तेज प्रताप यादव—लालू प्रसाद यादव का बड़ा बेटा, राबड़ी देवी का लाडला, और कभी बिहार का स्वास्थ्य मंत्री। लेकिन आज? न मंत्रालय है, न मान है, न पार्टी में कोई ठोस जगह। जब राजनीति उत्तराधिकार से नहीं, काबिलियत से चलती है, तो ऐसे ही तेज हवा में उड़ते-उड़ते ज़मीन पर आ गिरते हैं।
एक समय था जब महागठबंधन की सरकार में उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। उस वक्त तेज प्रताप ने खुद कहा था कि उन्हें इस मंत्रालय की ज़िम्मेदारी अचानक मिली, और वो "सीख रहे हैं"। दिक्कत ये थी कि उनका सीखना कभी पूरा हुआ ही नहीं। बिहार का स्वास्थ्य विभाग जैसे पहले बीमार था, वैसे ही उनके कार्यकाल में कोमा में चला गया। कोई योजना नहीं, कोई सुधार नहीं, सिर्फ़ फाइलों की खानापूरी और मंत्री पद की शान में घूमना।
तेज प्रताप के व्यवहार ने उनकी छवि को और नीचे गिराया। कभी भगवान कृष्ण बनकर बांसुरी बजाते दिखते हैं, कभी जनेऊधारी ब्राह्मण बनकर सांप्रदायिक बयान देते हैं। कभी तेजस्वी को अर्जुन बोलते हैं और खुद को कृष्ण, तो कभी अपने ही पार्टी के नेताओं को दुर्योधन। सोशल मीडिया पर "बाबा तेज प्रताप" बनकर वीडियो डालते हैं, और फिर खुद को गंभीर नेता भी मानते हैं। पब्लिक कंफ्यूज है कि इनसे हंसे या इन पर रोए।
राजनीति में सबसे जरूरी होता है स्थिरता और अनुशासन, लेकिन तेज प्रताप का अंदाज़ हमेशा उथल-पुथल वाला रहा है। पार्टी में बार-बार बगावती तेवर, बयानबाज़ी और तेजस्वी यादव पर निशाने की वजह से धीरे-धीरे उनका प्रभाव खत्म होता गया। लालू यादव की राजनीतिक विरासत जहां तेजस्वी को मिल गई, वहीं तेज प्रताप किनारे लग गए। आज पार्टी के बड़े फैसलों में उनका कोई रोल नहीं है। बस कभी-कभी सुर्खियों में आ जाते हैं—या तो किसी बेतुके बयान से या फिर किसी "फैंसी ड्रेस पॉलिटिक्स" से।
लोगों ने उन्हें मौका दिया। परिवार ने उन्हें कुर्सी दी। लेकिन उन्होंने खुद अपने हाथों से सब गंवा दिया। कोई नेतृत्व कौशल नहीं, कोई नीति की समझ नहीं और कोई जनाधार भी नहीं। आज की तारीख में तेज प्रताप यादव सिर्फ़ एक राजनीतिक जोकर बनकर रह गए हैं, जिनकी पार्टी में कोई सुनवाई नहीं और जनता में कोई विश्वसनीयता नहीं।
अगर राजनीति में टिके रहना है, तो सिर्फ़ वंश नहीं चलता। पब्लिक अब देखती है कि कौन क्या कर रहा है। तेज प्रताप ने बस यही साबित किया है कि बिना तैयारी के मंत्री बनना, और बिना सोच के बोलना—दोनों चीज़ें मिलकर इंसान को हास्य का पात्र बना देती हैं।
तेजस्वी जहाँ बिहार की राजनीति में खुद को एक गंभीर नेता के रूप में स्थापित कर रहे हैं, वहीं तेज प्रताप यादव उसी राजनीति में एक मिस्ड कॉल की तरह रह गए हैं—जिसे कोई उठाना नहीं चाहता।
