भारत की युवा आबादी और तकनीकी दक्षता ने पिछले दो दशकों में देश को वैश्विक तकनीकी नक्शे पर मजबूती से स्थापित कर दिया है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन, और मेटा जैसी दिग्गज कंपनियों ने भारत को एक टेक्नोलॉजी हब के रूप में देखा है। लेकिन जब अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप जैसी शख्सियतें सार्वजनिक रूप से यह सलाह देती हैं कि इन कंपनियों को भारत में हायरिंग रोक देनी चाहिए, तो यह केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं रह जाता है, बल्कि वैश्विक रणनीतिक और सामाजिक-आर्थिक संकट का संकेत बन जाता है।
भारत हर साल लगभग 15 लाख इंजीनियर तैयार करता है। इन युवाओं में से लाखों का सपना होता है गूगल, माइक्रोसॉफ्ट या अमेजन जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने का। 2024 में ही गूगल ने भारत में करीब 2000 नई नियुक्तियां की थीं। अगर ऐसी नियुक्तियां बंद हो जाती हैं, तो लाखों युवाओं का कॅरियर अधर में लटक जाएगा।
ग्लोबल कंपनियों की हायरिंग ने छोटे शहरों जैसे इंदौर, जयपुर, भुवनेश्वर, विशाखापट्टनम, कोच्चि आदि को डिजिटल मैप पर लाया है। वहाँ से “वर्क फ्रॉम होम/रिमोट वर्किंग” के जरिए हजारों लोग वैश्विक प्रोजेक्ट्स में शामिल हुए हैं। यदि भर्तियां रुकती हैं, तो इन शहरों की डिजिटल और आर्थिक ग्रोथ थम सकती है।
भारत में लगभग 1 लाख से अधिक स्टार्टअप्स रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से ज्यादातर टेक आधारित हैं। ये स्टार्टअप्स अपनी सफलता के लिए उन अनुभवी पेशेवरों पर निर्भर रहते हैं जो पहले गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों में काम कर चुके होते हैं।
ग्लोबल कंपनियों की हायरिंग से मिलने वाला ट्रेंड और प्रोफेशनलिज्म स्टार्टअप्स को मजबूती देता है। यदि इन कंपनियों में नई नियुक्तियां रुकती हैं, तो अनुभव की कड़ी टूटेगी, जिससे स्टार्टअप इकोसिस्टम में दक्षता और नवाचार प्रभावित होगा।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के अनुसार, भारत में टेक सेक्टर की बेरोजगारी दर 6.8% है, जो कि देश की औसत बेरोजगारी से भी ज्यादा है। यदि गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां हायरिंग रोक देती हैं, तो यह आंकड़ा 10% से अधिक हो सकता है।
भारत में बड़ी संख्या में कोडिंग बूटकैंप्स, ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट और टेक स्किल आधारित पाठ्यक्रम युवा तैयार कर रहा है। जब हायरिंग नहीं होगी, तो इन संस्थानों में एडमिशन घटेंगे और वे आर्थिक संकट में आ सकता है।
गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां भारत से न केवल सस्ता बल्कि कुशल तकनीकी टैलेंट प्राप्त करती हैं। भारत की लगभग 40% टेक वर्कफोर्स अमेरिकी प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है। यदि भारत में हायरिंग रुकती है, तो इन कंपनियों को वही काम अमेरिका या यूरोप में करवाना पड़ेगा, जिससे उनकी लागत 20-25% तक बढ़ सकता है।
भारत और अमेरिका के बीच IT व साफ्टवेयर सेक्टर में 60 बिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार है। यह साझेदारी तभी संभव है जब दोनों देश आपसी सहमति और सहभागिता से आगे बढ़ें। हायरिंग रोकना इस संबंध में भरोसे की कमी पैदा कर सकता है।
IT और टेक्नोलॉजी सेक्टर भारत की जीडीपी में 7.5% का योगदान करता है। इसमें काम करने वाले प्रोफेशनल्स टैक्स देते हैं, सेवाएं खरीदते हैं और शहरी अर्थव्यवस्था को सक्रिय बनाए रखते हैं।
गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां भारत में अरबों डॉलर का एफडीआई लाती हैं। हायरिंग रोकने से इस निवेश में कमी आ सकता है, जिससे बेंगलूरु, हैदराबाद, नोएडा, पुणे और चेन्नई जैसे शहरों की लोकल इकोनॉमी को भारी झटका लग सकता है।
अगर विदेशी कंपनियां नियुक्तियां रोकती हैं, तो TCS, Infosys, HCL, Zoho जैसी भारतीय IT कंपनियों को बेहतरीन मैनपावर मिल सकता है, जो पहले ग्लोबल कंपनियों की ओर आकर्षित होते थे।
'मेक इन इंडिया', 'डिजिटल इंडिया', और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसे अभियानों को अब और भी गहराई से लागू करने का समय आ गया है। भारत के पास अब अवसर है कि वह अपने खुद के गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों को जन्म दे।
इस संकट के दौर में सरकार को चाहिए कि वह स्टार्टअप्स को सब्सिडी, टैक्स ब्रेक्स और स्किल सपोर्ट दे ताकि वे इस टैलेंट को आकर्षित कर सकें और आत्मनिर्भर टेक्नोलॉजी सिस्टम का निर्माण कर सकें।
भारत को चाहिए कि वह रिसर्च और इनोवेशन पर सालाना GDP का 2% से अधिक खर्च करे। सरकारी विश्वविद्यालय और प्राइवेट कंपनियां मिलकर नई टेक्नोलॉजी पर काम करें। छोटे शहरों और गांवों में डिजिटल सेंटर, लैब्स और ट्रेनिंग हब बनाए जाएं। भारत से प्रतिभा पलायन रोकने के लिए उच्च वेतन, स्टार्टअप सब्सिडी और टैक्स छूट दी जाए।
गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों की हायरिंग पर रोक निश्चित रूप से भारत के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय हो सकता है। लेकिन हर चुनौती अपने साथ एक अवसर भी लेकर आती है। यह भारत के लिए अवसर है कि वह विदेशी टेक्नोलॉजी पर निर्भरता से आगे बढ़कर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए।
इस संकट में भारत यदि सही नीति, निवेश और नवाचार का मार्ग अपनाता है, तो आने वाला समय भारत को न केवल ग्लोबल टेक सुपरपावर बनाएगा, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी देगा कि भारत केवल उपभोक्ता नहीं, निर्माता भी बन सकता है।
