बिहार की राजनीति एक बार फिर जुबानी जंग से गरमाई हुई है। इस बार निशाने पर हैं जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर, और जवाब दे रहे हैं जेडीयू नेता व मंत्री रतनेश सादा। वजह बनी प्रशांत किशोर की हालिया टिप्पणी, जिसमें उन्होंने चिराग पासवान को "मोदी का पोस्टर बॉय" करार देते हुए यह दावा किया था कि वे बिहार में बीजेपी की 'बी-टीम' की भूमिका निभा रहे हैं।
प्रशांत किशोर ने अपने बयान में कहा था कि चिराग पासवान असल में बिहार में भाजपा की रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि एलजेपी (रामविलास) को बीजेपी गुपचुप समर्थन दे रही है, ताकि गैर-एनडीए वोटों में बिखराव हो सके और फायदा सीधे भाजपा को मिले।
इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए जेडीयू नेता रतनेश सादा ने कहा कि प्रशांत किशोर को “बिहार की असल राजनीति की समझ नहीं है।” उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति खुद किसी विचारधारा से नहीं जुड़ता, वो दूसरों के चरित्र और नीयत पर सवाल उठाने का नैतिक हक कैसे रखता है? सादा ने तंज कसते हुए कहा कि “प्रशांत किशोर केवल माइक्रोफोन और मीडिया की राजनीति करते हैं, जमीनी सच्चाई से उनका कोई नाता नहीं है।”
रतनेश सादा ने यह भी कहा कि चिराग पासवान को लेकर जितने भी आरोप लगाए जा रहे हैं, वे न केवल आधारहीन हैं, बल्कि यह दलित नेतृत्व के अपमान के बराबर है। उन्होंने कहा कि चिराग पासवान एक स्वतंत्र नेता हैं, और बिहार के युवाओं के बीच उनकी पकड़ को नकारना राजनीतिक पूर्वाग्रह का संकेत है।
इस सियासी घमासान में चिराग पासवान ने खुद को संयमित रखा है। हालांकि, उनके करीबी सूत्रों के अनुसार, वे इस बयानबाज़ी को ज्यादा तूल नहीं देना चाहते। उनका फोकस फिलहाल लोकसभा में अपने प्रदर्शन और संगठन को मजबूत करने पर है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह बयानबाज़ी असल में 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों की आहट है। सभी दल अपने-अपने तरीके से नरेटिव सेट करने में लगे हैं—कोई 'डबल इंजन' की बात कर रहा है, तो कोई 'जन सुराज' की।
एक तरफ प्रशांत किशोर हैं, जो खुद को राजनीति से ऊपर मानते हुए बदलाव की बात करते हैं, दूसरी तरफ पुराने राजनेता हैं, जो उन्हें 'अधूरे अनुभव वाला विचारक' मानते हैं। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर यह टकराव आने वाले महीनों में और तेज़ होगा।
