भारत — जहाँ गाय को माँ माना जाता है, जहाँ गोवर्धन पूजा होती है, और जहाँ गोमाता की रक्षा के नाम पर कानून, राजनीति और भावनाएं सब कुछ दांव पर लगा दिए जाते हैं। लेकिन आपको जानकर झटका लगेगा कि यही भारत, दुनिया का सबसे बड़ा बीफ़ (भैंस का मांस) निर्यातक है।
जी हां, एक तरफ़ हम ‘गाय हमारी माता है’ बोलते नहीं थकते, दूसरी तरफ़ हम हज़ारों टन बीफ़ जहाज़ों में लादकर विदेश भेजते हैं। इस विरोधाभास को कहें क्या — ढोंग, मज़ाक, या आर्थिक विवशता?
“बीफ़” शब्द का छलावा
जब आप सुनते हैं कि भारत बीफ़ निर्यात करता है, तो ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि गाय का मांस बेचा जा रहा है। लेकिन हकीकत कुछ अलग है। भारत गाय का नहीं बल्कि भैंस का मांस (Carabeef) निर्यात करता है। इससे सरकारें और उद्योग जगत यह कहकर बच निकलते हैं कि "हमने तो गोवंश को नहीं छुआ!"
बीफ़ निर्यात: कमाई का मोटा धंधा
भारत का बीफ़ कारोबार सिर्फ़ नैतिक सवाल नहीं, एक हज़ारों करोड़ की इंडस्ट्री है:
-
सालाना $3 बिलियन (लगभग ₹25,000 करोड़) से ज़्यादा की कमाई
-
मुख्य ग्राहक: मलेशिया, वियतनाम, मिस्र, सऊदी अरब आदि
-
“सस्ता, हेल्दी और हलाल” – यही है भारत के बीफ़ की USP
अक्सर ये तर्क दिया जाता है कि बूढ़े और काम के लायक न रहे भैंसों को मारकर हम "waste to wealth" कर रहे हैं। लेकिन इसमें जानवर की जान की कोई कीमत नहीं, सिर्फ़ मुनाफा है।
संस्कृति vs व्यापार: ढोंग की इंतिहा
यहाँ शुरू होता है असली तमाशा। एक ओर:
-
बीफ़ खाने पर लिंचिंग होती है
-
स्कूलों में बीफ़ बैन
-
गायों के लिए गौरक्षा समितियाँ
-
“गाय बचाओ” पर चुनाव जीते जाते हैं
वहीं दूसरी ओर:
-
भारत बीफ़ निर्यात में नंबर 1
-
सरकारें मांस निर्यात को प्रोत्साहन देती हैं
-
कत्लखाने रात-दिन चालू रहते हैं
-
भैंस को मारा जाए तो किसी को फर्क नहीं पड़ता
क्या ये साफ़-साफ़ दोहरा मापदंड नहीं है? गाय माँ है और भैंस सिर्फ़ एक मांस का गोदाम?
जिम्मेदार कौन?
सरकारें – चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी, सभी ने बीफ़ एक्सपोर्ट को बढ़ावा दिया है
राजनीतिक नेता – जो दिन में गौरक्षा की बात करते हैं और रात में कत्लखानों से चंदा लेते हैं
-
मांस माफिया – अवैध कत्लखाने, गायों को भैंस दिखाकर निर्यात, पशु क्रूरता सब इसमें चलता है
-
हम सब – जो विदेशी मुद्रा के नाम पर आँख मूंद लेते हैं
पर्यावरण, नैतिकता और छवि का नुकसान
पर्यावरण पर असर
मांस उत्पादन से मीथेन गैस, जल प्रदूषण और जंगलों की कटाई होती है। भारत, जो पहले से जलवायु संकट में है, अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है।
नैतिक सवाल
गाय और भैंस के बीच जो भावनात्मक भेद किया गया है, वो शुद्ध स्वार्थ है। हम "गो-रक्षा" के नाम पर सिर्फ़ वोट बैंक साधते हैं, जानवरों की चिंता नहीं करते।
अंतरराष्ट्रीय छवि
एक ओर हम “अहिंसा का देश”, “योग और अध्यात्म की भूमि” के नाम पर दुनिया भर में खुद को बेचते हैं — और वहीं पीछे से बीफ़ का एक्सपोर्ट कर रहे हैं।
अब क्या करना चाहिए?
-
गाय ही नहीं, भैंस की हत्या पर भी रोक लगनी चाहिए
अवैध कत्लखानों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए
-
पशुपालन से कमाई करने वाले किसानों को वैकल्पिक साधन दिए जाएं
-
प्लांट-बेस्ड प्रोटीन को बढ़ावा दिया जाए
-
और सबसे ज़रूरी — दिखावा बंद करें और ईमानदारी से निर्णय लें
निष्कर्ष: जो पवित्र है, वो नापा-तौला क्यों?
भारत का बीफ़ निर्यात एक राष्ट्रीय विरोधाभास है। हम धार्मिक भावनाओं का झंडा उठाकर दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं, लेकिन परदे के पीछे जानवरों की लाशें पैक करके मुनाफा कमाते हैं। अगर हम सचमुच गोवंश की रक्षा करना चाहते हैं, तो सिर्फ़ गाय नहीं — हर जानवर की जान की क़ीमत समझनी होगी।
वरना ये बीफ़ का ताज गौरव का नहीं, ढोंग का प्रतीक बना रहेगा।
