राजस्थान की शान, झीलों की नगरी उदयपुर, सिर्फ अपनी भव्य हवेलियों, किलों और झीलों के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दिव्य और ऐतिहासिक मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है। इस पावन भूमि पर हर कोना आध्यात्मिकता से ओतप्रोत है, जहां भक्त अपने ईष्ट देव के दर्शन को आते हैं। उन्हीं मंदिरों में से एक अत्यंत प्राचीन, दुर्लभ और दिव्य स्थल है “हजारेश्वर महादेव मंदिर”। इस मंदिर की खासियत केवल इसकी वास्तुकला या ऐतिहासिकता ही नहीं है, बल्कि एक ऐसी अद्वितीय शिला है, जिस पर 1101 शिवलिंग एक साथ उत्कीर्ण हैं।
इस पवित्र मंदिर का निर्माण महाराणा जगतसिंह द्वितीय (1734-1751 ई.) के काल में हुआ था। निर्माणकर्ता मराठी ब्राह्मण गोविन्द राव थे, जो अपने समय के प्रमुख धर्मसेवी माने जाते थे। गोविन्द राव की इस भव्य कृति को आज भी श्रद्धा से देखा जाता है। इस मंदिर में सेवा-पूजा का कार्य एक विशेष मराठी ब्राह्मण परिवार को सौंपा गया है, जो क्षीरसागर गौत्र के वंशज हैं। वर्तमान में पंडित प्रकाशचंद्र भट्ट इस मंदिर की सेवा-पूजा कर रहे हैं, और यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
मंदिर के गर्भगृह में स्थित है एक विशाल सफेद शिला, जिस पर 1101 शिवलिंग उत्कीर्ण हैं। यह नजारा अत्यंत चमत्कारी और रोमांचकारी है। इस शिला पर शिवलिंग एक विशेष क्रम में उत्कीर्ण हैं, हर पंक्ति में 100 शिवलिंग, और कुल मिलाकर 1101 है।
इतिहासकार डॉ. जी.एल. मेनारिया बताते हैं कि इंदौर की रियासत की राजमाता अहिल्याबाई होल्कर, जो 18वीं सदी की महान प्रशासिका मानी जाती हैं, इस मंदिर की एक समय प्रशासिका भी थी।
इतिहास की एक विशेष घटना में मेवाड़ के महाराणा अरिसिंह ने अहिल्याबाई को 'धर्म बहन' की उपाधि दी थी। इस संबंध की पुष्टि वि.सं. 1827 (1779 ई.) में रामनवमी के अवसर पर जारी एक ताम्रपत्र से होती है, जो आज भी इंदौर के राजकीय संग्रहालय में सुरक्षित है।
यह घटनाक्रम दर्शाता है कि यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों का भी केंद्र रहा है।
सावन के पवित्र महीने में यह मंदिर श्रद्धालुओं से भर जाता है। भक्तजन दूर-दूर से यहां जलाभिषेक, रुद्राभिषेक और मंत्रोच्चारण के साथ पूजा-अर्चना करने आते हैं। महाशिवरात्रि के दिन मंदिर में विशेष अनुष्ठान होता है। प्रदोष व्रत, श्रावण सोमवार, कांवड़ यात्रा के दौरान भी मंदिर की भीड़ होता है। भक्तगण यहाँ आकर अपने कष्टों से मुक्ति और इच्छापूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
मंदिर की स्थापत्य शैली राजस्थानी-मराठी मिश्रित शैली का सुंदर उदाहरण है। गर्भगृह के द्वार पर बनीं नक्काशियां, स्तंभों पर उकेरे गए देवी-देवताओं के चित्र और पत्थर की कारीगरी इस बात का प्रमाण हैं कि मंदिर निर्माण में उच्चस्तरीय शिल्पकारों का योगदान रहा है। एकमात्र मंदिर है जहां एक ही शिला पर इतने अधिक शिवलिंग अंकित हैं। यहां रोजाना रुद्रपाठ और महामृत्युंजय जाप होता है। उदयपुर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह एक अनिवार्य स्थल है।
हजारेश्वर महादेव मंदिर केवल एक स्थापत्य नहीं, बल्कि श्रद्धा, परंपरा और इतिहास का संगम है। सावन में इसकी महिमा और भी बढ़ जाती है, जब भक्त अपनी पीड़ा, आशा और विश्वास के साथ इस दिव्य स्थल पर आते हैं। यह मंदिर उस शक्ति का प्रतीक है जो अनादि काल से हमारे जीवन का मार्गदर्शन करती रही है।
