न दवा, न दुआ — LIC की पॉलिसी ने किया सिर्फ नुकसान

Jitendra Kumar Sinha
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LIC यानी भारतीय जीवन बीमा निगम को भारत में दशकों तक बीमा का पर्याय माना जाता था। 60, 70 और 80 के दशक में अगर किसी भारतीय ने बीमा लिया, तो लगभग निश्चित था कि वह पॉलिसी LIC की होगी। हमारे माता-पिता और दादा-दादी की पीढ़ी ने LIC को न केवल बीमा बल्कि निवेश का साधन भी माना। लेकिन समय के साथ यह साफ हुआ कि LIC ने जिस तरीके से अपने उत्पाद बेचे, वह वित्तीय साक्षरता की कमी का फायदा उठाकर लोगों को कम रिटर्न और भ्रमित करने वाली योजनाओं में फंसाने जैसा था।


पुरानी पीढ़ी को “बीमा के नाम पर निवेश” बेचा गया। LIC की एंडोमेंट और मनीबैक योजनाएं इस बात का सबसे बड़ा उदाहरण हैं। इन योजनाओं में हर साल प्रीमियम तो लिया गया, लेकिन जब 20 या 25 साल बाद मैच्योरिटी आई तो रिटर्न मुश्किल से 4–5% निकला। इसका मतलब है कि जिस व्यक्ति ने लाखों रुपए सालों तक जमा किए, उसे महज मामूली रकम ब्याज के साथ वापस मिली — वो भी मुद्रास्फीति (inflation) के मुकाबले बहुत ही कम। यानी बीमा के नाम पर उन्हें एक ऐसा निवेश कराया गया जो न बीमा के तौर पर पर्याप्त था, न निवेश के तौर पर फायदेमंद।


सबसे बड़ी चालाकी यह थी कि LIC ने बीमा और निवेश को मिलाकर एक उत्पाद बेचा, जिसे पारंपरिक बीमा योजना कहते हैं। लोग सोचते रहे कि वे सुरक्षा भी खरीद रहे हैं और साथ ही पैसे भी बढ़ा रहे हैं, लेकिन वास्तव में न तो बीमा कवर पर्याप्त था (5–10 लाख रुपए), और न ही निवेश पर कोई बेहतर रिटर्न मिल रहा था। ULIPs भी एक दौर में जोर-शोर से बेचे गए, जिनमें न तो ट्रांसपेरेंसी थी, न ही कंट्रोल। एजेंट मोटा कमीशन कमाते रहे और ग्राहक को मुनाफे के सपने दिखाए जाते रहे।


अब नई पीढ़ी पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा वित्तीय रूप से जागरूक है। उन्हें समझ में आ गया है कि बीमा और निवेश को अलग रखना ही समझदारी है। आज की युवा पीढ़ी Term Insurance को बीमा के लिए चुनती है — जहां मामूली प्रीमियम में 1 करोड़ या उससे अधिक का कवर मिलता है, और निवेश के लिए वो SIP (Systematic Investment Plan) को अपनाते हैं — जो म्यूचुअल फंड में निवेश का सबसे लोकप्रिय और प्रभावी तरीका बन चुका है।


SIP में पारदर्शिता है, मार्केट लिंक्ड रिटर्न है, और लंबी अवधि में 12–15% तक का सालाना रिटर्न मिलना असामान्य नहीं है। वहीं LIC की पारंपरिक योजनाएं आज भी 5–6% के दायरे में अटकी हुई हैं। आज का जागरूक निवेशक जानता है कि वह इंश्योरेंस को रिस्क मैनेजमेंट के लिए ले और इन्वेस्टमेंट को वेल्थ क्रिएशन के लिए।


LIC आज भी देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है, लेकिन उसका कारोबार सरकारी भरोसे और ब्रांड इमोशन पर टिका है। नई पीढ़ी अब ब्रांड से ज़्यादा डेटा, ट्रांसपेरेंसी और रिटर्न को महत्व देती है। यही कारण है कि LIC की परंपरागत पॉलिसियों की बिक्री में गिरावट आई है और प्राइवेट कंपनियों की टर्म पॉलिसियों और SIP योजनाओं का बोलबाला है।


सच कहें तो LIC ने उस दौर में हमारे परिवारों की वित्तीय अशिक्षा का इस्तेमाल किया और उन्हें कम बीमा कवर और घटिया रिटर्न वाली योजनाओं में उलझा दिया। लेकिन अब वक्त बदल चुका है। नई पीढ़ी अब सवाल पूछती है, तुलना करती है और फैसला सोच-समझकर करती है। शायद यही बदलाव हमारे देश के वित्तीय भविष्य को सशक्त बनाएगा।

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