भारत भूमि पर ऐसे अनगिनत स्थल हैं, जहाँ धर्म, अध्यात्म और चमत्कार एक साथ जीवित प्रतीत होता है। उत्तर प्रदेश के भदोही जिला में स्थित तिलेश्वर महादेव मंदिर भी उन्हीं स्थानों में से एक है। यह मंदिर न केवल पौराणिक महत्व का धरोहर है, बल्कि वैज्ञानिक सोच को चुनौती देने वाला अद्भुत रहस्य भी अपने भीतर समेटे हुए है, एक ऐसा शिवलिंग जो साल में तीन बार रंग बदलता है।
भक्तों की आस्था, पुराणों का संदर्भ, और आधुनिक युग की जिज्ञासा, सब मिलकर तिलेश्वर महादेव को एक चमत्कारी धाम बनाता है, जहाँ श्रावण मास में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है।
तिलेश्वर महादेव मंदिर तिलंगा में स्थित है। तिलंगा, तहसील गोपीगंज, जिला भदोही, उत्तर प्रदेश में अवस्थित है। काशी (वाराणसी) और प्रयागराज के मध्य, जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। मान्यता है कि यह मंदिर महाभारत काल के पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था।
भदोही का यह इलाका ऐतिहासिक दृष्टि से भी बेहद समृद्ध है। यह क्षेत्र सदियों से सनातन धर्म की साधना भूमि रहा है। प्राचीन ग्रंथों और जनश्रुतियों के अनुसार, तिलेश्वर महादेव का शिवलिंग स्वयंभू है और यहाँ दर्शन मात्र से पापों का क्षय होता है।
तिलेश्वर महादेव मंदिर की सबसे अद्भुत और रहस्यमयी बात यह है कि यहाँ का शिवलिंग साल में तीन बार अपना रंग बदलता है। श्रावण मास में शिवलिंग हल्के नीले रंग का हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के समय इसका रंग हल्का गाढ़ा काला हो जाता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवलिंग सुनहरे रंग की झलक देता है। यह रंग परिवर्तन वैज्ञानिक दृष्टि से समझाया नहीं जा सका है। इस पर न तो कोई रंग चढ़ाया जाता है, न ही कोई रसायनिक प्रक्रिया किया जाता है। यह पूर्णतः स्वाभाविक और रहस्यमय प्रक्रिया है, जो भक्तों की आस्था को और अधिक गहराई देता है।
मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के समय इस स्थान पर तप किया था और शिवलिंग की स्थापना किया था। शिव ने यहाँ 'तिल' के आकार में लिंग रूप में प्रकट होकर दर्शन दिया था, इसी कारण इस स्थान का नाम ‘तिलेश्वर’ पड़ा। गाँव का नाम भी तिलंगा (तिल + अंग) इसी कथा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
एक अन्य लोककथा के अनुसार, एक ब्राह्मण को सपना में भगवान शिव ने दर्शन दिए और इस स्थल पर खुदाई करने को कहा। जब वहाँ खुदाई की गई, तो शिवलिंग मिला और तभी से यह मंदिर आस्था का केंद्र बन गया।
मंदिर के मुख्य पुजारी महादेव गोसाई के अनुसार, श्रावण मास में यह शिवलिंग ऊपरी परत (जिसे 'चप्पड़' कहा जाता है) छोड़ देता है। यह परत अपने आप झड़ जाता है और कोई भी इसे पकड़ नहीं पाता। यह परत साँप की केंचुली जैसा होता है, जो हर साल स्वतः उतरता है और देखते ही देखते लुप्त हो जाता है। यह घटना हर साल हजारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में घटता है, लेकिन आज तक कोई यह नहीं समझ सका है कि यह कैसे और क्यों होता है।
श्रावण मास के दौरान यहाँ कांवड़ यात्रा का आयोजन बड़े पैमाने पर होता है। श्रद्धालु गंगाजल लेकर पैदल यात्रा करते हुए मंदिर पहुंचते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। यह यात्रा न केवल शारीरिक तपस्या का प्रतीक है, बल्कि आत्मिक शुद्धिकरण का मार्ग भी है।
काशी से लेकर गंगापुर तक, विभिन्न क्षेत्रों से आए भक्त इस यात्रा में भाग लेते हैं। मंदिर परिसर में भजन, कीर्तन और रुद्राभिषेक का आयोजन होता है, जिससे सम्पूर्ण वातावरण शिवमय हो उठता है।
श्रावण मास में भक्तों की सबसे अधिक भीड़ रहता है। महाशिवरात्रि में रात्रि जागरण, रुद्राभिषेक, रुद्रपाठ और भस्म आरती होता है। कार्तिक पूर्णिमा में दीपदान और गंगा स्नान के साथ मंदिर में विशेष पूजा होता है। नवदुर्गा एवं शिव बारात का भव्य शोभायात्रा एवं नृत्य-नाटिका आयोजन होता है।
यह विश्वास है कि जो भी श्रद्धालु यहाँ सच्चे मन से मन्नत माँगता है, उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण होता हैं। विवाह, संतान सुख, नौकरी, स्वास्थ्य, हर प्रकार की कामना लेकर लोग यहाँ आते हैं और आश्चर्यजनक रूप से उन्हें सुखद परिणाम भी मिलता है। तिलेश्वर महादेव को "मनोकामना सिद्ध महादेव" के रूप में भी जाना जाता है।
मंदिर का परिसर विशाल और शांतिपूर्ण है। इसमें मुख्य गर्भगृह जहाँ शिवलिंग स्थापित है। नंदी मंडप जिसमें बैठा है भोलेनाथ का वाहन नंदी। पार्वती मंदिर माँ शक्ति की उपस्थिति भी इस धाम को पूर्णता देती है। यज्ञशाला और ध्यान मंडप साधना और यज्ञ कार्यों के लिए। नक्काशीदार पत्थरों से बना यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि स्थापत्य कला के दृष्टिकोण से भी प्रेरणादायक है।
कई वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों ने इस शिवलिंग के रंग बदलने की प्रक्रिया को समझने का प्रयास किया, लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं मिल पाया। कुछ लोग इसे खनिज तत्वों की अभिक्रिया कहते हैं, लेकिन कोई प्रमाण नहीं दे पाए। ऐसे में यह रहस्य भक्तों के लिए और भी चमत्कारिक बन गया है।
तिलेश्वर धाम केवल एक धार्मिक केंद्र नहीं है, बल्कि स्थानीय संस्कृति और लोक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। गाँव की अधिकांश गतिविधियाँ इस मंदिर से केंद्रित होता हैं, जैसे मेला आयोजन, शिव विवाह की झांकी, पारंपरिक नृत्य एव भजन मंडलियाँ और लोकगीतों में तिलेश्वर की महिमा। इस मंदिर ने पूर्वांचल की सांस्कृतिक आत्मा को सहेज रखा है।
श्रावण मास एवं महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर जिला प्रशासन विशेष व्यवस्थाएँ करता है। मुख्य सुविधाएँ में श्रद्धालुओं के लिए विश्राम स्थल और टेंट सिटी, डॉक्टरी सहायता केंद्र, स्थानीय पुलिस बल और स्वयंसेवक दल, भंडारे और प्रसाद वितरण। यहाँ का माहौल इतना भक्तिमय होता है कि श्रद्धा के बीच अनुशासन अपने आप उत्पन्न हो जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार और पर्यटन विभाग इस मंदिर को धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बना रहा हैं। इसमें शामिल हैं पक्की सड़क और परिवहन सुविधा, हेलिपैड की योजना, धार्मिक संग्रहालय और रुकने के लिए धर्मशालाएँ, डिजिटल दर्शन और वर्चुअल पूजा की सुविधा। इन प्रयासों से न केवल स्थानीय आर्थिक विकास होगा, बल्कि भारत की अध्यात्मिक धरोहर को वैश्विक मंच भी मिलेगा।
