दक्षिण अमेरिका की गहराइयों में बसे घने जंगलों और अंधेरी गुफाओं में एक अनोखा पक्षी पाया जाता है, जिसे "ऑइल बर्ड" कहा जाता है। यह पक्षी जितना रहस्यमयी है, उतना ही वैज्ञानिकों और पक्षी प्रेमियों के लिए उत्सुकता का विषय भी बना हुआ है। यह मुख्यतः वेनेजुएला, इक्वाडोर, ब्राजील और त्रिनिदाद की गुफाओं में बड़े-बड़े झुंडों में रहता है।
“ऑइल बर्ड” एक रात्रिचर पक्षी है यानि यह दिन में सोता है और रात के अंधेरे में सक्रिय होता है। अधिकतर रात्रिचर प्राणी कीटभक्षी या मांसाहारी होता है, लेकिन ऑइल बर्ड इन सबसे अलग है। यह फलाहारी है और विशेष रूप से ताड़ के फल तथा नायास (Lauraceae) परिवार के बीज खाता है। यही विशेषता इसे अन्य रात्रिचर पक्षियों से अलग बनाता है।
“ऑइल बर्ड” उन गुफाओं में रहता है, जहां सूरज की रौशनी तक नहीं पहुंचती। आश्चर्य की बात यह है कि इतनी घनी अंधेरी जगहों में भी यह बिना टकराए उड़ान भर सकता है। यह सब संभव होता है इसकी अनोखी क्षमता इकोलोकेशन की वजह से। इकोलोकेशन वह प्रक्रिया है जिसमें कोई जीव अपनी ही ध्वनि की गूंज (echo) से आस-पास की वस्तुओं की दूरी और दिशा का अंदाजा लगाता है। यह तकनीक प्रायः चमगादड़ों और डॉल्फिनों में पाई जाती है, लेकिन पक्षियों में यह एक दुर्लभ गुण है, जो ऑइल बर्ड को विशेष बनाता है।
“ऑइल बर्ड” अकेले नहीं, बल्कि सैकड़ों की संख्या में झुंडों में गुफाओं में निवास करता है। इनके घोंसले भी गुफा की दीवारों या चट्टानों पर बने होते हैं, जहां मादा ऑइल बर्ड अपने अंडों को सेती है। इन पक्षियों की आवाज बहुत तेज और गूंजदार होती है, जो गुफा में प्रतिध्वनित होकर गूंज पैदा करती है।
“ऑइल बर्ड” का यह विचित्र और रहस्यमयी व्यवहार, इसकी फलाहारी रात्रिचर प्रकृति, इकोलोकेशन तकनीक, और झुंड में रहने की प्रवृत्ति, इसे पक्षी विज्ञानी और जैव वैज्ञानिकों के लिए एक शोध का विषय बना देती है। इसकी जीवनशैली से न केवल पक्षी जगत की विविधता को समझा जा सकता है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि प्रकृति में जीवन किस प्रकार विभिन्न रूपों में ढल सकता है।
