यूनेस्को करेगा मराठा काल के किलों का मूल्यांकन

Jitendra Kumar Sinha
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भारत की गौरवशाली इतिहास में मराठा साम्राज्य का एक विशिष्ट स्थान रहा है, जिसने अपने सैन्य कौशल, रणनीति और अद्वितीय किलेबंदी के लिए प्रसिद्धि पाई है। अब इस गौरवशाली धरोहर को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने की ओर एक बड़ा कदम बढ़ा है। संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठित संस्था यूनेस्को (UNESCO) ने मराठा शासकों द्वारा निर्मित दुर्गों को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया शुरू कर दी है।

विश्व भर से प्राप्त कुल 30 नामांकनों में मराठा सैन्य दुर्ग प्रणाली (Maratha Military Fortification) को भी चुना गया है। यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति का मौजूदा सत्र इन नामांकनों की गहन समीक्षा कर रहा है। 

मराठा किला केवल ईंट-पत्थरों की संरचना नहीं हैं, बल्कि वह उस समय की सामरिक बुद्धिमत्ता, निर्माण कला और स्वराज्य की भावना के प्रतीक है। इन दुर्गों को ऊँचाई पर, समुद्र के किनारे, पर्वत श्रृंखलाओं और दुर्गम स्थलों पर इस तरह से बनाया गया था कि दुश्मन को पराजित करना अत्यंत कठिन हो।

प्रसिद्ध मराठा किलों में शामिल हैं राजगढ़, सिंहगढ़, प्रतापगढ़, रायगढ़, सिंदुदुर्ग, पन्हाला, और वसई किला। इनमें से रायगढ़ किला, छत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी रहा है, जो मराठा सत्ता और प्रशासन का प्रमुख केंद्र था।

अगर यूनेस्को मराठा किलों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता देता है, तो इससे न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन किलों को पहचान मिलेगी, बल्कि इनके संरक्षण, रखरखाव और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। यह महाराष्ट्र और भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर सुदृढ़ करेगा।

भारत सरकार, महाराष्ट्र राज्य सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) ने संयुक्त रूप से इस नामांकन के लिए विस्तृत दस्तावेज, शोध और ऐतिहासिक प्रमाण प्रस्तुत किया है। यूनेस्को के विशेषज्ञ अब इन किलों की ऐतिहासिकता, स्थापत्य विशेषता और सांस्कृतिक महत्व का निरीक्षण कर मूल्यांकन करेंगे।



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