मेवाड़ का हरिद्वार - 1400 वर्ष पुराना त्रिवेणी संगम - यहां शिवलिंग स्वयं प्रकट हुए हैं

Jitendra Kumar Sinha
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राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित बीगोद का त्रिवेणी संगम केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा पवित्र तीर्थ है जहां आस्था, परंपरा और अध्यात्म का गहरा संगम होता है। यह स्थान “मेवाड़ का हरिद्वार” कहलाता है और सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ता है। बनास, बेड़च और मैनाली नदियों के संगम पर स्थित इस स्थल की महत्ता इसलिए भी विशेष है क्योंकि यहां का शिवलिंग लगभग 1400 वर्षों पूर्व स्वयं प्रकट हुआ माना जाता है।

भीलवाड़ा जिले के बीगोद कस्बे के पास स्थित त्रिवेणी संगम वह स्थान है जहां तीन नदियाँ, बनास, बेड़च (बेड़व) और मैनाली,  एक-दूसरे में मिलती हैं। इन नदियों का संगम सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि त्रिवेणी में स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाता हैं और मोक्ष की प्राप्ति होता है।

यह संगम स्थल राजस्थान के हरिद्वार के रूप में प्रसिद्ध है क्योंकि यहां न केवल स्नान की परंपरा है, बल्कि अस्थियों का विसर्जन, हवन, जलाभिषेक और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान भी सम्पन्न होता है।

त्रिवेणी संगम की सबसे प्रमुख विशेषता है यहां स्थित प्राचीन शिवलिंग, जिसे स्वयंभू यानि प्रकट माना जाता है। लोकमान्यताओं के अनुसार, बनास, बेड़व और मैनाली नदियों के संगम पर करीब 1400 वर्ष पूर्व यह शिवलिंग स्वतः धरती से प्रकट हुआ था। यह कोई सामान्य शिवलिंग नहीं है, बल्कि चमत्कारी और अत्यंत जागृत शिवलिंग माना जाता है।

पंडित हरिचंद्र भट्ट के अनुसार, पहले उदयपुर के महाराणा स्वरूप सिंह जी इस मंदिर की पूजा सामग्री की व्यवस्था वर्षभर के लिए करवाते थे। यह दर्शाता है कि राजपरिवार भी इस तीर्थस्थल की महत्ता को भली-भांति समझता था। वर्तमान में यह दायित्व स्थानीय श्रद्धालुओं और सेवकों द्वारा निभाया जा रहा है।

सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है और इस पावन मास में त्रिवेणी संगम पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है। राजस्थान ही नहीं, मध्यप्रदेश, गुजरात और उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों से भी कांवड़िए और शिवभक्त यहां दर्शन करने आते है।

श्रद्धालु त्रिवेणी के जल से शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। संगम में स्नान करने से जीवन के पाप मिटते हैं, ऐसी मान्यता है। विभिन्न परिवार अपने पूर्वजों की शांति और आशीर्वाद के लिए हवन करवाते हैं। गंगा की तरह, यहां भी त्रिवेणी नदी में अस्थियों का विसर्जन किया जाता है। यहाँ अलग-अलग घाट अस्थि विसर्जन और स्नान हेतु बनाए गए हैं ताकि श्रद्धालुओं को सुविधा हो।

त्रिवेणी संगम पर सालभर श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है, लेकिन महाशिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा जैसे विशेष अवसरों पर यहां विशाल मेला का आयोजन होता है।

महाशिवरात्रि मेला में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दराज से आते हैं। रातभर भजन-कीर्तन, आरती और रात्रि जागरण होता है। विशेष जलाभिषेक और रुद्राभिषेक की व्यवस्था किया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा मेला मेवाड़ क्षेत्र का प्रमुख मेला होता है। घाटों की सजावट, धार्मिक झांकियां और प्रसाद वितरण विशेष आकर्षण होता है। इन मेलों में लोककला, सांस्कृतिक प्रस्तुतियां, शिव बारात जैसे कार्यक्रम श्रद्धालुओं को दिव्यता का अनुभव कराता है।

त्रिवेणी संगम में स्थित मुख्य शिवलिंग के अतिरिक्त एक और विशेष मंदिर है जिसमें द्वादशी शिवलिंग स्थापित है। द्वादशी तिथि को विशेष पूजा करने से रोग, दरिद्रता और संकट दूर होता है, ऐसी मान्यता है। यह शिवलिंग स्थापत्य दृष्टि से भी आकर्षक है और हर आने वाला श्रद्धालु इसे देखने अवश्य जाता है।

हाल के वर्षों में त्रिवेणी संगम क्षेत्र में सुविधाओं में भी बढ़ोतरी की गई है। श्रद्धालुओं के लिए स्नान घाट और चेंजिंग रूम बनाए गए हैं। पेयजल, चिकित्सा सुविधा और लंगर व्यवस्था सावन मास में निशुल्क किया जाता है। स्थानीय प्रशासन द्वारा ट्रैफिक और सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किया जाता है। इसके अतिरिक्त स्थानीय धार्मिक समितियाँ और स्वयंसेवी संगठन मेले के दौरान स्वच्छता और व्यवस्था बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।

त्रिवेणी संगम न केवल एक तीर्थस्थल है, बल्कि मेवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। यहां की धार्मिक परंपराएं, स्थानीय पंडितों की पीढ़ियों से चली आ रही सेवा परंपरा, और आमजन की श्रद्धा इस स्थल को जीवंत बनाए हुए हैं। यहां मनाया जाने वाला भविष्यवाणी पर्व, पूर्वज तर्पण अनुष्ठान, नवग्रह पूजा और कुंडीय यज्ञ भी इसे एक समग्र धार्मिक केंद्र बनाता है।

त्रिवेणी संगम, मेवाड़ का हरिद्वार केवल शब्द नहीं, एक जीवंत श्रद्धा, एक आध्यात्मिक लहर, और एक ऐतिहासिक विरासत है। जिन श्रद्धालुओं के पास हरिद्वार या काशी जाने की सुविधा नहीं होती है, उनके लिए यह स्थान किसी चारधाम से कम नहीं है। 1400 वर्षों से अनवरत जलाभिषेक सहन करता शिवलिंग, तीन पवित्र नदियों का संगम, और हजारों श्रद्धालुओं की आत्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण यह स्थान हर व्यक्ति को एक बार जीवन में अवश्य देखना चाहिए।


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