बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक सरकारी स्कूल में उस वक्त हड़कंप मच गया जब एक छात्रा को ज़मीन में एक चमकदार पत्थर मिला। छात्रा ने उसे 'अलग तरह की चीज़' समझकर अपनी शिक्षिका संजू कुमारी को सौंप दिया। लेकिन जब शिक्षिका ने उसे स्कूल में जमा करने की बजाय अपने घर ले जाना उचित समझा, तब मामला गरमा गया। स्थानीय लोगों को जब इसकी भनक लगी, तो गांव में यह अफवाह फैल गई कि यह पत्थर कोई आम चीज़ नहीं, बल्कि ‘नागमणि’ है।
देखते ही देखते गांव में भीड़ जमा हो गई। लोगों ने शिक्षिका पर आरोप लगाया कि वह अमूल्य नागमणि को चुपचाप घर ले गई है। ग्रामीणों के बीच यह धारणा बनी कि जिस स्थान से पत्थर मिला, वहां पहले एक सांप भी देखा गया था। बस फिर क्या था, अंधविश्वास ने विज्ञान को पीछे छोड़ दिया और मामला इतना बढ़ गया कि पुलिस को बीच में आना पड़ा।
स्कूल के उप-प्रधानाचार्य रविरंजन कुमार ने स्पष्ट किया कि उन्हें इस घटना की जानकारी बाद में मिली और उन्होंने स्वीकार किया कि शिक्षिका को ऐसी वस्तु मिलने पर प्रशासन को तुरंत सूचना देनी चाहिए थी। वहीं शिक्षिका का कहना है कि उसे नहीं पता था कि वह पत्थर इतनी चर्चा का विषय बन जाएगा।
अब पुलिस उस पत्थर की जांच कर रही है ताकि यह पता चल सके कि वह असल में क्या है। विशेषज्ञों के अनुसार ‘नागमणि’ जैसी कोई वस्तु वास्तव में अस्तित्व नहीं रखती। यह केवल भारतीय लोककथाओं और फिल्मों में ही पाया जाता है, जिसमें नागराज के सिर पर चमकती मणि दिखाई जाती है। वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि सांप के शरीर में किसी भी प्रकार की मणि नहीं बनती। यह पूरी तरह एक मिथक है।
फिर भी, भारत जैसे देश में जहां आस्था और अंधविश्वास के बीच की रेखा अक्सर धुंधली होती है, वहां ऐसी घटनाएं लोगों की भावनाओं और विश्वास को झकझोर देती हैं। पत्थर चाहे जो भी हो, इस पूरे घटनाक्रम ने यह सवाल जरूर खड़ा कर दिया है कि शिक्षा संस्थानों में विज्ञान की समझ और अंधविश्वास से निपटने की जागरूकता कितनी जरूरी है।
