“बायोल्यूमिनेसेंट मशरूम” एक विशेष प्रकार का कवक (फंगस) है जो अंधेरे में हरी रोशनी छोड़ता है। इसे देखकर लगता है जैसे किसी ने लकड़ी पर नन्हीं नन्हीं टॉर्चें जला दी हों। यह मशरूम सामान्य मशरूम जैसा ही होता है, लेकिन इसकी विशेषता इसकी प्राकृतिक चमक है।
इसकी चमक का रहस्य छुपा है बायोल्यूमिनेसेंस नामक प्रक्रिया में। यह वही प्रक्रिया है जिससे जुगनू भी रात में चमकता है। मशरूम की कोशिकाओं में दो खास तत्व होते हैं। लूसीफेरेज (Luciferase)- एक एंजाइम और लूसीफेरिन (Luciferin)- एक जैविक रसायन।
जब यह दोनों तत्व ऑक्सीजन के संपर्क में आता है, तो एक रासायनिक प्रतिक्रिया होती है जिससे प्रकाश उत्पन्न होता है। यह प्रकाश बहुत तेज नहीं होता है, लेकिन अंधेरे जंगल में यह किसी रहस्यमय चमत्कार से कम नहीं लगता है।
बायोल्यूमिनेसेंट मशरूम को दुर्लभ माना जाता है। यह आमतौर पर गर्म और आर्द्र (नमी वाले) इलाकों में पाया जाता है। प्रमुख देशों में है- जापान, ताइवान, ब्राजील, इंडोनेशिया, श्रीलंका। भारत में इसकी उपस्थिति दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों, खासकर केरल और कर्नाटक के जंगलों में देखी गई है। मानसून या अत्यधिक आर्द्र मौसम में यह ज्यादा उगता है, खासकर गिरी हुई लकड़ियों और सड़ी-गली छालों पर।
“बायोल्यूमिनेसेंट मशरूम” एक प्राकृतिक रोशनी का स्रोत है। वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहा है ताकि इसका उपयोग बायोलॉजिकल लाइटिंग, दवाइयों, और इको-फ्रेंडली लाइटिंग तकनीकों में किया जा सके। यह जंगलों की बायोडायवर्सिटी को समझने में मदद करता है।
