आस्था का केंद्र है - जोधपुर का “अचलनाथ महादेव मंदिर”

Jitendra Kumar Sinha
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राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में स्थित जोधपुर शहर केवल किलों, महलों और संस्कृति के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दिव्य शिवालयों के लिए भी प्रसिद्ध है। इन्हीं में से एक है  “अचलनाथ महादेव मंदिर”, जो न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि एक ऐतिहासिक, स्थापत्य और सामाजिक चेतना का संगम भी है। यह मंदिर जोधपुरवासियों की आत्मा में बसा है और वर्षों से श्रद्धा का अचल केन्द्र बना हुआ है।

इस मंदिर का इतिहास 507 वर्ष पुराना है। इसे सिरोही के राजा राव जगमाल की पुत्री रानी नानक देवी ने ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी को स्थापित किया था। मंदिर का नाम ‘अचलनाथ’ पड़ने के पीछे एक अद्भुत कथा है, जब मंदिर निर्माण के दौरान यहाँ स्थित शिवलिंग को स्थानांतरित करने का प्रयास किया गया, तो वह हिला ही नहीं, यानि अचल रहा। इसे भगवान शिव की इच्छा माना गया और मंदिर का नाम ‘अचलनाथ’ पड़ गया।  

 “अचलनाथ महादेव मंदिर”, अपने स्थापत्य की दृष्टि से भी अत्यंत विशिष्ट है। मंदिर का शिखर 51 फीट ऊंचा है, जो जमीन से आकाश की ओर उठती श्रद्धा का प्रतीक है। संगमरमर से तराशी गई मूर्तियां, देव प्रतिमाएं और स्तंभ मंदिर की कलात्मक भव्यता को दर्शाता है। गर्भगृह में दो शिवलिंग स्थापित हैं,  दाईं ओर अचलनाथ और बाईं ओर नर्मदेश्वर। मंदिर के शिलालेखों पर गीता के श्लोक और गायत्री मंत्र की उत्कीर्णता इसे एक धार्मिक ग्रंथालय का रूप देता है। इसके दो भव्य प्रवेश द्वार हैं,  एक कटला बाजार की ओर और दूसरा लखारा मेन बाजार की दिशा में।

अचलनाथ मंदिर में प्रतिदिन सुबह 4 बजे से रात 11 बजे तक श्रद्धालुओं की आवाजाही रहता है। मंदिर में वर्ष भर विविध धार्मिक अनुष्ठान, महा रुद्राभिषेक, आरती, अन्नदान और भंडारे का आयोजन किया जाता है। विशेष रूप से श्रावण मास में मंदिर की गतिविधियां चरम पर होती हैं। श्रावण सोमवार को विशेष फूल मंडली,
शिव ब्यावले का वाचन, शिव पुराण कथा, रुद्राभिषेक और कव्वाली/भजन संध्या का आयोजन श्रद्धालुओं को एक दिव्य अनुभव प्रदान करता है।

मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन बावड़ी न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए पवित्र जल का स्रोत है, बल्कि यह आज भी क्षेत्रवासियों की प्यास बुझाने का माध्यम बना हुआ है। यह बावड़ी राजस्थान की जल संरक्षण परंपरा का जीवंत उदाहरण है।

मंदिर केवल पूजा-अर्चना का स्थल नहीं है, बल्कि यह सेवा और समाज के लिए एक केंद्र बिंदु भी है। मंदिर में भोजनशाला, संत निवास और एक विशाल सत्संग सभागार उपलब्ध है, जहां समाजहित में कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

1982 से मंदिर से जुड़े व्यवस्थापक कैलाशचंद्र के अनुसार, यह स्थान वर्षों से नागा साधुओं की सेवा परंपरा, गुरु-शिष्य परंपरा और सनातन मूल्यों के संरक्षण का केंद्र बना हुआ है। परिसर में पूर्व महंतों की 12 समाधियां स्थित हैं, जो भक्ति और त्याग का प्रतीक हैं।

मंदिर की दिव्यता केवल इसके शिवलिंग या स्थापत्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राजस्थानी संस्कृति, मारवाड़ी लोक परंपराओं और सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों का एक जीवंत प्रतीक है।

यहाँ आने वाला हर श्रद्धालु न केवल ईश्वर की भक्ति में लीन होता है, बल्कि वह सांस्कृतिक विरासत से भी जुड़ता है। मंदिर की दीवारों पर गीता के श्लोक, गायत्री मंत्र और सांस्कृतिक चित्रांकन, एक प्रकार से पीढ़ियों को धार्मिक शिक्षा और संस्कारों का संदेश देता है।

जोधपुर नगर के लिए अचलनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थान नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक हृदय है।यहाँ के प्रमुख पर्व महाशिवरात्रि, श्रावण मास, नाग पंचमी, गुरुपूर्णिमा। इस मंदिर को ही केंद्र बनाकर मनाए जाते हैं।
नगर के कई सामाजिक संगठन, भक्त मंडलियाँ, और धार्मिक संस्थाएं मंदिर से जुड़ी हुई हैं, जो इसके सामाजिक दायरे को और विस्तारित करता है।

पिछले कुछ वर्षों में मंदिर परिसर के संरक्षण और सौंदर्यीकरण हेतु कई प्रयास किए गए हैं, जिसमें मंदिर की दीवारों और मंडपों का जीर्णोद्धार, प्रकाश व्यवस्था का आधुनिकीकरण, पेयजल और स्वच्छता के लिए नवीन सुविधाएं, और श्रद्धालुओं के लिए विश्राम स्थल का विकास। यह पहल बताता है कि मंदिर प्रबंधन न केवल आस्था का, बल्कि विरासत का भी संरक्षण कर रहा है।

 “अचलनाथ महादेव मंदिर”, केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि संस्कारों की पाठशाला भी है। यहाँ आने वाले बच्चे, युवा और बुजुर्ग एक साथ मिलकर भक्ति, सेवा और संस्कृति का अनुभव करते हैं। यह धाम आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाता है कि- "ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, आस्था में वास करते हैं। और जब आस्था अचल हो, तो वही स्थल 'अचलनाथ' कहलाता है।"

 “अचलनाथ महादेव मंदिर”, केवल शिवलिंग का स्थान नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की समृद्ध परंपरा, राजस्थानी गौरव, और सेवा भावना का सम्मिलन है। यह मंदिर बताता है कि आस्था अगर अडिग हो, तो वह शक्तिशाली, कल्याणकारी और चिरस्थायी हो जाता है।

आज भी जब जोधपुर की गलियों से होकर मंदिर की घंटियों की आवाज गूंजती है, तो लगता है जैसे स्वयं शिव अचल रूप में यहाँ विराजमान हैं, हर भक्त की प्रार्थना को सुनते हुए, हर सेवा को स्वीकार करते हुए।



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