बिहार के भाजपा सांसद डॉ. भीम सिंह ने राज्यसभा में यह सवाल उठाया कि पटना के जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डे को अंतरराष्ट्रीय दर्जा मिलने के बावजूद वहां से अब तक किसी भी अंतरराष्ट्रीय उड़ान की शुरुआत क्यों नहीं हुई है। उन्होंने यह मुद्दा यात्रियों की सुविधा और राज्य की विकास संभावनाओं से जोड़ते हुए उठाया।
इस पर नागरिक उड्डयन मंत्री के. राममोहन नायडू ने बताया कि तकनीकी रूप से यह हवाई अड्डा अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए सक्षम है और इसे पांच सार्क देशों—बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका—और दस आसियान देशों के साथ जोड़ने की अनुमति दी जा चुकी है। इसके अलावा खाड़ी और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के लिए भी उड़ानों की अनुमति द्विपक्षीय समझौतों के तहत दी जा सकती है। लेकिन एयरलाइंस की रुचि अभी तक नहीं बन पाई है क्योंकि संचालन को व्यावसायिक रूप से लाभदायक नहीं माना जा रहा है।
मंत्री ने स्पष्ट किया कि पटना एयरपोर्ट के रनवे की लंबाई एक बड़ी बाधा है। छोटे रनवे की वजह से बड़े या पूरी तरह से लोडेड अंतरराष्ट्रीय विमानों को उड़ान भरने के लिए भार नियंत्रण करना पड़ता है, जिससे उनकी क्षमता और व्यावसायिकता प्रभावित होती है। वर्तमान रनवे लगभग 2000 मीटर लंबा है, जो पूर्ण अंतरराष्ट्रीय सेवाओं के लिए अपर्याप्त है।
इसके अलावा पटना एयरपोर्ट के आसपास की संरचनाएं, जैसे ब्रिटिश काल की क्लॉक टावर और ऊंची इमारतें, भी उड़ानों की सुरक्षा के लिहाज से जोखिम पैदा कर रही हैं।
हालांकि नया टर्मिनल भवन हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटित किया गया और चालू भी हो गया है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की शुरुआत के लिए रनवे विस्तार और संरचनात्मक सुधार अब भी प्रमुख आवश्यकता बनी हुई है।
यह स्थिति दर्शाती है कि कागजों पर पटना भले ही एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत में अभी उसे पूरी तरह से उस स्तर तक पहुंचाने के लिए कई चुनौतियां बनी हुई हैं।
