सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट केस में बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा दिए गए उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला गंभीर सवाल खड़े करता है और इस पर विस्तृत विचार आवश्यक है। महाराष्ट्र सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए सभी आरोपियों को नोटिस जारी किया है और चार हफ्तों में जवाब मांगा है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि जिन आरोपियों को पहले ही रिहा किया जा चुका है, उन्हें फिलहाल फिर से हिरासत में नहीं लिया जाएगा। लेकिन हाई कोर्ट का यह फैसला किसी अन्य मामले में मिसाल नहीं बनेगा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में तर्क दिया कि हाई कोर्ट के निर्णय से महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) जैसे मामलों में असर पड़ सकता है और इससे अभियोजन को कठिनाई होगी। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला केवल एक फैसले की समीक्षा नहीं है, बल्कि इसके व्यापक कानूनी नतीजों पर भी ध्यान देना जरूरी है।
गौरतलब है कि 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सात सिलसिलेवार धमाकों में 180 से अधिक लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। साल 2015 में मकोका अदालत ने इस मामले में 5 आरोपियों को मौत की सजा और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। लेकिन जुलाई 2025 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाया, इसलिए सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी किया जा रहा है।
अब सुप्रीम कोर्ट की यह अंतरिम रोक आगे की सुनवाई के लिए जमीन तैयार करती है। चार हफ्ते बाद अदालत इस पर फिर से विचार करेगी कि क्या बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला कायम रहना चाहिए या उसे पलट दिया जाए। इस बीच आरोपियों को दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जाएगा लेकिन उनका कानूनी भविष्य फिलहाल अधर में लटक गया है।
