मिलारेपा का नाम आते ही एक ऐसा तपस्वी चित्रित होता है, जिसने अंधकार से प्रकाश की ओर एक चमत्कारिक यात्रा तय की। तिब्बती बौद्ध परंपरा में उन्हें महानतम योगियों में गिना जाता है। वे न केवल ध्यान और साधना के प्रतीक हैं, बल्कि उनके जीवन से यह संदेश मिलता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी पापमय जीवन क्यों न जी चुका हो, आत्मज्ञान की प्राप्ति कर सकता है। मिलारेपा का जीवन दुख, पश्चाताप, कठिन तप और अद्वितीय आध्यात्मिक विजय की गाथा है।
शुरुआती जीवन और दुखों की शुरुआत
मिलारेपा का जन्म 11वीं सदी के उत्तरार्ध में तिब्बत के पश्चिमी क्षेत्र में हुआ था। उनका असली नाम था "थोपागा," जिसका अर्थ होता है 'खूबसूरत आवाज़'। उनका परिवार समृद्ध और प्रतिष्ठित था। पिता एक सफल व्यापारी थे और परिवार को किसी चीज़ की कमी नहीं थी। लेकिन जब मिलारेपा मात्र सात वर्ष के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया।
पिता की मृत्यु के बाद, परिवार की संपत्ति की देखरेख रिश्तेदारों को सौंपी गई। लेकिन वे लालची और क्रूर निकले। उन्होंने मिलारेपा, उसकी माँ और बहन को नौकरों की तरह रखा। संपत्ति हड़प ली गई, भोजन और कपड़ों से वंचित कर दिया गया। यह अपमान और अत्याचार की घड़ी थी जिसने मिलारेपा की माँ को बदले की भावना से भर दिया।
काले जादू का रास्ता और विनाश
अपनी माँ के आग्रह पर मिलारेपा ने काला जादू (ब्लैक मैजिक) सीखने की शिक्षा ली। वे इतने सिद्ध हो गए कि एक बार उन्होंने अपने जादू से उन रिश्तेदारों के घर को ही ध्वस्त कर दिया, जिसमें विवाह का उत्सव चल रहा था। लगभग 35 लोगों की मृत्यु हो गई। यह घटना उनके जीवन की सबसे दुखद और निर्णायक मोड़ थी।
इस भीषण कर्म के बाद उनके मन में पछतावे की ज्वाला जलने लगी। आत्मग्लानि ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया। वे जानते थे कि उन्होंने भयानक पाप किया है, और अब मुक्ति का एकमात्र मार्ग है – सच्चे गुरु की शरण और तपस्या।
गुरु मारपा से मिलन और कठोर परीक्षा
मिलारेपा को यह पता चला कि एक महान गुरु हैं – मारपा, जो भारत से बौद्ध ज्ञान और तंत्र का खजाना लेकर लौटे थे। वे सीधे मारपा के पास पहुंचे, लेकिन यह राह सरल नहीं थी। मारपा ने उन्हें कई वर्षों तक कड़ी परीक्षाओं में डाला। कभी पत्थरों का विशाल घर बनवाया, फिर तुड़वा दिया। बार-बार उन्हें मानसिक और शारीरिक कष्ट दिए, लेकिन मिलारेपा ने हार नहीं मानी।
यह सब दिखाने के लिए था कि केवल ज्ञान की इच्छा नहीं, आत्मशुद्धि और तप ही सच्चे शिष्य की कसौटी होती है। अंततः मारपा ने उन्हें दीक्षा दी और गूढ़ योग और महायान तंत्र की शिक्षा दी। यहीं से शुरू हुई मिलारेपा की एकान्त साधना की यात्रा।
गुफाओं में साधना और आत्मज्ञान
मिलारेपा ने हिमालय की निर्जन गुफाओं में वर्षों तक कठोर तप किया। वे अक्सर केवल नेटल (एक प्रकार की झाड़ी) की सूप पीकर रहते थे, जिससे उनका शरीर हरा पड़ गया था। उनका शरीर अस्थिपंजर जैसा हो गया था, लेकिन मन साधना की अग्नि से शुद्ध होता जा रहा था।
कहते हैं, उन्होंने जीवन में लगभग 12 वर्षों तक पूरी तरह से एकांतवास में तपस्या की। इस दौरान उन्हें गूढ़ तांत्रिक अनुभव हुए, दिव्य दर्शन हुए, और अंततः उन्हें आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। वे महायोगी बन गए – शरीर में नहीं, चेतना में दिव्य।
कविता और भक्ति गीतों के माध्यम से उपदेश
मिलारेपा केवल तपस्वी ही नहीं थे, वे अत्यंत कुशल कवि और गायक भी थे। उन्होंने जो भी ज्ञान अर्जित किया, उसे लोकभाषा में गीतों के माध्यम से प्रकट किया। इन गीतों को आज "द हंड्रेड थाउज़ेंड सॉन्ग्स ऑफ मिलारेपा" के रूप में जाना जाता है।
उनकी कविताएं सीधी, भावप्रवण, और आध्यात्मिक गहराई से परिपूर्ण होती थीं। वे किसी भी जिज्ञासु साधक से संवाद करते हुए काव्यात्मक शैली में जीवन के सत्य और बौद्ध ध्यान की महत्ता समझाते थे। उनके गीतों में करुणा, वैराग्य, मुक्ति और परमानंद की झलक मिलती है।
अनुयायियों और शिष्यों का निर्माण
मिलारेपा ने स्वयं को कभी गुरु नहीं घोषित किया, लेकिन उनका तेजस्वी व्यक्तित्व और जीवन प्रेरणा बन गया। उनके कई प्रमुख शिष्य बने, जिनमें सबसे प्रसिद्ध थे – गम्पोपा, जो आगे चलकर काग्यु परंपरा के स्तंभ बने। मिलारेपा का जीवन एक जीवंत शिक्षण था – पाप से पुण्य की, द्वेष से करुणा की, अंधकार से प्रकाश की यात्रा का।
मिलारेपा की मृत्यु और उनकी विरासत
मिलारेपा की मृत्यु भी उनके जीवन की तरह ही रहस्यपूर्ण और साधनापूर्ण मानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने मृत्यु को स्वीकार करते हुए अंतिम क्षणों में भी ज्ञान दिया। उनके शरीर का निस्तारण ध्यान के साथ हुआ, और यह माना जाता है कि उनकी समाधि के समय आकाश में इंद्रधनुष, सुगंध और अलौकिक घटनाएं हुईं।
आज भी तिब्बत और नेपाल में उनकी साधना स्थलों को अत्यंत श्रद्धा से देखा जाता है – जैसे योलमो घाटी, लाप्चे और चोडेन। इन स्थानों पर साधक आज भी उनके पदचिह्नों का अनुसरण करते हैं।
आधुनिक समय में मिलारेपा का प्रभाव
आज भी मिलारेपा बौद्ध परंपरा में तपस्या और साधना के प्रतीक माने जाते हैं। उनके जीवन पर न केवल आध्यात्मिक ग्रंथ लिखे गए हैं, बल्कि तिब्बती और पश्चिमी दुनिया में उन पर फिल्में, नाटक और चित्र भी बनाए गए हैं। उनके गीत आज भी ध्यान साधना में गाए जाते हैं।
वे यह सिखाते हैं कि आत्मज्ञान किसी विशेष जाति, वर्ग या परिस्थिति का मोहताज नहीं – बल्कि सच्ची इच्छा, कठोर साधना और गुरुभक्ति से कोई भी जीव आत्मा की मुक्ति पा सकता है।
मिलारेपा का जीवन केवल एक संत की जीवनी नहीं, बल्कि प्रत्येक साधक के लिए आईना है। उन्होंने दिखाया कि हम कितने भी गहरे अंधेरे में क्यों न हों, यदि संकल्प सच्चा हो और मार्गदर्शक सही हो, तो हम भी दिव्यता को पा सकते हैं। मिलारेपा ने पाप से पुण्य, क्रोध से करुणा और वासना से वैराग्य की जिस यात्रा को जिया, वह आज भी लाखों साधकों को प्रेरणा देती है।
उनका जीवन इस शाश्वत सत्य का प्रतीक है – "मन ही बंधन है, मन ही मुक्ति।"
