हाजीपुर के रक्षक देवता हैं - “स्वयंभू पातालेश्वर नाथ महादेव”

Jitendra Kumar Sinha
0




बिहार के वैशाली जिला का ऐतिहासिक नगर, केवल राजनीतिक और सांस्कृतिक कारणों से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्य चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध है। इसी नगर में स्थित है एक ऐसा चमत्कारी और रहस्यमयी शिवलिंग “बाबा पातालेश्वर नाथ महादेव”। यह केवल एक पूजनीय देवता नहीं है, बल्कि हाजीपुर नगर के स्वयंभू रक्षक माने जाते हैं। कहा जाता है कि जो भी इनकी शरण में आता है, वह कभी भी काल का ग्रास नहीं बनता। उनका यह मंदिर केवल ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं है, बल्कि आस्था, रहस्य, चमत्कार और प्राचीन इतिहास का अद्वितीय संगम है।

“बाबा पातालेश्वर नाथ” को स्वयंभू कहा जाता है क्योंकि यह शिवलिंग पाताल लोक से स्वयं प्रकट हुआ है। इसी कारण से इनका नाम ‘पातालेश्वर’ पड़ा। एक मान्यता के अनुसार, जब भगवान श्रीराम माता सीता की खोज में निकले थे, तब वे इस क्षेत्र से गुजरे थे और उन्होंने इस शिवलिंग की आराधना की थी। आज भी पास ही श्रीराम के चरण चिन्ह देखे जा सकते हैं जो इस कथा की पुष्टि करता है।

शिवलिंग की आकृति, रंग और बनावट आज भी उनके चमत्कारी स्वरूप का संकेत देता है। भक्त इसे केवल एक पत्थर नहीं, बल्कि जीवंत शिव का साक्षात स्वरूप मानते हैं।

इतिहासकारों और स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, जब भारत पर मुगल बादशाह औरंगजेब (1652–1707) का शासन था, तब यह पूरा इलाका घने जंगल और बांस की झाड़ियों से ढंका हुआ था। यह क्षेत्र इतना घना था कि दिन में भी सूर्य की रोशनी मुश्किल से पहुंचती थी।

लोककथाओं के अनुसार, रात के समय यहां अनेक सर्प अपने मणियों की ज्योति में विचरण करते थे। ये सर्प प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर इकट्ठा होकर फुफकारते और फिर एक गुफा में समा जाते थे। ग्रामीणों ने इन घटनाओं को देखकर आश्चर्य किया और इसी के कारण इस स्थान को दिव्य माना गया।

वर्ष 1885 ई. में स्थानीय लोगों ने इस रहस्य को जानने के लिए बांसवारियों की सफाई की और सर्पों के फुफकारने वाले स्थान पर खुदाई शुरू की। खुदाई के दौरान एक काले गोलनुमा पत्थर का दर्शन हुआ जिसे बाद में शिवलिंग के रूप में पहचान मिली।

इसके बाद की गई खुदाई में यह ज्ञात हुआ कि यह शिवलिंग असाधारण है और इसकी आधार भूमि का पता नहीं चल पाया, क्योंकि जैसे-जैसे खुदाई की जाती, शिवलिंग और गहराई में मिलता। ऐसा प्रतीत हुआ मानो शिवलिंग स्वयं ऊपर की ओर बढ़ रहा हो।

वर्ष 1887 में शिवलिंग की आधार भूमि जानने के लिए बड़े स्तर पर खुदाई की गई, जिससे एक विशाल कूप (कुआं) बन गया। इस कूप से जो जल निकला, उसने आसपास की बंजर भूमि को उपजाऊ बना दिया। जो क्षेत्र पहले सूखा और वीरान था, वहां हरियाली फैल गई। आज भी यह क्षेत्र हरा-भरा है और लोग इसे बाबा पातालेश्वर नाथ की कृपा मानते हैं।

वर्ष 1888 को इस स्थल की औपचारिक स्थापना वर्ष माना गया। उसी वर्ष बाबा की मूर्ति की विधिवत पूजा-अर्चना, रामायण पाठ, शिव महात्म्य कथा, अष्टयाम, शिव चर्चा आदि धार्मिक परंपराएं आरंभ हुईं।

स्थापना वर्ष के उपलक्ष्य में हर वर्ष धार्मिक आयोजन होता है। विशेषकर श्रावण मास और शिवरात्रि के अवसर पर यह स्थान हजारों श्रद्धालुओं का तीर्थ स्थल बन जाता है।

1895 ई. में यहां 22800 वर्ग फीट क्षेत्र में चहारदीवारी का निर्माण हुआ। इसके बाद 1934 ई. में मंदिर निर्माण अंतिम चरण में था कि अचानक एक वटवृक्ष मंदिर पर गिर गया जिससे मंदिर का एक भाग ध्वस्त हो गया और नाग सर्प की मृत्यु भी हो गई। इसे भक्तों ने शिव सेवक नाग देवता की बलिदान के रूप में देखा।

इसके बाद युद्धस्तर पर मंदिर निर्माण हुआ और गुम्बद तथा कलश स्थापित कर मंदिर को एक भव्य स्वरूप प्रदान किया गया।

1954 ई. में मंदिर कमिटी गठित की गई जिसमें धार्मिक एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं की भागीदारी से मंदिर के चहुमुखी विकास की नींव पड़ी। एक व्यायामशाला भी बनवाई गई।

अब मंदिर परिसर में शिवलिंग के अतिरिक्त गौरी-शंकर, राधा-कृष्ण, पार्वती, संतोषी माता, मां शेरावाली सहित कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

यहां प्रत्येक सोमवार को विशेष पूजा और आरती होता है। भक्त कपूर की जलती शिखा के साथ आरती पात्र को दोनों हाथों में लेकर ‘शिव नृत्य’ करते हैं। ढोल-नगाड़े, डमरू, घंटी, शंख की ध्वनि के साथ जो आरती होता है, वह भक्तों को अलौकिक ऊर्जा से भर देता है।

हर साल श्रावण महीने में सोमवारी मेला का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु जलाभिषेक के लिए आते हैं। महाशिवरात्रि के दिन यहां से शिव बारात निकलता है। यह झांकी पूरे नगर में भ्रमण करती है जिसमें भूत-पिशाच, देवी-देवताओं की वेशभूषा में कलाकार शामिल होते हैं। हर गली-मोहल्ले में "हर-हर महादेव" की गूंज सुनाई देता है।

इस पावन आयोजन को सफल बनाने में प्रशासन भी सक्रिय रहता है। रोशनी, सफाई, जल व्यवस्था, चिकित्सा सहायता, सुरक्षा व्यवस्था के लिए विशेष पुलिस बल तैनाती किया जाता है। मंदिर कमिटी की ओर से शांति दस्ता भी सक्रिय रहता है ताकि श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो।

कई श्रद्धालु मानते हैं कि बाबा पातालेश्वर नाथ की कृपा से उनकी असाध्य बीमारियां ठीक हुई हैं, व्यापार में उन्नति हुई है, परिवार में सुख-शांति बनी है। एक कथा यह भी प्रचलित है कि एक वृद्ध महिला को स्वप्न में बाबा ने दर्शन दिए और कहा कि 'मेरी सेवा करो, तुम्हारे दुख मिट जाएंगे'। उसने वैसा ही किया और उसका जीवन बदल गया।

अब यह मंदिर डिजिटल युग के साथ कदम मिला चुका है। कई श्रद्धालु यहां की पूजा-आरती को सोशल मीडिया पर लाइव देखते हैं। मंदिर कमिटी ने दान की व्यवस्था भी ऑनलाइन कर दिया है जिससे देश-विदेश में बसे भक्त भी बाबा की सेवा में योगदान दे रहे हैं।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top