बिहार में ‘डॉग बाबू’ के नाम से बना आवास प्रमाण-पत्र: डिजिटल फर्जीवाड़े पर प्रशासन की कड़ी कार्रवाई

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार की राजधानी पटना से एक अजीबोगरीब लेकिन गंभीर मामला सामने आया है, जिसने सरकारी व्यवस्था और डिजिटल प्रणाली की पोल खोल दी है। मसौढ़ी अंचल में ‘डॉग बाबू’ नाम के एक व्यक्ति के नाम पर बाकायदा आवास प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया, जबकि न तो ऐसा कोई व्यक्ति अस्तित्व में है और न ही कोई वैध दस्तावेज मौजूद था। इस फर्जीवाड़े ने प्रशासन की कार्यप्रणाली और सरकारी पोर्टल्स की सुरक्षा पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।


जांच में खुलासा हुआ कि दिल्ली की एक महिला के आधार कार्ड का गलत इस्तेमाल करते हुए 15 जुलाई को ऑनलाइन आवेदन किया गया था। आश्चर्य की बात यह रही कि आवेदन में दिए गए कागजातों की न तो उचित जांच की गई और न ही सत्यापन, और इसके बावजूद प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया। आवेदन में नाम दर्ज किया गया था ‘डॉग बाबू’—एक ऐसा नाम जो साफ तौर पर फर्जी प्रतीत होता है, फिर भी सिस्टम ने उसे वैध मान लिया।


जैसे ही यह मामला प्रशासन के संज्ञान में आया, तुरंत हरकत में आकर पटना के जिलाधिकारी डॉ. त्यागराजन एसएम ने मामले की जांच के आदेश दिए। शुरुआती जांच में दो सरकारी कर्मियों की बड़ी लापरवाही सामने आई—राजस्व अधिकारी मुरारी चौहान और आईटी सहायक। इन दोनों पर नियमों की अनदेखी, गलत डिजिटल हस्ताक्षर और दस्तावेजों के सत्यापन में घोर चूक के आरोप लगे हैं। जिलाधिकारी ने राजस्व अधिकारी के निलंबन की अनुशंसा कर दी है जबकि आईटी सहायक को तत्काल सेवा से मुक्त कर दिया गया है।


इसके साथ ही अज्ञात आवेदक, राजस्व अधिकारी और आईटी सहायक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 316(2), 336(3), 338 और 340(2) के तहत प्राथमिकी दर्ज कर दी गई है। वहीं, उस महिला की भी जांच की जा रही है, जिसके आधार कार्ड का इस्तेमाल किया गया। प्रशासन यह पता लगाने में जुटा है कि उसका डेटा चोरी हुआ या उसने खुद इस फर्जीवाड़े में भूमिका निभाई।


इस पूरे मामले ने न केवल सिस्टम की कमजोरियों को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि डिजिटल प्रक्रियाएं कितनी असुरक्षित हो सकती हैं अगर निगरानी ढीली हो। ऐसे में बिहार प्रशासनिक सुधार मिशन सोसाइटी ने सभी जिला पदाधिकारियों को यह निर्देश दिया है कि NIC के सर्विस प्लस पोर्टल पर दस्तावेजों के सत्यापन की प्रक्रिया को सख्ती से लागू किया जाए। साथ ही सरकार ने यह संकेत भी दिया है कि भविष्य में पोर्टल पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली जाएगी ताकि दस्तावेजों की स्वतः जांच हो सके और फर्जीवाड़ों पर अंकुश लगाया जा सके।


‘डॉग बाबू’ के नाम से जारी यह प्रमाण-पत्र अब रद्द कर दिया गया है। लेकिन यह मामला इस बात का प्रतीक बन गया है कि सरकार चाहे जितना डिजिटल प्लेटफॉर्म का विस्तार करे, जब तक मानवीय सतर्कता और जवाबदेही नहीं होगी, तब तक फर्जीवाड़े होते रहेंगे। प्रशासन की तत्परता सराहनीय है, पर अब समय है कि तकनीक और निगरानी—दोनों को सख्त किया जाए ताकि अगली बार कोई ‘डॉग बाबू’ सिस्टम को न हिला पाए।

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