हर सेविंग्स पर लोन का खेल: कैसे कमाता है आपका बैंक?

Jitendra Kumar Sinha
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भारत में बैंकिंग व्यवस्था आम लोगों के लिए सिर्फ पैसा जमा करने और निकालने का जरिया नहीं है, बल्कि बैंकों के लिए यह एक संगठित व्यापार है जिसमें वे अलग-अलग माध्यमों से कमाई करते हैं। बैंक का मुख्य व्यवसाय होता है—पैसे को इकट्ठा करना और उसे ब्याज पर आगे देना। लेकिन इसके अलावा भी बैंक कई ऐसे रास्तों से पैसे कमाते हैं जिनके बारे में आम ग्राहक को पूरी जानकारी नहीं होती।


सबसे पहला और पारंपरिक तरीका है ब्याज के माध्यम से कमाई। जब ग्राहक अपनी रकम सेविंग्स अकाउंट या फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा करता है, तो बैंक उसे एक निश्चित दर से ब्याज देता है। वहीं, यही पैसा बैंक लोन या क्रेडिट के रूप में दूसरे ग्राहकों को ज्यादा ब्याज पर देता है। उदाहरण के लिए, अगर सेविंग्स पर बैंक 3% ब्याज दे रहा है, लेकिन होम लोन पर 9% ले रहा है, तो दोनों के बीच का जो 6% मार्जिन है, वही बैंक की कमाई होती है। इस अंतर को ‘नेट इंटरेस्ट मार्जिन’ कहा जाता है, और यह बैंक के रेवेन्यू का सबसे बड़ा स्रोत होता है।


दूसरा बड़ा जरिया है सर्विस चार्ज और शुल्क। बैंक आजकल हर छोटी-बड़ी सुविधा पर फीस वसूलते हैं—जैसे कि एटीएम से सीमित संख्या में फ्री ट्रांजैक्शन के बाद शुल्क, मिनिमम बैलेंस न रखने पर पेनल्टी, चेक बुक फीस, एसएमएस अलर्ट फीस, लॉकर रेंट, क्रेडिट कार्ड फीस और कई अन्य सेवाएं जिनका उपयोग करने पर ग्राहक को भुगतान करना पड़ता है। ये छोटी-छोटी फीस मिलकर बैंक को हर महीने करोड़ों रुपए की कमाई देती हैं।


बैंक अपने ग्राहकों को विभिन्न प्रकार की बीमा योजनाएं, म्यूचुअल फंड, निवेश योजनाएं और सरकारी बॉन्ड भी बेचते हैं। इन सभी पर उन्हें कमीशन मिलता है, जिसे 'थर्ड पार्टी प्रोडक्ट सेल' कहते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई ग्राहक बैंक से जीवन बीमा या हेल्थ इंश्योरेंस लेता है, तो उस पॉलिसी की बिक्री पर बैंक को बीमा कंपनी से कमीशन मिलता है।


इसके अलावा विदेशी मुद्रा सेवाएं यानी फॉरेक्स ट्रांजैक्शन और अंतरराष्ट्रीय ट्रांसफर से भी बैंक अच्छी-खासी कमाई करते हैं। जब कोई व्यक्ति विदेशी मुद्रा खरीदता है या विदेश से पैसा मंगवाता है, तो उस पर बैंक एक्सचेंज रेट का मार्जिन और प्रोसेसिंग फीस चार्ज करता है।


एक और अहम पहलू है इन्वेस्टमेंट और ट्रेजरी ऑपरेशंस। बैंक अपने पास जमा धनराशि का एक हिस्सा सरकारी बॉन्ड, ट्रेजरी बिल्स, स्टॉक मार्केट और अन्य सुरक्षित निवेश विकल्पों में लगाते हैं, जिससे उन्हें ब्याज और पूंजी लाभ (capital gains) प्राप्त होते हैं।


क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड से की जाने वाली हर खरीदारी पर बैंक को मर्चेंट से एक इंटरचेंज फीस मिलती है। साथ ही, अगर कोई ग्राहक अपना क्रेडिट कार्ड बिल समय पर नहीं भरता, तो उस पर बैंक लेट फीस और भारी ब्याज वसूलता है, जो उनकी कमाई का एक और ठोस स्त्रोत बनता है।


कुल मिलाकर, बैंक सिर्फ जमा पर ब्याज नहीं कमाते—वे सेवाओं, शुल्क, लोन, निवेश और कमीशन जैसे कई माध्यमों से आय अर्जित करते हैं। यह एक संगठित और रणनीतिक व्यापार मॉडल है जो लोगों की जरूरतों को सुविधा में बदलकर कमाई का ज़रिया बना देता है। अब अगली बार जब आप बैंक जाएं और वह छोटी सी सेवा पर भी चार्ज मांगे, तो जान लीजिए कि बैंक अपना बिजनेस चला रहा है – और वो मुनाफे में है।

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