भारत में "एक राष्ट्र, एक चुनाव" की अवधारणा पर चल रही बहस ने शुक्रवार को नया मोड़ लिया, जब देश के दो पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, संसद की विशेष समिति के समक्ष पेश हुए। दोनों न्यायविदो ने अपनी कानूनी समझ और संवैधानिक दृष्टिकोण से इस प्रस्ताव पर राय रखी, जिससे इस विचार की वैधानिकता और व्यवहारिकता पर नई रोशनी पड़ी।
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' यानि देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसका उद्देश्य बार-बार होने वाले चुनावों से बचना, सरकारी संसाधनों की बचत और प्रशासन की सुचारुता सुनिश्चित करना है।
सूत्रों के अनुसार, पूर्व CJI खेहर और चंद्रचूड़ दोनों ने कहा है कि यह अवधारणा संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। इसका अर्थ है कि एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू करना संविधान में किए गए मौलिक सिद्धांतों जैसे संघवाद, जनप्रतिनिधित्व और स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं करता है, यदि इसे सही ढंग से लागू किया जाए।
दोनों न्यायाधीश ने प्रस्तावित कानून में चुनाव आयोग को दी जा रही शक्तियों पर चिंता जताई। उनका मानना है कि लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका निष्पक्ष और स्वतंत्र होनी चाहिए, लेकिन यदि उसे अत्यधिक अधिकार दिए जाते हैं तो यह शक्ति का केंद्रीकरण और संभावित दुरुपयोग का कारण बन सकता है।
दोनों न्यायविद ने भारत की संसदीय प्रणाली की विकास यात्रा पर प्रकाश डालते हुए सुझाव दिया है कि किसी भी नए कानून को बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि वह जनता की सहभागिता, चुनाव की पारदर्शिता और केंद्र-राज्य संतुलन को क्षति न पहुँचाए।
जहां एक ओर 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' से लागत में कटौती, प्रशासनिक स्थिरता और सरकारी कार्यों में गति मिल सकता है, वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इससे संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों को कोई आंच न आए।
