कुंडली में छिपा एक रहस्यमयी श्राप - “नाग दोष”

Jitendra Kumar Sinha
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वैदिक ज्योतिष, ज्ञान का वह अथाह सागर है जिसकी गहराइयों में मानव जीवन के समस्त रहस्यों के सूत्र छिपे हैं। जन्म, मृत्यु, सुख, दुःख, सफलता, और असफलता, यह सब केवल संयोग नहीं है, बल्कि ग्रहों और नक्षत्रों के जटिल नृत्य का परिणाम हैं। इसी दिव्य विज्ञान का एक महत्वपूर्ण अंग है 'दोष' की अवधारणा। यह दोष कुंडली में ग्रहों की कुछ विशेष अशुभ स्थितियों के कारण बनता है और जातक के जीवन में विभिन्न प्रकार की बाधाएं, कष्ट और चुनौतियां लेकर आता है। पितृ दोष, मंगल दोष, और शनि की साढ़ेसाती जैसे दोषों से तो अधिकांश लोग परिचित हैं, किन्तु एक ऐसा भी दोष है जो रहस्य, भय और भ्रम के कोहरे में लिपटा हुआ है - “नाग दोष”।

सनातन परंपरा में नागों को केवल सरीसृप जीव नहीं, बल्कि दिव्य शक्तियों से संपन्न पूजनीय देवता माना गया है। भगवान शिव के गले का हार वासुकि नाग हैं, तो भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं। नाग शक्ति, दिव्यता, पुनर्जन्म और कुंडलिनी ऊर्जा के प्रतीक हैं। ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, नाग दोष को इन्हीं नाग देवताओं के श्राप का परिणाम माना जाता है।

नाग दोष का मूल आधार कर्मफल का सिद्धांत है। मान्यता है कि जिन जातकों ने अपने पूर्व जन्म में किसी स्वार्थ, अज्ञानता या द्वेष के चलते नागों या सर्पों को किसी भी प्रकार का कष्ट दिया हो, उन्हें सताया हो, या उनकी हत्या की हो, उन पर नागों का श्राप लग जाता है। यह श्राप कर्म के लेखे के रूप में आत्मा के साथ जुड़ जाता है और अगले जन्म में जब व्यक्ति का जन्म होता है, तो उसकी कुंडली में ग्रहों की एक विशेष स्थिति के रूप में प्रकट होता है, जिसे 'नाग दोष' कहा जाता है।

यह केवल एक शारीरिक कर्म का फल नहीं है, बल्कि एक जीव की आत्मा को दिए गए कष्ट का प्रतिफल है। इसलिए इसका प्रभाव भी अत्यंत गहरा और बहुआयामी होता है, जो व्यक्ति के मन, शरीर, परिवार और भाग्य, सभी को प्रभावित करता है।

ज्योतिष में रुचि रखने वाले लोगों के बीच सबसे बड़ा भ्रम नाग दोष और कालसर्प दोष को लेकर है। अधिकांश लोग इन दोनों को एक ही मान लेते हैं, जो एक बहुत बड़ी भूल है। यद्यपि दोनों दोषों का संबंध राहु-केतु से है, जो सर्प का प्रतिनिधित्व करता है, तथापि इनकी प्रकृति, निर्माण और प्रभाव में आकाश-पाताल का अंतर है।

जब कुंडली में सभी सात ग्रह (सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि) राहु और केतु के बीच एक ही तरफ आ जाता है, तो कालसर्प योग बनता है।वहीं, राहु या केतु की कुंडली के कुछ विशेष भावों (1, 2, 5, 7, 8) में स्थिति या चंद्र और शुक्र जैसे ग्रहों के साथ युति से होता है, तो नाग दोष बनता है। 

कालसर्प दोष वंशानुगत (hereditary) हो सकता है। इसका प्रभाव जातक के जीवनकाल तक ही सीमित रहता है और उसके कर्मों के अनुसार, अगली पीढ़ी में इसका स्वरूप बदल सकता है। वहीं, नाग दोष एक व्यक्तिगत कर्म का श्राप है। इसका प्रभाव जातक की मृत्यु के बाद भी उसकी आत्मा के साथ बना रह सकता है, जब तक कि कर्म का क्षय न हो जाए। यह अधिक व्यक्तिगत और गहरा होता है।

कालसर्प दोष विश्लेषण अपेक्षाकृत सरल है। ग्रहों की स्थिति स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। लेकिन वहीं, नाग दोष विश्लेषण अधिक जटिल है। केवल भावों में स्थिति देखना पर्याप्त नहीं है, बल्कि राहु-केतु का अशुभ और सक्रिय होना अनिवार्य है।

कालसर्प दोष जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों को एक साथ प्रभावित कर एक प्रकार का बंधन या संघर्ष उत्पन्न करता है। जातक महसूस करता है कि उसकी क्षमताएं बंधी हुई हैं। वहीं, नाग दोष जीवन के कुछ विशेष क्षेत्रों, जैसे विवाह, संतान, स्वास्थ्य और मन पर बहुत ही केंद्रित और तीव्र प्रहार करता है।

जब तक इन दोनों दोषों के बीच के अंतर को नहीं समझा जायेगा, तब तक सही निवारण तक नहीं पहुँचा जा सकता है। कालसर्प दोष के उपाय अलग हैं और नाग दोष के उपाय अलग। गलत दोष का उपाय करना वैसा ही है जैसे किसी और बीमारी की दवा खाना। इससे कोई लाभ नहीं होता है, बल्कि समय और संसाधनों की हानि ही होती है। इसलिए, किसी भी निष्कर्ष पर पहुँचने से पहले एक योग्य ज्योतिषी से कुंडली का सूक्ष्म विश्लेषण करवाना अनिवार्य होता है।

नाग दोष के निर्माण को लेकर ज्योतिष जगत में कुछ परिभाषाएं बहुत प्रचलित हैं। यदि किसी कुंडली में छाया ग्रह राहु अथवा केतु, कुंडली के लग्न (पहला घर), दूसरे, पांचवें, सातवें या आठवें घर में स्थित हों, तो नाग दोष का निर्माण होता है। साथ ही, यदि राहु या केतु की युति (conjunction) चंद्रमा या शुक्र के साथ हो, तो भी नाग दोष बनता है।

यदि इन प्रचलित परिभाषाओं को अक्षरशः सत्य मान लिया जाए, तो एक बहुत ही अव्यावहारिक और अतार्किक स्थिति उत्पन्न होती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, दुनिया की लगभग 50% या उससे भी अधिक कुंडलियों में राहु या केतु उपरोक्त भावों या युतियों में पाए जाएंगे। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि दुनिया का हर दूसरा व्यक्ति नाग दोष से पीड़ित होना चाहिए।

इसका एक और भयावह निष्कर्ष यह निकलता है कि यदि दुनिया की वर्तमान जनसंख्या 8 अरब है, तो उनमें से 4 अरब लोगों ने अपने पिछले जन्म में सांपों को मारा होगा। यह आंकड़ा न केवल अविश्वसनीय है, बल्कि यह वैदिक ज्योतिष के उस सिद्धांत के भी विरुद्ध है जिसके अनुसार कोई भी गंभीर योग या दोष इतना सहज और सुलभ नहीं होता है कि वह हर दूसरे व्यक्ति की कुंडली में बन जाए।

अतः यह स्पष्ट है कि केवल ग्रहों का किसी विशेष भाव में बैठ जाना ही नाग दोष बनाने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। इसके लिए कुछ अन्य कठोर और अनिवार्य शर्तों का पूरा होना आवश्यक है, राहु-केतु का 'अशुभ' (Malefic) होना- किसी भी दोष के निर्माण के लिए संबंधित ग्रह का कुंडली में अशुभ होना पहली और सबसे महत्वपूर्ण शर्त होता है। यदि राहु या केतु कुंडली में एक शुभ ग्रह के रूप में स्थित हैं - उदाहरण के लिए, वह अपनी उच्च राशि में हैं, मित्र राशि में हैं, या किसी शुभ ग्रह (जैसे बृहस्पति) से दृष्ट हैं, तो वह कभी भी 'नाग दोष' जैसा गंभीर दोष नहीं बनाएंगा, भले ही वह उपरोक्त भावों में क्यों न बैठा हो। शुभ ग्रह कभी दोष का निर्माण नहीं करता है। राहु-केतु का 'सक्रिय' (Active) होना-  कुंडली में किसी ग्रह का अशुभ होना ही काफी नहीं होता है, उसका सक्रिय होना भी आवश्यक है। ग्रह अपनी दशा (महादशा), अंतर्दशा या प्रत्यंतरदशा में ही अपना पूर्ण फल देने में सक्षम होता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में नाग दोष बनाने वाली ग्रह स्थिति मौजूद है, लेकिन जीवन में राहु या केतु की दशा कभी आती ही नहीं है या बहुत वृद्धावस्था में आती है, तो व्यक्ति को उस दोष के विनाशकारी प्रभावों का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसलिए, नाग दोष एक दुर्लभ और विशिष्ट ज्योतिषीय स्थिति है, जिसका निर्धारण बहुत ही सूक्ष्म विश्लेषण के बाद किया जाना चाहिए।

जब किसी कुंडली में प्रामाणिक रूप से नाग दोष की पुष्टि हो जाती है, तो उसके प्रभाव अत्यंत कष्टकारी और जीवन को झकझोर देने वाला हो सकता है। यह दोष एक अदृश्य शत्रु की भांति जीवन के उन पहलुओं पर आक्रमण करता है जो सुख और संतुष्टि के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।

नाग दोष का सबसे तीव्र प्रहार व्यक्ति के दांपत्य जीवन पर होता है। विवाह में विलंब- जातक के विवाह में अनावश्यक और अतार्किक बाधाएं आती हैं। सब कुछ तय हो जाने के बाद भी रिश्ते टूट जाते हैं। कलहपूर्ण दांपत्य- विवाह के बाद भी जीवनसाथी के साथ निरंतर मतभेद, झगड़े और मानसिक तनाव बना रहता है। घर का माहौल विषाक्त हो जाता है। तलाक या अलगाव- कई मामलों में यह दोष इतना प्रबल होता है कि यह विवाह को टूटने (तलाक) या जीवनसाथी से स्थायी अलगाव तक ले जाता है। एक से अधिक विवाह टूटने की भी आशंका रहती है, विशेषकर यदि राहु-केतु का संबंध शुक्र ग्रह से हो। जीवनसाथी का स्वास्थ्य-  जातक के जीवनसाथी का स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है। बीमारियों का कारण भी जल्दी समझ नहीं आता और इलाज का पूरा लाभ नहीं मिलता।

विवाह के बाद हर दंपति की अभिलाषा संतान सुख की होती है, लेकिन नाग दोष इस सुख पर ग्रहण लगा देता है, विशेषकर महिलाओं के लिए यह किसी श्राप से कम नहीं होता है। संतानहीनता-  नाग दोष संतान प्राप्ति में गंभीर बाधाएं उत्पन्न कर सकता है। गर्भपात-  इस दोष के सबसे दुखद प्रभावों में से एक होता है बार-बार होने वाला गर्भपात। यह महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से तोड़कर रख देता है। संतान का विरोधी होना-  यदि संतान हो भी जाए, तो वह बड़ी होकर माता-पिता की विरोधी बन जाता है, उनका अपमान करता है और कष्ट का कारण बनता है। धीमा विकास-  संतान का मानसिक या शारीरिक विकास भी धीमी गति से हो सकता है।

मानसिक अशांति- राहु और केतु का संबंध जब चंद्रमा (मन का कारक) से बनता है, तो जातक को तीव्र मानसिक पीड़ा, अवसाद, अज्ञात भय (phobia) और अनिद्रा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पुरानी और गुप्त बीमारियां-  यह दोष ऐसी बीमारियां देता है जो लंबे समय तक चलती हैं और जिनका निदान मुश्किल होता है। यौन संचारित रोग (STDs) और अन्य गुप्त रोग भी इसी दोष का परिणाम हो सकता हैं। त्वचा रोग और रक्तचाप-  त्वचा संबंधी समस्याएं जैसे एक्जिमा, सोरायसिस और उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) की समस्या आम हो जाता है। दुर्घटना और आकस्मिक मृत्यु-  यह दोष जीवन में गंभीर दुर्घटनाओं और आकस्मिक मृत्यु के भय को जन्म देता है। जातक को बार-बार अस्पताल के चक्कर लगाना पड़ सकता है। स्वप्न में सर्प दिखना-  नाग दोष से पीड़ित जातकों को अक्सर स्वप्न में सांप दिखाई देता है, जो उन्हें डराता है या उनका पीछा करता है।

असफलता और संघर्ष-  जातक को अपने प्रयासों में सफलता नहीं मिलता है। वह जिस भी काम में हाथ डालता है, उसमें असफलता ही हाथ लगता है। बुरे कर्म-  दोष के प्रभाव में व्यक्ति की बुद्धि भ्रमित हो जाता है और वह अनैतिक और बुरे कर्मों में लिप्त हो सकता है, जिससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा धूमिल होता है।

यदि कुंडली में नाग दोष की पुष्टि होता है, तो घबराने या निराश होने की आवश्यकता नहीं है। वैदिक ज्योतिष केवल समस्या का निदान ही नहीं करता, बल्कि उससे मुक्ति का मार्ग भी दिखाता है। श्रद्धा, विश्वास और निरंतरता के साथ किए गए उपाय इस दोष के प्रभाव को काफी हद तक कम कर सकता है।

भगवान शिव की आराधना (सर्वश्रेष्ठ उपाय)- भगवान शिव 'नागभूषण' हैं, अर्थात नाग उनके आभूषण हैं। वे सभी नागों के स्वामी हैं। इसलिए नाग दोष की शांति के लिए शिव आराधना रामबाण होता है। नियमित जलाभिषेक/दुग्धाभिषेक- प्रतिदिन या कम से कम प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर जल और कच्चा दूध चढ़ाना चाहिए। मंत्र जाप-  अभिषेक करते समय "ॐ नमः शिवाय" पंचाक्षरी मंत्र का निरंतर जाप करना चाहिए। प्रार्थना-  अपनी भूल (जो पूर्व जन्म में हुई) के लिए क्षमा याचना करना चाहिए और दोष के प्रभाव को शांत करने की प्रार्थना करना चाहिए। सर्प परिहार पूजा-  यह एक विशेष पूजा है जो नाग दोष निवारण के लिए ही किया जाता है। इसे किसी पवित्र तीर्थ स्थान (जैसे त्र्यंबकेश्वर, कालहस्ती, उज्जैन) पर किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से करवाना चाहिए। षष्ठी तिथि इस पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। शेषनाग की पूजा-  मंगलवार और शनिवार के दिन शेषनाग (या किसी भी नाग देवता की मूर्ति या चित्र) की पूजा करना चाहिए। सिंदूर, दूध और फल अर्पित करना चाहिए। यह पूजन कम से कम 18 सप्ताह तक करने से विशेष लाभ मिलता है। नरसिंह भगवान का पूजा-  भगवान नरसिंह को राहु के दुष्प्रभावों को नियंत्रित करने वाला देवता माना जाता है। उनकी नियमित पूजा या उनके स्तोत्र का पाठ करने से राहु जनित कष्टों में कमी आता है। नागपंचमी का विशेष पूजन-  नागपंचमी का दिन नागों की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ है। इस दिन जीवित सर्प को दूध पिलाने का प्रयास न करें, यह उनके लिए हानिकारक हो सकता है। इसके बजाय, नाग देवता की मूर्ति का पूजन करें, व्रत रखें और महाभारत के 'आस्तीक पर्व' का पाठ करें, जिसमें सर्पों की रक्षा की कथा है।

मंत्रों में ब्रह्मांडीय ऊर्जा को साधने की अद्भुत शक्ति होती है। नियमित मंत्र जाप से एक सुरक्षा कवच का निर्माण होता है। नाग गायत्री मंत्र- यह मंत्र नाग दोष निवारण के लिए अत्यंत शक्तिशाली माना गया है। श्रावण मास में किसी विद्वान से इसका सवा लाख जाप और दशांश हवन करवाना सर्वोत्तम परिणाम देता है।

“ॐ नागराजाय विद्महे कद्रूवंशाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्॥”

नाग स्तुति (नवनाग स्तोत्र)-  इस स्तोत्र का प्रतिदिन, विशेषकर सुबह और शाम को पाठ करने से सर्प भय समाप्त होता है और जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त होता है।

“अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्। शंखपालं धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥ एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्। सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः॥ तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥”

महामृत्युंजय मंत्र-  "ॐ त्र्यम्बकं यजामहे..." यह मंत्र भगवान शिव का महामंत्र है। यह न केवल अकाल मृत्यु के भय को दूर करता है, बल्कि सभी प्रकार के दोषों और रोगों से रक्षा करता है। प्रतिदिन कम से कम 108 बार इसका जाप करें।

भुजंग स्तोत्र-  आदि शंकराचार्य द्वारा रचित यह स्तोत्र भी भगवान शिव को समर्पित है और नाग दोष की शांति के लिए इसका पाठ बहुत प्रभावी है।

गोमेद रत्न (Hessonite)-  यह राहु का रत्न है। यदि कुंडली में राहु के कारण नाग दोष बन रहा है, तो किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह पर, सही वजन का गोमेद रत्न चांदी की अंगूठी में बनवाकर मध्यमा (Middle) अंगुली में धारण किया जा सकता है। 

पंचधातु की अंगूठी-  ज्योतिषीय परामर्श से सिद्ध की हुई पंचधातु (सोना, चांदी, तांबा, जस्ता, सीसा) की अंगूठी धारण करना भी संतुलन स्थापित करने में सहायक होता है।

कर्म का ऋण कर्म से ही चुकता है। दान और सेवा से बढ़कर कोई प्रायश्चित नहीं होता है। दाल का दान- 42 बुधवार तक किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को साबुत मूंग या किसी अन्य दाल का दान करना चाहिए। घर में मोर पंख- भगवान कृष्ण के मुकुट की शोभा बढ़ाने वाला मोर पंख घर में रखना चाहिए। मोर और सर्प में नैसर्गिक शत्रुता है, इसलिए माना जाता है कि जहां मोर पंख होता है, वहां सर्प संबंधी नकारात्मक ऊर्जा नहीं ठहरती है। चंदन का तिलक-  अपने माथे पर चंदन का तिलक लगाना चाहिए। चंदन की प्रकृति शीतल होता है, जो राहु के उग्र और भ्रमित करने वाले प्रभाव को शांत कर मन को स्थिरता प्रदान करती है। धार्मिक यात्रा-  हर शनिवार, अपने जीवनसाथी के साथ किसी भी धार्मिक स्थान (मंदिर, गुरुद्वारा, आदि) पर जाकर प्रार्थना करना चाहिए। यह दांपत्य जीवन में आ रही बाधाओं को दूर करता है। जीवों के प्रति दया- सबसे महत्वपूर्ण उपाय है कि अपने मन, वचन और कर्म से किसी भी जीव को कष्ट न पहुंचाएं, विशेषकर सरीसृप प्रजाति के जीवों को।

नाग दोष निस्संदेह वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक गंभीर और पीड़ादायक दोष है। यह हमारे पूर्व जन्म के कर्मों का एक आईना है, जो हमें हमारे दायित्वों का बोध कराता है। किन्तु, यह कोई अंतिम सत्य या आजीवन कारावास का दंड नहीं है। यह एक संकेत है कि हमें अपनी आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने, कर्मों को सुधारने और दैवीय शक्तियों की शरण में जाने की आवश्यकता है। इस विस्तृत विश्लेषण का उद्देश्य किसी को डराना नहीं, बल्कि जागरूक करना है। यदि जीवन में उपरोक्त लक्षण दिखाई देता हैं, तो पहला कदम एक विद्वान और अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श करना है, न कि भयभीत होकर अंधविश्वास में पड़ना। एक बार दोष की प्रामाणिक पुष्टि हो जाने पर, पूर्ण श्रद्धा और अटूट विश्वास के साथ बताए गए उपायों को अपने जीवन का अंग बनाना श्रेष्कर होगा। भगवान शिव की करुणा और नाग देवताओं का आशीर्वाद उन भक्तों को अवश्य प्राप्त होता है जो सच्चे हृदय से क्षमा याचना करते हैं और धर्म के मार्ग पर चलते हैं। 



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