीम शक्ति मिलता है। भूत-प्रेत बाधा और तांत्रिक प्रभावों से सुरक्षा मिलता है। कुंडलिनी जागरण की उच्च अवस्था होती है। मानसिक दृढ़ता और निर्णय क्षमता में वृद्धि होता है। आध्यात्मिक स्वतंत्रता और मोक्ष की ओर अग्रसरता रहती है।

भारत में देवी छिन्नमस्ता के कई प्राचीन मंदिर हैं जो शक्तिपीठ के रूप में माना जाता हैं। इन स्थलों पर तांत्रिक साधकों का विशेष आगमन होता है।

झारखंड के रजरप्पा (रामगढ़) में स्थित यह मंदिर देवी के छिन्नमस्ता रूप को समर्पित है। यह स्थान शक्तिपीठों में एक प्रमुख केंद्र है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु और साधक आते हैं।

छिन्नमस्तिका मंदिर, चामुंडा (हिमाचल प्रदेश), यह स्थान हिमालय की गोद में स्थित है, जहां छिन्नमस्ता की पूजा पारंपरिक तरीके से होता है। यह क्षेत्र साधकों के लिए तप और ध्यान का आदर्श स्थल माना जाता है।

छिन्नमस्ता का स्वरूप भले ही भयावह लगे, परन्तु वह चेतना और ऊर्जा के उच्चतम स्वरूप को दर्शाती हैं। उनके दर्शन से कई जीवन सूत्र निकलता है।

जब दूसरों के हित के लिए स्वयं का त्याग किया जाता है, तभी सच्ची मानवता जागती है। वासना, क्रोध और लोभ तीनों पर नियंत्रण आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। छिन्नमस्ता इस दिशा में प्रेरणा देती हैं। उनका नग्न और निर्भीक स्वरूप यह संदेश देता है कि स्त्री मात्र देह नहीं, बल्कि शक्ति, बुद्धि और चेतना का पुंज है।

आज के समाज में जहां आत्मकेन्द्रिता, भोगवाद और संवेदनहीनता बढ़ रही है, वहां छिन्नमस्ता की प्रतीकात्मकता और भी प्रासंगिक हो जाता है। उनका रूप पितृसत्तात्मक सोच को चुनौती देता है। वह स्त्री की स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय और आत्मबल को प्रतिष्ठित करती हैं। वह स्त्री देह की स्वतंत्र सत्ता की स्थापना करती हैं, जिसमें शर्म या संकोच नहीं, बल्कि आत्मज्ञान और निर्भीकता है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से छिन्नमस्ता व्यक्ति की उस अवस्था का प्रतीक हैं जहां वह अपने अंदर के भय, क्रोध, इच्छाओं को पहचानकर उन्हें नियंत्रित करता है। यह “अहंकार-मृत्यु” (ego-death) का सूचक है, जहां आत्मा का विलय परमात्मा में होता है।

आधुनिक मनोचिकित्सा में उनकी अवधारणा का उपयोग किया जाता है। आत्म-साक्षात्कार और भावनात्मक संतुलन के लिए।  PTSD, तनाव और आत्म-अवसाद की चिकित्सा में प्रेरणा के रूप में। इच्छाओं और आवेगों पर नियंत्रण के अभ्यास में।

तंत्र ग्रंथों में छिन्नमस्ता को अत्यंत शक्तिशाली और भयहरणी देवी बताया गया है। उनके मंत्र, कवच, स्तोत्र और यंत्र साधकों द्वारा रक्षित और गोपनीय रखा जाता हैं।

देवी छिन्नमस्ता का प्रमुख ग्रंथ में छिन्नमस्ता तंत्र, तंत्रसार, कुलार्णव तंत्र, देवीभागवत प्रमुख है। इन ग्रंथों में उनकी महिमा, साधना विधि, और सिद्धियों का विस्तार से उल्लेख किया गया है।

देवी छिन्नमस्ता का रहस्यपूर्ण रूप एक साधारण भक्त या दर्शक को विचलित कर सकता है, लेकिन जब हम उनके प्रतीकों को समझते हैं, तो वह जीवन की गूढ़ सच्चाइयों को उजागर करती हैं। वह तंत्र की उग्र देवी हैं लेकिन साथ ही आत्मा की कोमल चेतना भी। उनका मार्ग कठिन है, लेकिन जो साधक उस पथ पर चलता है, उसे दिव्य आत्मसाक्षात्कार की अनंत यात्रा का मार्ग प्रशस्त होता है।

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