यालि: दक्षिण भारतीय मंदिरों का रहस्यमयी रक्षक प्राणी

Jitendra Kumar Sinha
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यालि (या यालि, यल्ली, या यलि) एक काल्पनिक पौराणिक प्राणी है जो मुख्यतः दक्षिण भारतीय हिन्दू मंदिरों की वास्तुकला में पाया जाता है। इसे संस्कृत में "व्याल" या "शार्दूल" भी कहा जाता है। यालि एक ऐसा प्राणी है जो शेर, हाथी, मगरमच्छ और कभी-कभी पक्षियों के शरीर के अंगों का मिश्रण होता है। इसे अत्यंत शक्तिशाली, रक्षक और भयावह माना जाता है।




यालि का रूप-विवरण (आकार एवं आकृति)

यालि का स्वरूप पूरी तरह से पौराणिक है। इसके विभिन्न रूप होते हैं:

  • मुख: अक्सर शेर जैसा, मगरमच्छ जैसा या हाथी जैसा।

  • दाँत: नुकीले और बाहर निकले हुए, बिलकुल सिंह की तरह।

  • शरीर: आमतौर पर सिंह के शरीर जैसा परंतु अधिक लचीला और अलंकरणयुक्त।

  • पैर: शेर के पंजों की तरह, परंतु कई बार हाथी जैसे मोटे।

  • पूंछ: लंबी, नाग जैसी।

  • पंख: कुछ यालियों में गरुड़ जैसे पंख भी दर्शाए जाते हैं।


यह प्राणी अक्सर युद्ध के उन्माद में दिखाया जाता है – मुँह खुला हुआ, दाँत बाहर, आँखें तेज, पंजे फैलाए हुए।




मंदिरों में यालि की भूमिका

दक्षिण भारत के चोल, पल्लव, विजयनगर और नायक कालीन मंदिरों में यालि की मूर्तियाँ स्तंभों (pillars) पर नक्काशी के रूप में आम मिलती हैं। इसका उद्देश्य दोहरा होता है:

  1. रक्षक (Guardian): यह मंदिर को बुरी शक्तियों से बचाता है, जैसा द्वारपाल करते हैं।

  2. बल का प्रतीक: यालि को शक्ति, वीरता और अधर्म-विनाशक के रूप में देखा जाता है। यह दर्शाता है कि मंदिर में प्रवेश करने वाला श्रद्धालु भीतर शुद्ध भाव से आए।




पौराणिक और धार्मिक महत्व

  • शास्त्रों में स्थान: यालि का उल्लेख सीधे तौर पर वेदों या पुराणों में नहीं मिलता, परन्तु यह स्थापत्यकला में एक गहन धार्मिक प्रतीक है।


  • शिव और विष्णु से संबंध: दक्षिण भारत में यालि को भगवान शिव और विष्णु दोनों के वाहन या रक्षक के रूप में भी दर्शाया गया है। कुछ जगह यालि को देवी दुर्गा के रथ का हिस्सा माना गया है।


  • राक्षसों पर विजय का प्रतीक: यालि का रूप ऐसा रचा गया है जो सभी राक्षसी गुणों और जीवों पर विजय प्राप्त कर ले – शेर, हाथी, मगरमच्छ, आदि का मिश्रण इसका सूचक है।




प्रसिद्ध यालि मूर्तियाँ और स्थापत्य

  1. मेनाक्षी मंदिर, मदुरै (Meenakshi Temple, Madurai)

  2. विरुपाक्ष मंदिर, हम्पी (Virupaksha Temple, Hampi)

  3. रामस्वामी मंदिर, कुंभकोणम

  4. बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर

  5. एकाम्बरेश्वर मंदिर, कांचीपुरम

इन मंदिरों में यालि की भव्य मूर्तियाँ स्तंभों पर नृत्य मुद्रा में, रथ पर, या युद्ध करते हुए दिखाई देती हैं।




यालि के प्रकार (प्रकारों का वर्गीकरण)

स्थापत्य ग्रंथों में विभिन्न प्रकार के यालि वर्णित हैं:

सिंहयालि (Lion-Yali): शेर का सिर और शरीर

गजयालि (Elephant-Yali): हाथी की सूँड़ और शरीर

मकरयालि (Crocodile-Yali): मगरमच्छ जैसी मुँह और पूंछ

नरयालि (Human-Yali): मानव चेहरे और शरीर के साथ यालि की विशेषताएं

पक्षीयालि (Bird-Yali): गरुड़ या पक्षी जैसे पंख और चोंच

व्याघ्रयालि (Tiger-Yali): बाघ जैसे शरीर




प्रतीकात्मक महत्व


प्रतीक
अर्थ
शेर का मुँह साहस, वीरता, सत्ता
हाथी की सूँड़ बल, ऐश्वर्य, ज्ञान
मगर की पूंछ रहस्य, नियंत्रण, रक्षा
पंख गति, मुक्ति, उड़ान
आग उगलता मुँह रक्षक रूप, अपवित्रता को भस्म करना



आधुनिक दृष्टिकोण

आज के समय में यालि को सिर्फ एक "पुराना डिज़ाइन" नहीं माना जाता, बल्कि यह एक गहरा सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक है। वास्तुकला, चित्रकला, टैटू डिज़ाइन, और मूर्तिकला में इसकी लोकप्रियता बनी हुई है। कुछ कलाकार इसे "भारतीय ड्रैगन" के रूप में भी प्रस्तुत करते हैं।


यालि केवल एक काल्पनिक प्राणी नहीं है, यह भारतीय स्थापत्य और दर्शन का एक जटिल और गूढ़ प्रतीक है। यह धर्म, शक्ति, रक्षण, और संयम का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी विविधता, इसकी रचनात्मकता और उसकी धार्मिक शक्ति, इसे दक्षिण भारतीय मंदिर कला का अमूल्य रत्न बनाती है।


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