राजस्थान के शिवाड़ का “घुश्मेश्वर महादेव”

Jitendra Kumar Sinha
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श्रावण मास में जब संपूर्ण भारत शिवभक्ति में सराबोर होता है, तब राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िले के शिवाड़ कस्बे में स्थित घुश्मेश्वर महादेव मंदिर एक अलौकिक आकर्षण का केंद्र बन जाता है। यहाँ पर 12वें और अंतिम ज्योतिर्लिंग के रूप में माने जाने वाले स्वयंभू शिवलिंग की पूजा होती है, जो प्रतिदिन 16 घंटे तक जलहरी में जलमग्न रहते हैं। प्रकृति की गोद में बसे देवगिरी पर्वत की तलहटी में स्थित यह मंदिर आध्यात्मिकता, इतिहास और आस्था का अनूठा संगम है।

भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम ज्योतिर्लिंग के रूप में घुश्मेश्वर महादेव की मान्यता अत्यंत प्राचीन और पौराणिक है। शिव महापुराण के कोटि रुद्र संहिता में इसका उल्लेख अध्याय 32-33 में मिलता है। घुश्मेश्वर नाम, घुश्मा नामक एक परम शिवभक्त महिला से जुड़ा हुआ है जो प्रतिदिन 108 पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका पूजन करती थी और उन्हें तालाब में विसर्जित करती थी। भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और स्वयंभू रूप में प्रकट होकर इस पवित्र स्थान को अपनी उपस्थिति से पावन किया।

देवगिरी पर्वत की तलहटी में बना घुश्मेश्वर महादेव मंदिर सिर्फ आध्यात्मिक केन्द्र नहीं बल्कि प्रकृति प्रेमियों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। हरे-भरे जंगलों, शांत वातावरण और पहाड़ी वादियों से घिरा यह मंदिर श्रद्धा के साथ-साथ शांति की भी अनुभूति कराता है। मंदिर परिसर में अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और ग्यारह अन्य ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां भी स्थित हैं, जिससे यह एक समग्र तीर्थ स्थल का रूप ले चुका है।

घुश्मेश्वर महादेव का इतिहास भी उतना ही गौरवशाली है जितना इसका धार्मिक महत्व। महमूद गजनवी ने इस मंदिर पर हमला किया था। इस युद्ध में स्थानीय राजा चन्द्रसेन गौड़ और उनके पुत्र इन्दसेन गौड़ वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनके स्मारक आज भी मंदिर के समीप मौजूद हैं। अलाउद्दीन खिलजी द्वारा मंदिर पर किए गए आक्रमण का भी उल्लेख मिलता है, जिसने इस मंदिर की ऐतिहासिकता को और भी गहरा कर दिया है।

यहां का सबसे अद्भुत तथ्य है कि शिवलिंग प्रतिदिन 16 घंटे जल में डूबा रहता है। यह दृश्य देखने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। यह जलहरी में निरंतर जलाभिषेक जैसी प्रतीति कराता है और ऐसा लगता है मानो स्वयं प्रकृति शिवजी का पूजन कर रही हो।श्रद्धालु इस दृश्य को देखकर भावविभोर हो जाते हैं और मानते हैं कि यहां शिवजी का साक्षात वास करते है।

श्रावण मास में यहां विशेष पूजा-अर्चना, रुद्राभिषेक, शिव नाम संकीर्तन, और कांवड़ यात्रा जैसी धार्मिक गतिविधियां होती हैं। श्रावण सोमवार को तो यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। मंदिर प्रबंधन द्वारा विशेष प्रबंध किए जाते हैं। भोर में मंगल आरती, दोपहर में महाभिषेक और रात में विशेष शृंगार दर्शन होता हैं।

घुश्मा, एक अत्यंत धार्मिक महिला थी, जो प्रतिदिन शिवलिंग बनाकर उन्हें पूजा करती और तालाब में विसर्जित करती थी। जब किसी ने छल से उसके पुत्र की हत्या कर दी, तब भी उसने रुदन नहीं किया बल्कि शिव का ध्यान करती रही। शिवजी उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए और पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया। घुश्मा की इसी निष्ठा के कारण शिव ने यहां 'घुश्मेश्वर' रूप में विराजमान होने का वरदान दिया।

घुश्मेश्वर मंदिर वास्तुशिल्प की दृष्टि से भी बेहद सुंदर है। प्राचीन पत्थरों से निर्मित यह मंदिर अपने शिखर, मंडप, गर्भगृह और अर्धमंडप के कारण द्रविड़ और नागर शैली की झलक देता है। भीतर शिवलिंग की स्थापना जलहरी में है और इसके चारों ओर आकर्षक काले पत्थर की जालियां हैं। मंदिर परिसर में स्थित शिवालय सरोवर, मंदिर को और पवित्र बनाता है।

स्कंद पुराण, शिव पुराण, और लिंग पुराण में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का विशद वर्णन है। ज्योतिर्लिंगों के क्रम में इसे 12वां और अंतिम माना गया है। इसके दर्शन मात्र से ही सभी पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा शास्त्रों में वर्णन मिलता है।

घुश्मेश्वर मंदिर का स्थानिक महत्व भी अत्यधिक है। यह न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि आसपास के प्राकृतिक दृश्य, पर्वत श्रृंखलाएं, और स्थानीय संस्कृति इसे पर्यटन स्थल भी बनाते हैं। श्रद्धालु यहां दर्शन के साथ-साथ आसपास के झरनों, वनों और प्राचीन किलों का भ्रमण भी कर सकते हैं।

श्रावण मास में विशाल मेला लगता है जिसमें स्थानीय हस्तशिल्प, भक्ति संगीत, लोकगीत और नृत्य देखने को मिलते हैं। घुश्मेश्वर मेले में मिलने वाली प्रसिद्ध शिववाटी मिठाई, कांसे के दीपक, और हस्तनिर्मित पूजा सामग्री पर्यटकों को लुभाती हैं।

मंदिर का संचालन एक विश्वास मंडल द्वारा किया जाता है। यहां धर्मशालाएं, भोजनालय, और शुद्ध पेयजल जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु ऑनलाइन दर्शन पंजीकरण और ई-रुद्राभिषेक जैसी डिजिटल सुविधाएं भी शुरू की गई हैं। जो भी श्रद्धालु यहां आता है, उसे इस पवित्र धाम में एक अद्वितीय ऊर्जा, शांति, और आत्मिक चेतना की अनुभूति होती है। 

घुश्मेश्वर महादेव मंदिर मात्र एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि श्रद्धा, इतिहास और प्रकृति का संगम है। यहां की हर ईंट, हर जलधारा, और हर भजन यह संदेश देती है कि यदि श्रद्धा सच्ची हो, तो स्वयं शिव प्रकट हो जाते हैं।



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