बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का परिवार एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन इस बार वजह कोई चुनावी जीत या गठबंधन नहीं, बल्कि अंदरूनी पारिवारिक दरार है। तेज प्रताप यादव की हालिया गतिविधियों और बयानों से यह संकेत मिल रहे हैं कि लालू परिवार अब हरियाणा के चौटाला परिवार की राह पर बढ़ रहा है, जहां सत्ता और वर्चस्व की लड़ाई ने परिवार को दो धड़ों में बांट दिया था। तेज प्रताप यादव को पार्टी से बाहर निकाला जाना सिर्फ एक संगठनात्मक निर्णय नहीं, बल्कि एक बड़े राजनीतिक बदलाव का संकेत बनकर उभरा है।
लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव लंबे समय से अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कभी कृष्ण की तरह वेशभूषा, कभी गौशाला और सोशल मीडिया पर आध्यात्मिक पोस्ट — तेज प्रताप हमेशा मुख्यधारा से हटकर अपनी अलग शैली में राजनीति करते रहे हैं। हाल ही में जब उन्हें आरजेडी से छह साल के लिए निष्कासित किया गया, तो उन्होंने चुपचाप हटने के बजाय खुद को “दूसरा लालू यादव” बताकर नई बहस छेड़ दी। उन्होंने यह भी कहा कि वे तेजस्वी को मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं और खुद ‘किंगमेकर’ की भूमिका में रहेंगे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयानबाज़ी केवल दिखावा नहीं है, बल्कि आने वाले समय में तेज प्रताप अपनी अलग पार्टी या संगठन खड़ा कर सकते हैं। उनके बयानों और समर्थकों की गतिविधियों से संकेत मिलता है कि वे हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से दोबारा अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने की योजना में लगे हैं। यह भी गौर करने वाली बात है कि वे महुआ सीट से खुद को अलग कर चुके हैं, जो किसी समय पर उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत थी।
तेज प्रताप की बढ़ती अलगाव की राजनीति, और परिवार के भीतर चल रही खींचतान को देखकर बहुतों को हरियाणा के ओमप्रकाश चौटाला परिवार की याद आ गई है, जहां दुष्यंत और अभय चौटाला के बीच मनभेद ने जननायक जनता पार्टी और इनेलो को दो अलग-अलग दिशाओं में भेज दिया। अब बिहार में भी कुछ वैसा ही परिदृश्य बनता दिख रहा है।
राजद के भीतर तेजस्वी यादव अब निर्विवाद नेता के तौर पर उभर रहे हैं। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के साथ हुई हालिया मीटिंग में यह स्पष्ट किया गया कि पार्टी का नेतृत्व तेजस्वी के ही हाथों में रहेगा। वहीं तेज प्रताप को लेकर पार्टी ने पूरी तरह से दूरी बना ली है। यह तय है कि तेज प्रताप की वापसी फिलहाल मुश्किल है, और अगर वे अलग रास्ता अपनाते हैं तो इससे बिहार की राजनीति में नया मोड़ आ सकता है।
तेज प्रताप की इस बगावती शैली को लेकर जनता के बीच भी मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ उन्हें असली लालू यादव का उत्तराधिकारी मानते हैं, जो सिस्टम से टकराने का माद्दा रखता है, तो कुछ लोग इसे एक असंतुलित और अव्यवस्थित राजनीति मानते हैं जो केवल ड्रामा तक सीमित है।
फिलहाल स्थिति यह है कि लालू परिवार अब उस मोड़ पर खड़ा है, जहां एक रास्ता पार्टी और परिवार को एकजुट रखने की कोशिश है, और दूसरा रास्ता टकराव और विभाजन की तरफ जाता है। तेज प्रताप अगर अपनी राजनीतिक राह अलग बनाते हैं तो यह न सिर्फ राजद के लिए एक चुनौती होगी बल्कि बिहार की राजनीति में नए समीकरणों को जन्म देगा।