एनसीईआरटी की नई किताब - इतिहास के पन्नों में अकबर 'क्रूर' तो बाबर 'निर्मम'

Jitendra Kumar Sinha
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राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और परीक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा आठवीं कक्षा के लिए जारी की गई नई सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ने मुगल शासकों के चित्रण को लेकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। 'एक्सप्लोरिंग सोसाइटी: इंडिया एंड बियॉन्ड' नामक इस पुस्तक में मुगल सम्राटों का एक ऐसा रूप प्रस्तुत किया गया है जो अब तक की स्कूली किताबों से काफी अलग है। इसमें अकबर के शासन को 'क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण' बताया गया है, बाबर को एक 'निर्मम आक्रमणकारी' के रूप में वर्णित किया गया है, और औरंगजेब को एक 'कठोर सैन्य शासक' कहा गया है।

यह पुस्तक एनसीईआरटी के नए पाठ्यक्रम की पहली कड़ी है, जो छात्रों को दिल्ली सल्तनत, मुगल, मराठा और औपनिवेशिक काल से परिचित कराता है। नए पाठ्यक्रम के तहत, जो विषय पहले सातवीं कक्षा में पढ़ाया जाता था, अब उसे आठवीं कक्षा में स्थानांतरित कर दिया गया है। पुस्तक का उद्देश्य इतिहास को अधिक तथ्यात्मक और साक्ष्य-आधारित बनाना है।

नई किताब में मुगल वंश के संस्थापक बाबर को एक ऐसे 'निर्मम' हमलावर के रूप में दिखाया गया है जिसने शहरों में कत्लेआम मचाया था। वहीं, सम्राट अकबर, जिन्हें अक्सर एक महान और सहिष्णु शासक के रूप में जाना जाता है, उनके शासनकाल को 'क्रूरता और सहिष्णुता' का एक जटिल मिश्रण बताया गया है। पुस्तक में चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के दौरान हुए नरसंहार का उल्लेख है, लेकिन साथ ही उनके द्वारा जजिया कर को समाप्त करने और सभी धर्मों के साथ शांति (सुलह-ए-कुल) की नीति को बढ़ावा देने का भी जिक्र किया गया है।

इसके विपरीत, औरंगजेब को एक 'कट्टर सैन्य शासक' के रूप में चित्रित किया गया है, जिसने गैर-मुसलमानों पर फिर से जजिया कर लगाया और कई मंदिरों एवं गुरुद्वारों को नष्ट करवाया। पुस्तक में सिख गुरुओं पर हुए अत्याचारों का भी उल्लेख है।

इतिहास की इन संवेदनशील और हिंसक घटनाओं को शामिल करने के पीछे एनसीईआरटी ने अपना स्पष्टीकरण भी दिया है। पुस्तक के आरंभ में 'इतिहास के कुछ अंधकारमय काल पर टिप्पणी' नामक एक विशेष खंड है। इसमें परिषद ने छात्रों से आग्रह किया है कि वे 'क्रूर हिंसा, अपमानजनक कुशासन या सत्ता की गलत महत्वाकांक्षाओं के ऐतिहासिक मूल' को निष्पक्षता से समझें।

एनसीईआरटी का मानना है कि इतिहास को साफ-सुथरा बनाने के बजाय उसे संतुलित और साक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात जो इस पुस्तक में कही गई है, वह यह है कि 'अतीत की घटनाओं के लिए आज किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।' इसका उद्देश्य छात्रों को इतिहास के प्रति एक आलोचनात्मक लेकिन दोषारोपण से मुक्त दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करना है।

इस नई पुस्तक में न केवल मुगल शासकों, बल्कि दिल्ली सल्तनत के उत्थान और पतन, विजयनगर साम्राज्य के वैभव, और मुगलों के खिलाफ मराठों और सिखों के प्रतिरोध पर भी प्रकाश डाला गया है। यह नया दृष्टिकोण निश्चित रूप से कक्षा में इतिहास शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को एक नई दिशा देगा, जहाँ छात्रों को घटनाओं के विभिन्न पहलुओं से रूबरू कराया जाएगा।



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