भारत ने अंतरिक्ष के बाद अब समुद्र की अथाह गहराइयों में भी अपना कदम बढ़ा दिया है। समुद्री संसाधनों की खोज और वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए भारत का महत्वाकांक्षी ‘समुद्रयान मिशन’ एक नए चरण में पहुंच गया है। इस मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि है ‘मत्स्य-6000’ नामक मानव-सक्षम पनडुब्बी, जो 6 किलोमीटर गहरे समुद्र की सतह तक वैज्ञानिकों को लेकर जायेगा।
इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) और राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) की इस संयुक्त परियोजना में “मत्स्य-6000” के निर्माण की दिशा में अहम तकनीकी सफलता हासिल हो चुका है। इसरो ने हाल ही में जानकारी दी है कि इस पनडुब्बी की वेल्डिंग प्रक्रिया पूरी कर ली गई है, जो इस परियोजना के लिए मील का पत्थर है।
समुद्रयान मिशन, भारत सरकार की ‘डीप ओशन मिशन’ का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य गहरे समुद्र में मौजूद खनिजों, गैसों और जैव विविधता की खोज करना है। यह मिशन ‘ब्लू इकोनॉमी’ को बढ़ावा देने की दिशा में भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इसका संचालन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की निगरानी में किया जा रहा है।
“मत्स्य-6000” एक विशेष प्रकार की मानव-सक्षम सबमर्सिबल (HOV – Human Occupied Vehicle) है। इसे इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि यह समुद्र की सतह से 6000 मीटर नीचे अत्यधिक दवाब झेल सके और तीन लोगों को सुरक्षित लेकर जा सके। इसकी संरचना टाइटेनियम मिश्र धातु से बनी है, जो समुद्र के अत्यधिक दवाब को सहन करने में सक्षम है।
इसका निर्माण इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC), तिरुवनंतपुरम में किया जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक के माध्यम से गहरे समुद्र की सतह पर मौजूद बहुमूल्य धातुएं जैसे कोबाल्ट, निकल, मैगनीज और दुर्लभ अर्थ धातुएं खोजी जा सकेगी, जिनका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, बैटरी और अंतरिक्ष तकनीकों में होता है।
महासागरों में दुर्लभ खनिजों की खोज से भारत वैश्विक स्तर पर संसाधन शक्ति बन सकता है। समुद्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को समझने में मदद मिलेगी। “मत्स्य-6000” का स्वदेशी निर्माण भारत की गहरी समुद्री तकनीक में आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
वेल्डिंग प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद अब “मत्स्य-6000” के अन्य महत्वपूर्ण परीक्षण किया जाएगा, जिनमें पानी के भीतर दबाव परीक्षण और चालक दल की सुरक्षा से जुड़े परीक्षण प्रमुख हैं। 2026 तक इसके समुद्र में उतरने की उम्मीद जताई जा रही है।
भारत का यह समुद्रयान मिशन न सिर्फ तकनीकी दृष्टि से ऐतिहासिक है, बल्कि यह देश की वैज्ञानिक क्षमता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में भी बड़ा संकेत है। अंतरिक्ष में चंद्रयान और मंगलयान के बाद, अब ‘मत्स्य-6000’ के जरिए भारत समुद्र की रहस्यमयी दुनिया में भी अपनी छाप छोड़ने को तैयार है। यह गहराइयों की ओर भारत की अगली क्रांतिकारी छलांग है।
