बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। चुनाव आयोग की ओर से राज्य में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य यह है कि केवल योग्य और दस्तावेज़ों से प्रमाणित नागरिकों के ही नाम वोटर लिस्ट में रहें। लेकिन विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को "वोटबंदी" करार दिया है और आरोप लगाया है कि इससे करीब दो करोड़ वोटरों के नाम काटे जा सकते हैं।
विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इस प्रक्रिया के पीछे एक सुनियोजित साजिश है, जिसका मकसद है दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और प्रवासी मजदूरों के वोट को हटाना। इसके लिए जरूरी दस्तावेज़ों की लंबी सूची दी गई है — जैसे आधार, राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस आदि — जो बहुत से गरीब और ग्रामीण लोगों के पास नहीं होते। कांग्रेस, राजद, वाम दल और कई अन्य पार्टियों ने चुनाव आयोग से मिलकर इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है।
तेजस्वी यादव, दिग्विजय सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी समेत विपक्षी नेताओं का आरोप है कि ये प्रक्रिया बेहद अल्प समय में पूरी की जा रही है — मात्र 25 से 30 दिन में — जबकि मतदाता सूची की गहन समीक्षा में महीनों लगने चाहिए। विपक्ष का दावा है कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव में काम कर रहा है और इस तरह से वोटों की चोरी की जा रही है।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। आयोग का कहना है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक नियमित और संवैधानिक प्रक्रिया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह केवल बिहार में ही नहीं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी लागू की जा रही है। आयोग का कहना है कि इसका मकसद फर्जी वोटरों को हटाना और वैध वोटरों को ही सूची में बनाए रखना है।
चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि केवल मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के अधिकृत प्रतिनिधियों से ही वे बैठक करेंगे और किसी 'अनधिकृत' प्रतिनिधि को नहीं बुलाया जाएगा। इससे विपक्ष और भड़क गया और उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र का अपमान है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने सवाल उठाया कि जब 2003 में ऐसी प्रक्रिया हुई थी तो चुनाव उसके दो साल बाद हुए थे, अब अचानक चुनाव से ठीक पहले ऐसी जल्दबाज़ी क्यों?
अब इस मुद्दे ने चुनाव से पहले सियासी तापमान को और बढ़ा दिया है। विपक्षी गठबंधन INDIA ने इसे सामूहिक रूप से चुनौती देने की योजना बनाई है। वे कोर्ट में जाने की तैयारी कर रहे हैं, साथ ही जन आंदोलन और मीडिया के जरिए दबाव भी बढ़ा रहे हैं।
वोटर लिस्ट को लेकर इस तरह का विवाद पहले भी सामने आता रहा है, लेकिन इस बार के आरोप गंभीर हैं — और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। आने वाले हफ्तों में यह साफ़ होगा कि आयोग इस पर कैसे प्रतिक्रिया देता है और विपक्ष इसे कितना बड़ा मुद्दा बना पाता है।
