डोनाल्ड ट्रम्प की हालिया घोषणा ने भारतीय अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया है। भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले हजारों उत्पादों पर 25% टैरिफ लगाना सिर्फ एक व्यापारिक निर्णय नहीं, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों के लिए ताबूत में कील जैसा है। यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब भारत पहले ही धीमी ग्रोथ, बेरोजगारी और वैश्विक अस्थिरता से जूझ रहा है।
एक्सपोर्ट सेक्टर, खासकर टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स, केमिकल्स और मरीन प्रोडक्ट्स पहले ही कोविड और रूस-यूक्रेन युद्ध के असर से उबरने की कोशिश कर रहे थे। अब इस टैरिफ से भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में महंगे हो जाएंगे, जिससे उनकी मांग गिरना तय है। इसका मतलब है फैक्ट्रियों में उत्पादन कम होगा, नौकरियां जाएंगी, और छोटे व मंझोले उद्योगों के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा।
शेयर बाजार में भी इसका झटका साफ देखा गया। जैसे ही ट्रम्प के बयान सामने आए, विशेष रूप से एक्सपोर्ट-निर्भर कंपनियों जैसे अवंती फीड्स, वाटरबेस और कई ऑटो कंपनियों के शेयरों में 5–7% की गिरावट दर्ज की गई। यह गिरावट सिर्फ सेंटीमेंट की नहीं, बल्कि एक गहरी आर्थिक चिंता की झलक है।
भारत की आयात-निर्यात नीति पहले से ही असंतुलन की स्थिति में है। अमेरिका के इस कदम से न सिर्फ व्यापार घाटा बढ़ेगा, बल्कि डॉलर के मुकाबले रुपये पर भी दबाव बढ़ेगा। इससे देश में महंगाई और बढ़ सकती है, खासकर तेल, दवाओं और तकनीकी उत्पादों की कीमतों में।
ट्रम्प ने रूस से भारत की ऊर्जा और रक्षा खरीद पर भी सवाल उठाए हैं और "पेनल्टी" की धमकी दी है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए सस्ती रूसी क्रूड पर निर्भर है, और अगर इस पर भी कोई प्रतिबंध या टैरिफ लगाया गया, तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। इसका असर ट्रांसपोर्ट, कृषि, मैन्युफैक्चरिंग — हर सेक्टर पर पड़ेगा। और तब स्थिति सिर्फ “मंदी” की नहीं, बल्कि “अर्थव्यवस्था के मृतप्राय: हो जाने” जैसी होगी।
निर्यात में गिरावट, निवेशकों का भरोसा टूटना, विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव और रुपये की कमजोरी — ये सारे लक्षण उस दिशा की ओर इशारा करते हैं जहाँ अर्थव्यवस्था ठहराव की ओर बढ़ती है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक और राजनीतिक संकट को भी जन्म दे सकता है।
यदि जल्द ही भारत अमेरिका के साथ कोई कूटनीतिक समाधान नहीं निकालता, या अपने व्यापारिक विकल्पों को यूरोप, ASEAN व अफ्रीका की ओर मोड़ नहीं पाता, तो “मृत अर्थव्यवस्था” जैसा डरावना परिदृश्य हकीकत बन सकता है — जिसमें विकास दर शून्य के करीब होगी, बेरोजगारी चरम पर, और जनता का गुस्सा सरकार की नीतियों पर।
ट्रम्प के इस फैसले ने भारत को एक कठिन मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। अब यह देखना होगा कि भारत इस वैश्विक झटके से कैसे उबरता है — कूटनीति से, व्यापार समझौतों से, या आत्मनिर्भरता के नारे के सख्त परीक्षण से।
