बुढ़ापे में भी बनते हैं नए न्यूरॉन्स

Jitendra Kumar Sinha
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बढ़ती उम्र के साथ हमारा दिमाग थकने लगता है? हम बूढ़े होते ही सीखना, समझना और याद रखना बंद कर देते हैं? दशकों से वैज्ञानिक और आम लोग इस बहस में उलझे हुए हैं। लेकिन अब स्वीडन के वैज्ञानिकों ने एक नई खोज के माध्यम से यह साबित कर दिया है कि इंसानी दिमाग, विशेषकर हिप्पोकैंपस क्षेत्र, उम्र बढ़ने के बाद भी नए न्यूरॉन्स बना सकता है।

यह खोज न केवल विज्ञान की दृष्टि से एक नई क्रांति है, बल्कि यह मानसिक रोगों जैसे अल्जाइमर, डिमेंशिया और डिप्रेशन के इलाज के नए दरवाज़े भी खोल सकता है। इस शोध में मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म की मदद से 78 साल तक के लोगों के मस्तिष्क ऊतकों की जांच की गई और चौंकाने वाले परिणाम सामने आया।

“हिप्पोकैंपस”  मस्तिष्क का वह हिस्सा है जो स्मृति (याददाश्त), सीखने और भावनात्मक प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है। यह वह क्षेत्र है जहां नई जानकारी संसाधित होता है और दीर्घकालिक स्मृति में परिवर्तित होता है। यदि इस हिस्से में जीवन भर नए न्यूरॉन्स बनता हैं, तो यह मानव मस्तिष्क की सप्लाई चेन की तरह है, जो हर समय अपडेट होता रहता है। इसका अर्थ है कि मस्तिष्क शिक्षा, अनुभव और भावनात्मक विकास में हर उम्र में सक्षम बना रहता है।

‘न्यूरॉजनिसिस’  वह प्रक्रिया है जिसमें मस्तिष्क में नए न्यूरॉन्स (तंत्रिका कोशिकाएं) बनती हैं। आम धारणा रहता है कि यह प्रक्रिया केवल शैशवावस्था (infancy) और बचपन में ही होता है। जैसे ही व्यक्ति वयस्क होता है, यह प्रक्रिया धीमा हो जाता है और अंततः रुक जाता है, यही मान्यता अब तक प्रचलित थी। लेकिन हालिया शोध इस मान्यता को गलत साबित करता है।

स्वीडन के कैरोलिस्का इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने मशीन लर्निंग तकनीक के मध्यम से यह सिद्ध कर दिया है कि मानव मस्तिष्क में बुढ़ापे तक भी न्यूरॉन्स बनता रहता है। इस शोध का नेतृत्व कर रही वैज्ञानिक मार्टा पैटरलिनी और उनकी टीम ने यह खोज कर विज्ञान की दशकों पुरानी बहस का समाधान प्रस्तुत कर दिया है।

इस शोध की मुख्य बातें है, शोध में 78 साल तक के लोगों के दिमागी ऊतकों की जांच की गई। चार लाख से अधिक कोशिकाओं के न्यूक्लियस का मशीन लर्निंग से विश्लेषण किया गया। पहले परीक्षण में 14 में से 9 लोगों के मस्तिष्क में नए न्यूरॉन्स बनने के प्रमाण मिले और दूसरे परीक्षण में 10 में से सभी 10 लोगों में न्यूरॉन्स बनने के संकेत मिले।

इस शोध में मशीन लर्निंग तकनीक का प्रयोग बायोलॉजिकल डाटा के विशाल सेट को प्रोसेस करने और सही निष्कर्ष निकालने के लिए किया गया। वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क के सेल न्यूक्लियस की संरचना, आकार और व्यवहार का विश्लेषण करने के लिए एल्गोरिद्म तैयार किया। इसके माध्यम से यह जाना गया कि किन कोशिकाओं में जीवन भर विभाजन और विकास की प्रवृत्ति बनी रहती है।

इस तकनीक के फायदा है कि मैन्युअल विश्लेषण की तुलना में कहीं अधिक सटीकता रहती है। तेजी से प्रोसेसिंग और विशाल डाटा का विश्लेषण होता है और न्यूरॉन्स की पहचान में उच्च संवेदनशीलता दिखता है।

1998 में कैंसर के मरीजों पर हुए शोध में पहली बार यह प्रमाण मिला था कि वयस्क मस्तिष्क में भी नए न्यूरॉन्स बनता है। 2013 में  कैरोलिस्का इंस्टीट्यूट ने ही एक शोध में दावा किया था कि इंसान के दिमाग में हर दिन करीब 700 नए न्यूरॉन्स बनता हैं। लेकिन उस समय वैज्ञानिक समुदाय में इस पर सहमति नहीं बन पाई थी। 2024-25 का शोध अब अत्याधुनिक मशीन लर्निंग तकनीक की मदद से यह दावा पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो चुका है और वैज्ञानिक समुदाय में इसे व्यापक स्वीकृति मिल रहा है।

इस खोज से न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के इलाज में क्रांति आ सकता है। जब यह साबित हो गया है कि मस्तिष्क में नए न्यूरॉन्स बनने की प्रक्रिया चलती रहती है, तो कई बीमारियों के लिए नए ट्रीटमेंट मॉडल तैयार किया जा सकता है।

इसके संभावित फायदा है अल्जाइमर- याददाश्त खोने की बीमारी के लिए न्यूरॉजनिसिस को बढ़ाने वाली थेरेपी तैयार किया जा सकता है। डिप्रेशन- नई न्यूरॉन्स की कमी भी डिप्रेशन से जुड़ा हो सकता है, जिससे इलाज की दिशा बदला जा सकता है। ट्रॉमा या स्ट्रोक- मस्तिष्क क्षति के बाद रिकवरी में सहायता मिल सकता है।

यदि मस्तिष्क में उम्रभर न्यूरॉन्स बनता हैं, तो इस प्रक्रिया को तेज या सक्रिय कर सकते हैं। इसके लिए  रोजाना शारीरिक गतिविधि जैसे तेज चलना, दौड़ना, योग करना आवश्यक है, ऐसा करने से न्यूरॉजनिसिस बढ़ता है। मानसिक व्यायाम के लिए पहेली हल करना, नई भाषा सीखना, संगीत वादन करना जरूरी है ताकि मस्तिष्क सक्रिय रहे। पर्याप्त नीद न्यूरॉन्स के पुनर्निर्माण में सहायक होता है। स्वस्थ आहार लेने जैसे ब्लूबेरी, मछली, हरी सब्ज़ियां से ब्रेन हेल्थ सुधरता है।

यह खोज उत्साहजनक है, लेकिन अभी भी कई प्रश्न अनुत्तरित हैं। क्या हर व्यक्ति में न्यूरॉजनिसिस की दर एक समान होती है? कौन से कारक इस प्रक्रिया को बाधित करता हैं? क्या मानसिक तनाव और प्रदूषण जैसे बाहरी कारक न्यूरॉजनिसिस को धीमा कर सकता हैं? इन प्रश्नों का उत्तर भविष्य के शोध में मिलेगा, लेकिन फिलहाल यह स्पष्ट हो गया है कि दिमाग उम्रभर पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में संलग्न रहता है।

स्वीडन के वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि उम्र चाहे 20 की हो या 78 की,  मस्तिष्क सीखने और बदलने की क्षमता रखता है। यह खोज विज्ञान, चिकित्सा और जीवनशैली की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। यह न केवल मेडिकल फील्ड को प्रभावित करेगा, बल्कि आम लोगों के जीवन जीने के तरीके को भी।



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