बिहार के उच्च शिक्षा क्षेत्र में अब एक बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है। राज्य के 115 महाविद्यालयों में प्रधानाचार्यों की नियुक्ति अब पारंपरिक प्रक्रिया की बजाय रैंडम लॉटरी सिस्टम से किया जाएगा। यह फैसला उच्च शिक्षा विभाग और राजभवन द्वारा लिया गया है, जिसके तहत नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता और गति सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।
राज्य के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंग्थू द्वारा विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, यह निर्णय डॉ. सेहली मेहता द्वारा पटना उच्च न्यायालय में दायर रिट याचिका वापस लेने के बाद लिया गया है। चूंकि अब न्यायिक अड़चन समाप्त हो चुका है, इसलिए समिति की देखरेख में लॉटरी प्रणाली से प्रधानाचार्य पदस्थापना की प्रक्रिया अपनाया जायेगा।
यह नई व्यवस्था बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (BASU), आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय (AKU) और नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी (NOU) को छोड़कर राज्य के अन्य सभी विश्वविद्यालयों के अधीन आने वाले 115 महाविद्यालयों में लागू होगा।
लॉटरी सिस्टम को अपनाने के पीछे सरकार का तर्क है कि इससे भर्ती प्रक्रिया में पक्षपात, भ्रष्टाचार और देरी से मुक्ति मिलेगा। यह एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रणाली है, जिसमें सभी पात्र उम्मीदवारों को समान अवसर मिलेगा। साथ ही, इससे विवादों की संभावना भी कम हो जायेगा।
राजभवन और शिक्षा विभाग ने स्पष्ट किया है कि समस्त कुलपति जल्द से जल्द अनुशंसित प्रधानाचार्यों की नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर रिपोर्ट भेजेगे। राज्य सरकार इस पहल को उच्च शिक्षा में प्रशासनिक सुदृढ़ता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मान रही है।
कुछ शिक्षाविद इस फैसले को समय की माँग मानते हैं। उनका कहना है कि लंबे समय से महाविद्यालयों में प्रधानाचार्यों की नियुक्तियाँ रुकी हुई थी और कई कॉलेज प्रभारी के भरोसे चल रहा था। ऐसे में यह पहल कॉलेजों की शैक्षणिक गुणवत्ता को सुधारने में मदद करेगी। जबकि, कुछ विशेषज्ञों ने यह सवाल भी उठाया है कि क्या लॉटरी जैसी प्रणाली से प्रशासनिक दक्षता और कॉलेज की जरूरतों को नजरअंदाज नहीं किया जा रहा है? क्या यह सुनिश्चित किया गया है कि संबंधित प्रधानाचार्य उस कॉलेज के शैक्षणिक परिवेश और आवश्यकताओं के अनुकूल होंगे?
बिहार में उच्च शिक्षा प्रणाली में यह लॉटरी आधारित तैनाती एक अनूठा प्रयोग है, जो निश्चित रूप से चर्चाओं और चर्चाओं का विषय बनेगा। यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो यह अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। फिलहाल, शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालयों की नजरें इस नई प्रणाली की सफलता पर टिकी हुई हैं।

