कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता डी.के. शिवकुमार हाल के समय में "सॉफ्ट हिंदुत्व" की राह पर चलते नजर आ रहे हैं, जो कांग्रेस की पारंपरिक धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से अलग माना जा रहा है। उनकी धार्मिक गतिविधियाँ और हिंदू प्रतीकों के प्रति झुकाव ने पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह बहस को जन्म दिया है।
शिवकुमार ने हाल ही में प्रयागराज में महाकुंभ मेले में संगम पर पवित्र स्नान किया, जो कांग्रेस नेताओं के लिए असामान्य माना जाता है। इसके अलावा, उन्होंने बेंगलुरु में कावेरी आरती का आयोजन किया, जो वाराणसी की गंगा आरती से प्रेरित था। इन घटनाओं को कांग्रेस के भीतर "सॉफ्ट हिंदुत्व" की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करना है।
शिवकुमार की इन धार्मिक पहलों ने पार्टी के भीतर वैचारिक मतभेद को उजागर किया है। जहाँ कुछ नेता इसे हिंदू मतदाताओं से जुड़ने की आवश्यकता मानते हैं, वहीं अन्य, जैसे पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, ने इन गतिविधियों की उपयोगिता पर सवाल उठाया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, जो "अहिंदा" (अल्पसंख्यक, पिछड़े वर्ग और दलित) गठबंधन के समर्थक हैं, ने भी धार्मिक प्रतीकों से दूरी बनाए रखी है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिवकुमार की यह रणनीति कांग्रेस को भाजपा के हिंदुत्व एजेंडे का मुकाबला करने में मदद कर सकती है। हालांकि, इससे पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि पर असर पड़ सकता है और आंतरिक मतभेद बढ़ सकते हैं। भाजपा के कुछ नेताओं ने शिवकुमार की हिंदू धर्म के प्रति प्रतिबद्धता की सराहना की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनकी यह रणनीति विपक्षी दलों के लिए भी ध्यान देने योग्य है।
डी.के. शिवकुमार की "सॉफ्ट हिंदुत्व" की राह कांग्रेस के लिए एक दोधारी तलवार साबित हो सकती है। जहाँ यह रणनीति हिंदू मतदाताओं को आकर्षित कर सकती है, वहीं पार्टी की धर्मनिरपेक्ष छवि और आंतरिक एकता पर भी असर डाल सकती है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कांग्रेस इस वैचारिक संतुलन को कैसे बनाए रखती है।