तेज प्रताप यादव के निष्कासन के बाद राजद के भीतर उठे तूफान ने अब एक नया मोड़ ले लिया है। इस मामले में तेज प्रताप को पार्टी से छह साल के लिए बाहर किए जाने के बाद पूर्व कृषि मंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता सुधाकर सिंह ने उनका खुला समर्थन कर दिया है। सुधाकर सिंह का यह कदम पार्टी के भीतर गहरे मतभेद और संभावित बगावत का संकेत देता है।
सुधाकर सिंह ने तेज प्रताप के निष्कासन को अलोकतांत्रिक बताया और कहा कि पार्टी में अब विचारों की जगह परिवारवाद और तानाशाही हावी होती जा रही है। उनका कहना था कि तेज प्रताप ने सच बोला, इसलिए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। यदि कोई भी नेता सच्चाई बोलता है और उसे पार्टी से निकाला जाता है, तो यह लोकतंत्र नहीं बल्कि तानाशाही का संकेत है।
तेज प्रताप यादव ने भी निष्कासन के बाद अपने बयान में इसे साजिश बताया और कहा कि कुछ 'जयचंद' उनकी छवि खराब करने में लगे हैं। उन्होंने खुद को 'क्रांतिकारी' करार देते हुए पार्टी के भीतर के षड्यंत्रों को उजागर करने की बात कही।
सुधाकर सिंह का समर्थन सिर्फ एक व्यक्तिगत स्टैंड नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत भी माना जा रहा है। यह दर्शाता है कि पार्टी के अंदर एक ऐसा वर्ग है जो मौजूदा नेतृत्व की कार्यशैली से असंतुष्ट है। यह संभव है कि आने वाले समय में तेज प्रताप और सुधाकर सिंह जैसे नेता एक नया राजनीतिक धड़ा खड़ा करें या पार्टी के भीतर से ही विरोध की एक सशक्त लहर उठे।
सुधाकर सिंह पहले भी पार्टी लाइन से अलग बयान देते रहे हैं। चाहे वह नीतीश सरकार के खिलाफ तीखी आलोचना हो या संगठनात्मक कामकाज में पारदर्शिता की मांग – उन्होंने कई बार राजद नेतृत्व को असहज किया है। ऐसे में उनका तेज प्रताप के पक्ष में उतरना इस बात का संकेत है कि राजद के भीतर केवल नेतृत्व को लेकर ही नहीं, बल्कि विचारधारा और कार्यशैली को लेकर भी मतभेद गहराते जा रहे हैं।
अब सवाल उठता है कि क्या राजद इस आंतरिक खींचतान से उबर पाएगी? क्या लालू यादव इन मतभेदों को सुलझा पाएंगे या पार्टी एक बड़े संकट की ओर बढ़ रही है? बिहार की राजनीति इस वक्त बड़े बदलाव के मुहाने पर खड़ी है, और यह घटनाक्रम आगे चलकर राजद की दिशा और दशा दोनों तय कर सकता है।
