शिव को संहारक नहीं, सृजनकर्ता माना गया है। आदि अनादि से लेकर कलियुग तक, शिव भक्ति भारतीय जनमानस की आत्मा में समाई रही है। चाहे हिमालय की ऊंची कंदराएं हों या दक्षिण के मंदिरों की भव्यता, शिव सदा हर युग में उपस्थित रहे हैं। लेकिन अब जो प्रमाण राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के कालीबंगा क्षेत्र से मिले हैं, वह इतिहास और पुरातत्त्व दोनों की दृष्टि से क्रांतिकारी हैं। यहां मिला टेराकोटा से बना एक प्राचीन शिवलिंग बनारस के काशी विश्वनाथ से भी हजारों साल पुराना है, यह सिद्ध करता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग भी शिव के परम भक्त थे।
कालीबंगा राजस्थान के उत्तर-पश्चिम में स्थित हनुमानगढ़ जिले में घग्घर नदी के किनारे बसा एक पुरातन बस्ती था, जो सिंधु घाटी सभ्यता का अभिन्न अंग माना जाता है। यह स्थान ‘काली रंग की चूड़ियों’ के कारण ‘कालीबंगा’ कहलाया। 1960 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा की गई खुदाई में यहां से मिट्टी के बर्तन, घरों की नींव, ईंटों की सड़कें, कृषि उपकरण, और अब एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवशेष “शिवलिंग” प्राप्त हुआ है।
कालीबंगा से प्राप्त हुआ शिवलिंग महज 4.5 सेंटीमीटर लंबा है और टेराकोटा (पकी मिट्टी) से बना है। यह आकार में छोटा अवश्य है, लेकिन इसका महत्व असीम है। इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के अनुसार, यह शिवलिंग करीब 5500 वर्ष पुराना है, जो इसे भारत में अब तक का सबसे प्राचीन शिवलिंग बनाता है। इसकी तुलना जब वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग से की जाती है, जो वर्तमान स्वरूप में मात्र 250-300 वर्ष पुराना है, तो स्पष्ट होता है कि शिव भक्ति का इतिहास हजारों वर्षों से भी अधिक गहराई में जड़ें जमाए हुए है।
कालीबंगा की खुदाई में शिवलिंग के अलावा नंदी की आकृति और पीपल पूजन मुद्रा वाले सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। नंदी, जो शिव के वाहन के रूप में पूजे जाते हैं, और पीपल, जिसे शाश्वत जीवन का प्रतीक माना गया है, इन दोनों की उपस्थिति इस बात का ठोस संकेत देता है कि हड़प्पा के लोग शिव के उपासक थे। यह खोज केवल धार्मिक आस्था की पुष्टि नहीं करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि हड़प्पा की समृद्ध सभ्यता में अध्यात्म, प्रकृति पूजा और धार्मिक प्रतीक बहुत पहले से मौजूद था।
कालीबंगा क्षेत्र की खुदाई से अब तक 1450 से अधिक पुरावशेष प्राप्त हुए हैं, जिन्हें संरक्षित कर कालीबंगा संग्रहालय में रखा गया है। संग्रहालय की गैलरियों में इन वस्तुओं को बारीकी से समझाने वाले बोर्ड लगे हैं, जिनमें हड़प्पा कालीन जीवनशैली, व्यापार, कृषि, वस्त्र, आभूषण और अब आध्यात्मिक जीवन से जुड़े प्रमाण भी सम्मिलित हैं। इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण वस्तु यही प्राचीन शिवलिंग है, जो वहां आने वाले प्रत्येक आगंतुक को भारत की सनातन परंपरा की गहराई से परिचित कराता है।
कालीबंगा और अन्य हड़प्पा स्थलों की खुदाई से यह ज्ञात होता है कि उस समय के लोग अत्यंत व्यवस्थित जीवन जीते थे। कृषि, व्यापार, नगर नियोजन, जल प्रबंधन, सभी क्षेत्रों में वे उन्नत थे। परंतु यह प्रमाण इस अवधारणा को और भी सुदृढ़ करता है कि धर्म और अध्यात्म उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा था।
हड़प्पा सभ्यता को पहले तक एक धर्मनिरपेक्ष सभ्यता माना जाता था क्योंकि वहां विशाल मंदिरों के अवशेष नहीं मिले। लेकिन कालीबंगा का शिवलिंग, नंदी की आकृति, और पीपल पूजन मुद्रा से स्पष्ट होता है कि उनके धर्म के प्रतीक सूक्ष्म थे लेकिन सशक्त।
डॉ. श्याम उपाध्याय जैसे शोधकर्ताओं का मानना है कि यह शिवलिंग भारतीय इतिहास के पुनर्लेखन की नींव रखता है। यह केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि उस संस्कृति की झलक है जो पांच हजार वर्ष पूर्व भी दैवीय ऊर्जा को मूर्त रूप में पूजती थी। इस खोज ने भारत के धार्मिक इतिहास को सिंधु घाटी सभ्यता तक पीछे खींच दिया है।
कालीबंगा की खुदाई और यहां से प्राप्त धार्मिक प्रतीक न केवल भारतीय इतिहास को समृद्ध करता है, बल्कि यह विश्व समुदाय को भी यह संदेश देता है कि भारत की धार्मिक चेतना की जड़ें अत्यंत गहरी और प्राचीन हैं।
यूरोपीय इतिहासकारों ने लंबे समय तक भारत के धर्मों को वैदिक युग के बाद का बताया है, लेकिन यह खोज स्पष्ट करता है कि शिव की उपासना वैदिक युग से भी पहले की है।
पुरातत्वविदों का मानना है कि अगर कालीबंगा और आसपास के क्षेत्रों में खुदाई और अधिक व्यापक स्तर पर किया जाए, तो ऐसे और प्रमाण सामने आ सकता है जो भारतीय धर्म और संस्कृति की गहराई को और अधिक स्पष्ट करेगा। यह खोज महज एक शुरुआत हो सकता है।
कालीबंगा से प्राप्त 5500 साल पुराना शिवलिंग यह याद दिलाता है कि शिव केवल एक देवता नहीं हैं, बल्कि भारतीय सभ्यता की आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र रहे हैं। यह खोज इतिहास को एक नई दृष्टि देती है कि भारत में ईश्वर की कल्पना, प्रकृति पूजन और आत्मबोध की परंपरा कोई हालिया विकास नहीं है, बल्कि हजारों वर्षों की यात्रा का परिणाम है।
