जब हम जेल की कल्पना करते हैं, तो हमारे दिमाग में कैद, बंद दरवाजे, समय की मार और आत्म-प्रायश्चित का दृश्य बनता है। लेकिन अमेरिका में यह सिर्फ इतना नहीं है। वहाँ की जेल अब केवल सजा की जगह नहीं रहीं, बल्कि "कमाई का स्रोत" बन चुका हैं। कैदियों से वहाँ उनके रहने, खाने और चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए भी शुल्क वसूला जाता है। यह शुल्क न केवल उनके ऊपर आर्थिक बोझ डालता है, बल्कि उन्हें एक अंतहीन कर्ज के दलदल में भी धकेल देता है।
एडवोकेसी ग्रुप 'कैम्पेन जीरो' की हाल की रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि अमेरिका के 48 राज्यों में से 42 प्रांतों और वाशिंगटन डीसी में कैदियों से विभिन्न प्रकार का फीस लिया जाता है। वयस्कों से कमरे और भोजन का शुल्क 42 प्रांत और वाशिंगटन डीसी में लागू है। वयस्कों से चिकित्सा शुल्क 43 प्रांत में लागू है। युवाओं से कमरा और भोजन शुल्क 33 प्रांत और डीसी में लागू है। युवाओं से चिकित्सा शुल्क 31 प्रांत और डीसी में लागू है। सभी श्रेणियों के लिए शुल्क निरस्त कैलिफोर्निया, इलिनोइस में है।
जेलों में कैदियों को काम पर लगाया जाता है, जैसे कपड़े सिलना, सफाई, बागवानी, रसोई में मदद आदि। इसके बदले में उन्हें बहुत कम वेतन मिलता है, कुछ प्रांतों में तो महज $0.13 (करीब 11 रुपये) प्रति घंटे।
लेकिन विडंबना देखिए, उसी मजदूरी से उनके ऊपर लगे रहने, खाने और इलाज के शुल्क काट लिए जाते हैं। नतीजा यह है कि कैदी कमाते हैं = कटौती होती है, बचत नहीं कर पाते हैं, जेल से निकलने पर उनके पास कुछ नहीं रहता है और दोबारा अपराध में फंसने का संभावना बढ़ जाता है।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि युवाओं (नाबालिगों) से भी शुल्क वसूला जाता है। कुछ राज्यों में माता-पिता को उनके बच्चों के जेल में रहने का खर्च देना पड़ता है। अगर नहीं दे पाए, तो किशोर के जेल में रहने का अवधि बढ़ सकता है। इससे पारिवारिक तंत्र टूटता है, और बच्चों की समाज में वापसी और कठिन हो जाता है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कई अमेरिकी सांसदों और विधायकों को इस प्रणाली की जानकारी तक नहीं है। वे सोचते हैं कि जेल का खर्च सरकार उठाती है। लेकिन हकीकत यह है कि करीब 18 लाख कैदी खुद अपने ऊपर खर्च चुका रहे हैं। यह उस अदृश्य वित्तीय हिंसा की ओर संकेत करता है, जो लोकतंत्र के नाम पर हो रहा है।
इन वसूलियों का असर समाज के कमजोर वर्गों पर सबसे ज्यादा होता है। जिसमें गरीब अफ्रीकी-अमेरिकी और लातीनी समुदाय, मानसिक रोग से पीड़ित लोग, नशे की लत वाले व्यक्ति, कम पढ़े-लिखे और बेरोजगार युवा शामिल है। इनमें से अधिकांश लोग पहले से ही गरीबी में फंसे होते हैं। जेल में जाने के बाद उन्हें कर्ज में और गहराई तक धकेला जाता है।
18वीं सदी में यूरोप में "डेब्टर्स प्रिजन" हुआ करता था, जहाँ किसी को कर्ज न चुकाने के लिए जेल भेज दिया जाता था। अमेरिका में अब यह प्रणाली पलट कर सामने आई है। अब कैदी पहले से ही गरीब होता हैं, और जेल जाकर वह कर्जदार बन जाता है। यह सामाजिक अन्याय की एक नई परत है, जो आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर छिपी है।
जेलों का उद्देश्य सजा देना नहीं, पुनर्वास (Rehabilitation) होना चाहिए। लेकिन जब कैदी कर्ज में डूब कर निकलता हैं तो उनके पास घर नहीं होता है, रोजगार नहीं मिलता है, समाज में सम्मान नहीं होता है और कर्ज चुकाने का दबाव होता है। इसका परिणाम होता है दोबारा अपराध करना।
अमेरिकी जेल प्रणाली पर पहले से ही यह आरोप लगता रहा है कि यह नस्लभेदी है (अफ्रीकी-अमेरिकी पुरुषों की संख्या disproportionately अधिक है), लाभ आधारित है (Private Prisons और उनकी मुनाफाखोरी), अब यह शुल्क आधारित दंड प्रणाली इसे और अधिक अमानवीय बनाता है।
कुछ देशों में जेल शुल्क की अवधारणा है, लेकिन वहां शुल्क बहुत मामूली होता है, गरीब कैदियों को छूट दी जाती है, चिकित्सा मुफ्त होती है और पुनर्वास पर बल होता है। भारत, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों में सरकार जेल खर्च वहन करती है। अमेरिका इस दृष्टिकोण से एक अपवाद बन गया है।
अमेरिका में कई मानवाधिकार संगठन, जैसे Campaign Zero, Prison Policy Initiative, ACLU (American Civil Liberties Union)। इन नीतियों के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे हैं। इनका कहना है कि "सजा को कर्ज से न जोड़ा जाए"। कैदियों को आर्थिक रूप से पुनर्निर्माण का मौका दिया जाना चाहिए।
