जहां अग्नि देती है दर्शन, और मां करती हैं चमत्कार - वह है “ईडाणा माता”

Jitendra Kumar Sinha
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भारत की भूमि को यूं ही आस्था और चमत्कारों की भूमि नहीं कहा गया है। यहां हर पहाड़ी, हर जंगल में देवी-देवताओं की कहानियां बसी हुई हैं। लेकिन कुछ स्थलों की महिमा इतना अलौकिक होता है कि वह सोच और विज्ञान दोनों को चुनौती देता है। राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित “ईडाणा माता मंदिर” भी ऐसा ही एक स्थल है जहां आस्था अग्नि में नहाती है, और चमत्कार साक्षात दिखते हैं। यह मंदिर न केवल अपने चमत्कारी स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां पर घटने वाली "अग्नि प्रज्वलन" की रहस्यमयी घटना इसे और भी अनूठा बना देता है। जहां भक्त केवल मां के दर्शन करने नहीं आते, बल्कि मां के 'अग्नि स्नान' के भी साक्षी बनते हैं।

ईडाणा माता का मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर से करीब 60 किलोमीटर दूर, अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यह इलाका प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, लेकिन इस मंदिर की लोकेशन विशेष रूप से अलग है क्योंकि यह मंदिर बिल्कुल खुले चौक में स्थित है। यानि यहां कोई छत नहीं है, कोई पारंपरिक मंदिर संरचना नहीं है, है तो सिर्फ एक चौक और उसमें स्थित मां की मूर्ति। यहां पर आज तक एक स्थायी मंदिर का निर्माण नहीं हो पाया है, और इसके पीछे भी वही रहस्यमयी चमत्कार है- मां का अग्नि रूप।

कहते हैं कि इस मंदिर का नाम "ईडाणा" दरअसल उदयपुर मेवाड़ की महारानी ईडाणा के नाम पर पड़ा है। इतिहास में इनका विशेष महत्व रहा है, लेकिन बाद में यह स्थान एक चमत्कारी देवी स्थल में तब्दील हो गया है। स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले यहां सिर्फ एक चबूतरा और मूर्ति थी, लेकिन जब यहां चमत्कारी घटनाएं होने लगीं, तब यह स्थल एक आस्था का केंद्र बन गया।

इस मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य और चमत्कार है यहां हर महीने दो से तीन बार होने वाला "अग्नि प्रज्वलन"। यह अग्नि मां की मूर्ति से स्वतः प्रज्वलित होता है। इसे मां का अग्नि स्नान कहा जाता है। इस अग्नि से मां की चढ़ाई गई चुनरियां, धागे, फूल आदि जलकर भस्म हो जाता है। इस अग्नि की लपटें कई बार 10 से 20 फीट तक ऊंची उठती हैं, लेकिन इसके बावजूद मूर्ति या चबूतरे को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है और न ही कोई संरचना जलती है, सिवाय श्रृंगार सामग्री के।

इस मंदिर में आने वाले भक्तों की संख्या हर माह उस दिन अचानक बढ़ जाता है, जब अग्नि प्रज्वलन की सूचना फैलती है। जैसे ही आग जलती है, आसपास के गांवों, कस्बों से लोग दौड़ पड़ते हैं मां के अग्नि रूप के दर्शन करने के लिए।

यहां के स्थानीय पुजारी बताते हैं कि जब मां पर अत्यधिक भार या भक्तों की पीड़ा अधिक हो जाती है, तो मां ज्वालामुखी रूप धारण करती हैं। यही रूप अग्नि स्नान के रूप में प्रकट होता है। मान्यता है कि जो भी भक्त इस अग्नि के दर्शन करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होता है।

इस चमत्कारी स्थान पर कोई स्थायी मंदिर नहीं बनना भी उतना ही रहस्यमयी है। जब भी मंदिर बनाने का प्रयास हुआ, जब भी छत डाली गई, जब भी दीवारें उठाई गईं, मां की अग्नि ने उसे जला दिया। यही कारण है कि आज तक यहां कोई संरचना नहीं बन पाई। भक्त इसे मां की इच्छा मानते हैं कि वह खुले चौक में ही अपने भक्तों को दर्शन देना चाहती हैं।

यह मंदिर न केवल चमत्कारिक अग्नि के लिए, बल्कि बीमारियों से मुक्ति के लिए भी जाना जाता है। विशेष रूप से लकवा (पैरालिसिस) से ग्रसित मरीज यहां मां के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाता है। मां के चबूतरे पर विशेष रूप से लकवे के मरीज लेटते हैं, वहां धागा या तांत्रिक निशान बांधते हैं, और फिर अपनी बीमारी मां को सौंप देते हैं। कई लोग बताते हैं कि वे बिल्कुल ठीक होकर घर लौटे थे।

इस मंदिर में आस्था केवल दर्शन तक सीमित नहीं है। यहां आने वाले भक्त विशेष निवेदन या प्रतिज्ञा के साथ आते हैं। जिनकी मनोकामना पूरी हो जाती है, वे त्रिशूल चढ़ाते हैं। जिन दंपत्तियों को संतान नहीं होती, वे मां के दरबार में झूला चढ़ाते हैं। इसके साथ ही मां को लाल चुनरी, नारियल, मेहंदी, और चूड़ियां चढ़ाई जाती हैं। यह सब आस्था की वो डोर है, जो मां के दरबार से जुड़कर चमत्कारों में बदल जाती है।

अब तक वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इस बात की कोई पुष्टि नहीं कर पाया है कि यह अग्नि कैसे जलती है। यहां न तो कोई गैस लाइन है, न कोई ज्वलनशील रसायन, और न ही कोई मानवजनित प्रक्रिया। इसलिए यह घटना विज्ञान के लिए एक अनसुलझी पहेली बन चुका है। कई शोधकर्ताओं ने यहां अध्ययन किया है, लेकिन उन्हें कोई ठोस कारण नहीं मिला। न कोई यांत्रिक यंत्र, न कोई पेट्रोल या डीजल, और न ही कोई कैमिकल रिएक्शन। फिर भी अग्नि जलती है, और लगातार जलती है!

ईडाणा माता मंदिर में वर्ष भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन कुछ विशेष पर्वों पर यहां विशेष भीड़ उमड़ती है, जैसे- नवरात्रि में नौ दिनों तक विशेष पूजा और अग्नि दर्शन, चैत्र नवरात्रि में झूला चढ़ाने वाले दंपत्तियों की अधिक भीड़, गुरुवार को मां के विशेष दर्शन का दिन, पौर्णिमा (पूर्णिमा) में रात्रि दर्शन और ज्वाला का विशेष पूजन। इन अवसरों पर स्थानीय प्रशासन को यातायात और सुरक्षा के विशेष इंतजाम करने पड़ते हैं।

स्थानीय निवासियों और वृद्धों के अनुसार, कई बार अग्नि रात के अंधेरे में अचानक जल उठती है, और इसकी लौ दूर-दूर से दिखाई देती है। लोग इसे देवी का संदेश मानते हैं कि मां जाग रही हैं।

एक घटना में बताया गया है कि एक लकवा ग्रसित व्यक्ति यहां जबरन ट्रॉली में लाया गया था। लेकिन अग्नि दर्शन के कुछ ही समय बाद उसकी टांगों में हरकत आई और कुछ ही महीनों में वह सामान्य चलने लगा।

प्रशासन ने कई बार यहां मंदिर निर्माण का सुझाव दिया, लेकिन स्थानीय पुजारियों और भक्तों का स्पष्ट मत है कि यह स्थान मां की इच्छा के अनुसार ही रहेगा, खुले चौक में, अग्नि के रूप में, और भक्तों की आस्था के रूप में।

ईडाणा माता मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, यह भारतीय आस्था, चमत्कार और संस्कृति का जीता-जागता उदाहरण है। यहां की अग्नि, यहां की मान्यता, और यहां की भक्तों की श्रद्धा इस बात का मिसाल है कि जब भक्ति सच्ची हो, तो चमत्कार होना स्वाभाविक है। यह स्थान उन सभी के लिए प्रेरणा है जो विज्ञान और चमत्कार के बीच पुल की तलाश में हैं। ईडाणा माता का यह मंदिर साबित करता है कि कुछ सवालों के जवाब विज्ञान नहीं, श्रद्धा देती है।



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