अमेरिका–पाकिस्तान: दो चेहरे, एक मंशा – भारत को घेरो!

Jitendra Kumar Sinha
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अमेरिका में लोकतंत्र का दम भरने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक ऐसा कदम उठाया है जिसे "राजनयिक नौटंकी" कहा जाए तो भी कम होगा। पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस बुलाकर लंच कराना ना सिर्फ पाकिस्तान के जनरलों को ग्लोरिफाई करना है, बल्कि दुनिया को ये दिखाना भी कि अमेरिका आज भी अपनी चालाक दोहरी नीति से बाज़ नहीं आया है।


पाकिस्तान एक ऐसा देश है जहां सेना लोकतंत्र की छाती पर बैठकर हुकूमत चलाती है। वहाँ का प्रधानमंत्री एक नाम मात्र का मुखौटा है, असली फैसले रावलपिंडी से होते हैं – और ट्रंप प्रशासन ठीक उसी सेना को व्हाइट हाउस में बुलाकर सिर पर बिठा रहा है। क्या अमेरिका को यह नहीं मालूम कि भारत में हो रहे आतंकी हमलों की जड़ पाकिस्तान की वही सेना है जिसके चीफ को व्हाइट हाउस में बिरयानी परोसी जा रही है?


भारत के रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने बिल्कुल ठीक कहा – "जब एक देश अपने प्रधानमंत्री को छोड़ सेना प्रमुख को इंटरनेशनल डिप्लोमेसी में आगे करता है, तो वह देश नहीं, एक सैन्य अड्डा बन जाता है। और उससे हाथ मिलाना लोकतंत्र नहीं, रणनीतिक पाखंड है।"


ट्रंप की तरफ से जनरल मुनीर की तारीफ़ करना भारत के चेहरे पर तमाचा है – जिस सेना ने कश्मीर से लेकर करगिल और पठानकोट तक आग लगाई, आज उसी को अमेरिका 'शांति का दूत' बना रहा है। क्या ये वही अमेरिका नहीं है जो लोकतंत्र, मानवाधिकार और शांति की बात करता है? या फिर जब पाकिस्तान जैसा 'यूज़फुल पॉन' सामने आता है, तो सारे आदर्श चूल्हे में झोंक दिए जाते हैं?


और यह सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं – चीन और तुर्की के साथ बढ़ते सैन्य रिश्तों को देखकर भी ट्रंप आंखें मूंदे हुए हैं। अगर कोई भारतीय विश्लेषक इसे ‘नया सुरक्षा गठबंधन’ कहे तो वह गलत नहीं होगा – पाकिस्तान अमेरिका से फंड लेता है, चीन से हथियार, और भारत को पीठ पीछे वार करता है।


इस सारी नौटंकी में असली खोखलापन अमेरिकी नीति का है – जहाँ दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, लेकिन दोस्त कब दुश्मन बन जाए कोई गारंटी नहीं। पाकिस्तान ने अमेरिका से अरबों डॉलर लिए और फिर उसी पैसे से आतंकियों की फंडिंग की। और अब वही अमेरिका दुबारा उन्हें गले लगाकर “नया अध्याय” शुरू कर रहा है।


भारत ने स्पष्ट कर दिया है – पाकिस्तान से कोई बातचीत नहीं जब तक वह आतंकवाद के समर्थन से पीछे नहीं हटता। और जो देश उस समर्थन को ग्लैमराइज करे, उसे भी भारत अब दूर से देखेगा, सम्मान से नहीं, सतर्कता से।


अमेरिका और पाकिस्तान – एक अपनी चालाकी में मस्त, दूसरा अपनी सेना के ज़रिए जुगाड़ में — लेकिन भारत अब न तो चुप है, न ही झुकने को तैयार है। दुनिया देख रही है कि सच्चा लोकतंत्र कौन है, और दिखावा कौन कर रहा है।

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